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सहज त्योहार है राखी -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२


सनातन धर्म का गौरव सहज त्योहार है राखी
समेटे प्यार का खुद में अजब संसार है राखी।१।
*
हैं केवल रेशमी धागे  न  भूले से भी कह देना
लिए भाई बहन के हित स्वयं में प्यार है राखी।२।
*
पुरोहित देवता भगवन सभी इस को मनाते हैं

पुरातन सभ्यता की इक मुखर उद्गार है राखी।३।

*
बुआ चाची ननद भाभी सखी मामी बहू बेटी
सभी मजबूत रिश्तों का गहन आधार है राखी।४।
*
न जाने कितने ही रिश्ते इसी दिन आन मिलते हैं
कहें तो सब कुटुम्बों के मिलन का द्वार है राखी।५।
*
सजाती है बहन थाली जो राखी और रोली से
लिए आशीष लम्बी उम्र का उपहार है राखी।६।
*
बड़ी हो उम्र भाई  की  रहे  भगिनी सुरक्षा में
दिलों की भावनाओं का सही में सार है राखी।७।
*
बिछड़ती है बहन भाई से गर ससुराल जाकर तो
कठिन बरसात के मौसम मिलन विस्तार है राखी।८।
*
कठिन हालात दूरी  बन  भले ही राह रोकें पर
किसी भी हाल में आना सहज मनुहार है राखी।९।
*

गरीबी, दूरियों के दुख  हैं  लाते रिश्तों में सूखा

पड़ी खुशियों की सावन में कहें बौछार है राखी।१०।
*
मगर बाजार की संगत हुई है जब से इसकी तो
बहन भाई के कन्धों पर कसम से भार है राखी।११।
*

मौलिक.अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment

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Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 21, 2021 at 12:48pm

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब,

  1. मेरे सीमित ज्ञान के अनुसार क्रिया 'बनी' और 'लाता' के सम्बन्ध में दिये गये आपके तर्क प्रभावी और स्वीकार्य हैं। 
  2. जनाब समर कबीर साहिब के एक और प्वाइंट // "आसार" शब्द अरबी भाषा का है और 'असर' शब्द का बहुवचन है,अब देखना ये है कि भाई लक्ष्मण जी इसका क्या जवाब देते हैं// पर भी आपके जवाब की प्रतीक्षा है।  सादर। 
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2021 at 11:38am

आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति ओर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2021 at 11:37am

आ.भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार ।
//महज ये रेशमी धागे  न  भूले से भी कह देना'//
इस मिसरे में बदलाव किया है देखिएगा-
हैं केवल रेशमी धागे न भूले से भी कह देना'
//'पुरातन सभ्यता का इक बनी आसार है राखी'//
इस मिसरे में "बनी" क्रिया का सम्बंध राखी से है न कि आसार से, जिसे विशेषण के तौर पर किया है। मेरे सीमित ज्ञान के अनुसार सही है । फिर भी व्याकरणविदों से निराकरण के बाद बदलाव का प्रयास करूंगा.
//'गरीबी दूरियों का दुख है लाता रिश्तों में सूखा'//
इस मिसरे में भी "लाता" क्रिया दुख से सम्बद्ध है न कि गरीबी से ।
चर्चा व स्नेह के लिए आभार ।

Comment by Dayaram Methani on August 19, 2021 at 10:53pm

राखी के त्यौंहार पर अति सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by Samar kabeer on August 19, 2021 at 9:21pm

जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, ज़रूरी नहीं कि आप मेरी टिप्पणी से सहमत हों, मैंने तो रचनाकार की जानकारी के लिये बताया है कि:-

'पुरातन सभ्यता का इक बनी आसार है राखी'

आपकी टिप्पणी के बाद फिर ग़ौर किया तो एक बिंदु जो मैं अपनी पहली टिप्पणी में बताना भूल गया था याद आ गया,और वो ये कि "आसार" शब्द अरबी भाषा का है और 'असर' शब्द का बहुवचन है,अब देखना ये है कि भाई लक्ष्मण जी इसका क्या जवाब देते हैं ।

'गरीबी दूरियाँ का दुख है लाता रिश्तों में सूखा'

इस मिसरे का व्याकरण साफ़ बता रहा है कि यहाँ 'ग़रीबी' के साथ मिसरे की साख़्त के ऐतिबर से 'लाता' शब्द उचित नहीं है, ये उस सूरत में उचित होगा जब ये मिसरा यूँ कहा जायेगा:-

'ग़रीबी दूरियों का दुख, जो लाता रिश्तों में सूखा'

Comment by Chetan Prakash on August 19, 2021 at 7:53pm

आदरणीय समर कबीर साहब,  नमन  ! अभी  - अभी मैंने भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' की ग़ज़ल  पर आपकी समीक्षा  पढ़ी! आदरणीय,  क्षमा चाहता  हूँ लेकिन  मैं आपकी  समीक्षा के किन्ही  बिन्दुओं पर आपसे  सहमत नहीं हूँ । 'पुरानी  सभ्यता का इक बनी आसार  है राखी' ' । आसार  पुल्लिंग  है,  आदरणीय, आपकी बात  सही है, किन्तु 'आसार ' गुण  ( Adjective  of Quality ) है ! और  ' राखी  उक्त  वाक्य  का कर्म  ( Object  ) है । उक्त  मिसरे  में बात  ' पुरानी  सभ्यता  के सम्बन्ध  में  कही  गई है, 'राखी ' से आसार  सम्बद्ध  नहीं  है ! 

दूसरी शंका, "गरीबी दूरियों  का दुख    (है  / जो ) लाता रिश्तों में सूखा " , यहाँ भी 'लाता क्रिया  दुख  ( पुल्लिंग संज्ञा) के लिए  प्रयुक्त  हुई है, अत: आदरणीय  सही है ! सादर....!

Comment by Samar kabeer on August 19, 2021 at 6:47pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, राखी के त्यौहार पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'महज ये रेशमी धागे  न  भूले से भी कह देना'

इस मिसरे में 'महज' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "मह्ज़" 21,देखियेगा ।

'पुरातन सभ्यता का इक बनी आसार है राखी'

इस मिसरे में 'आसार' शब्द पुल्लिंग है,देखियेगा ।

:गरीबी दूरियाँ का दुख है लाता रिश्तों में सूखा'

इस मिसरे में 'दूरियाँ' को "दूरियों" करने का सुझाव गुणीजन दे चुके,एक कमी और है इसमें 'ग़रीबी' शब्द स्त्रीलिंग है इसलिए 'लाता' की जगह "लाती" शब्द उचित होगा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2021 at 6:28pm

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए हार्दिक आभार । आ. चेतन जी का कथन उचित है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2021 at 6:25pm

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति , उत्साहवर्धन व सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद । इंगित मिसरे में दूरियों ही उचित है । सादर..

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 19, 2021 at 5:55pm

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ख़ूबसूरत अहसासात से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ। शे'र नं 10 में टंकण त्रुटि है शायद, जैसा कि जनाब चेतन प्रकाश जी ने ध्यानाकर्षण कराया है।  सादर। 

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