For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सहज त्योहार है राखी -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२


सनातन धर्म का गौरव सहज त्योहार है राखी
समेटे प्यार का खुद में अजब संसार है राखी।१।
*
हैं केवल रेशमी धागे  न  भूले से भी कह देना
लिए भाई बहन के हित स्वयं में प्यार है राखी।२।
*
पुरोहित देवता भगवन सभी इस को मनाते हैं

पुरातन सभ्यता की इक मुखर उद्गार है राखी।३।

*
बुआ चाची ननद भाभी सखी मामी बहू बेटी
सभी मजबूत रिश्तों का गहन आधार है राखी।४।
*
न जाने कितने ही रिश्ते इसी दिन आन मिलते हैं
कहें तो सब कुटुम्बों के मिलन का द्वार है राखी।५।
*
सजाती है बहन थाली जो राखी और रोली से
लिए आशीष लम्बी उम्र का उपहार है राखी।६।
*
बड़ी हो उम्र भाई  की  रहे  भगिनी सुरक्षा में
दिलों की भावनाओं का सही में सार है राखी।७।
*
बिछड़ती है बहन भाई से गर ससुराल जाकर तो
कठिन बरसात के मौसम मिलन विस्तार है राखी।८।
*
कठिन हालात दूरी  बन  भले ही राह रोकें पर
किसी भी हाल में आना सहज मनुहार है राखी।९।
*

गरीबी, दूरियों के दुख  हैं  लाते रिश्तों में सूखा

पड़ी खुशियों की सावन में कहें बौछार है राखी।१०।
*
मगर बाजार की संगत हुई है जब से इसकी तो
बहन भाई के कन्धों पर कसम से भार है राखी।११।
*

मौलिक.अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Views: 1309

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 21, 2021 at 12:48pm

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब,

  1. मेरे सीमित ज्ञान के अनुसार क्रिया 'बनी' और 'लाता' के सम्बन्ध में दिये गये आपके तर्क प्रभावी और स्वीकार्य हैं। 
  2. जनाब समर कबीर साहिब के एक और प्वाइंट // "आसार" शब्द अरबी भाषा का है और 'असर' शब्द का बहुवचन है,अब देखना ये है कि भाई लक्ष्मण जी इसका क्या जवाब देते हैं// पर भी आपके जवाब की प्रतीक्षा है।  सादर। 
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2021 at 11:38am

आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति ओर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2021 at 11:37am

आ.भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार ।
//महज ये रेशमी धागे  न  भूले से भी कह देना'//
इस मिसरे में बदलाव किया है देखिएगा-
हैं केवल रेशमी धागे न भूले से भी कह देना'
//'पुरातन सभ्यता का इक बनी आसार है राखी'//
इस मिसरे में "बनी" क्रिया का सम्बंध राखी से है न कि आसार से, जिसे विशेषण के तौर पर किया है। मेरे सीमित ज्ञान के अनुसार सही है । फिर भी व्याकरणविदों से निराकरण के बाद बदलाव का प्रयास करूंगा.
//'गरीबी दूरियों का दुख है लाता रिश्तों में सूखा'//
इस मिसरे में भी "लाता" क्रिया दुख से सम्बद्ध है न कि गरीबी से ।
चर्चा व स्नेह के लिए आभार ।

Comment by Dayaram Methani on August 19, 2021 at 10:53pm

राखी के त्यौंहार पर अति सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by Samar kabeer on August 19, 2021 at 9:21pm

जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, ज़रूरी नहीं कि आप मेरी टिप्पणी से सहमत हों, मैंने तो रचनाकार की जानकारी के लिये बताया है कि:-

'पुरातन सभ्यता का इक बनी आसार है राखी'

आपकी टिप्पणी के बाद फिर ग़ौर किया तो एक बिंदु जो मैं अपनी पहली टिप्पणी में बताना भूल गया था याद आ गया,और वो ये कि "आसार" शब्द अरबी भाषा का है और 'असर' शब्द का बहुवचन है,अब देखना ये है कि भाई लक्ष्मण जी इसका क्या जवाब देते हैं ।

'गरीबी दूरियाँ का दुख है लाता रिश्तों में सूखा'

इस मिसरे का व्याकरण साफ़ बता रहा है कि यहाँ 'ग़रीबी' के साथ मिसरे की साख़्त के ऐतिबर से 'लाता' शब्द उचित नहीं है, ये उस सूरत में उचित होगा जब ये मिसरा यूँ कहा जायेगा:-

'ग़रीबी दूरियों का दुख, जो लाता रिश्तों में सूखा'

Comment by Chetan Prakash on August 19, 2021 at 7:53pm

आदरणीय समर कबीर साहब,  नमन  ! अभी  - अभी मैंने भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' की ग़ज़ल  पर आपकी समीक्षा  पढ़ी! आदरणीय,  क्षमा चाहता  हूँ लेकिन  मैं आपकी  समीक्षा के किन्ही  बिन्दुओं पर आपसे  सहमत नहीं हूँ । 'पुरानी  सभ्यता का इक बनी आसार  है राखी' ' । आसार  पुल्लिंग  है,  आदरणीय, आपकी बात  सही है, किन्तु 'आसार ' गुण  ( Adjective  of Quality ) है ! और  ' राखी  उक्त  वाक्य  का कर्म  ( Object  ) है । उक्त  मिसरे  में बात  ' पुरानी  सभ्यता  के सम्बन्ध  में  कही  गई है, 'राखी ' से आसार  सम्बद्ध  नहीं  है ! 

दूसरी शंका, "गरीबी दूरियों  का दुख    (है  / जो ) लाता रिश्तों में सूखा " , यहाँ भी 'लाता क्रिया  दुख  ( पुल्लिंग संज्ञा) के लिए  प्रयुक्त  हुई है, अत: आदरणीय  सही है ! सादर....!

Comment by Samar kabeer on August 19, 2021 at 6:47pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, राखी के त्यौहार पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'महज ये रेशमी धागे  न  भूले से भी कह देना'

इस मिसरे में 'महज' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "मह्ज़" 21,देखियेगा ।

'पुरातन सभ्यता का इक बनी आसार है राखी'

इस मिसरे में 'आसार' शब्द पुल्लिंग है,देखियेगा ।

:गरीबी दूरियाँ का दुख है लाता रिश्तों में सूखा'

इस मिसरे में 'दूरियाँ' को "दूरियों" करने का सुझाव गुणीजन दे चुके,एक कमी और है इसमें 'ग़रीबी' शब्द स्त्रीलिंग है इसलिए 'लाता' की जगह "लाती" शब्द उचित होगा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2021 at 6:28pm

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए हार्दिक आभार । आ. चेतन जी का कथन उचित है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2021 at 6:25pm

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति , उत्साहवर्धन व सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद । इंगित मिसरे में दूरियों ही उचित है । सादर..

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 19, 2021 at 5:55pm

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ख़ूबसूरत अहसासात से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ। शे'र नं 10 में टंकण त्रुटि है शायद, जैसा कि जनाब चेतन प्रकाश जी ने ध्यानाकर्षण कराया है।  सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
4 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
5 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service