For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"अंखियों के झरोखों से" (लघुकथा)

होटलों में बर्तन धोने से लेकर नेताओं और अधिकारियों के पैर दबाने तक, मूंगफली बेचने से लेकर अख़बार बेचने तक सभी काम करने के साथ ही साथ उस अल्पशिक्षित बेरोज़गार के यौन-शोषण के कारण होशहवास खो गये थे, या किसी शक्तिवर्धक दवा के ग़लत मात्रा के सेवन से या अत्याधिक मानसिक तनाव के कारण उसकी अर्द्धविक्षिप्त सी हालत थी; किसी को सच्चाई पता नहीं! हां, सब इतना ज़रूर जानते थे कि बंदा है तो होनहार और मिहनती। जो काम दो, कर देता है। इसलिए सड़क पर आज भी उसकी ज़िन्दगी सुरक्षित चल रही है परिजनों की उपेक्षा और दयावानों के दानों से! हर रोज़ की बदलती जुगाड़ू दिनचर्या के तहत आज फिर वह मंदबुद्धि, सनकी, पागल कहा जाने वाला 'नेताजी' अपने पेट की जुगाड़ के लिए काम पर निकल चुका था :


"अरे देख! वही अजमेरी भाईजान! कल अजमेर की दरगाह पर चादर चढ़ाने  के लिए चंदा मांग रहा था हरे कपड़े पहने और आज साइकल पर झंडा, तख्तियां,भोंपू, माइक वग़ैरह लगाकर नेताजी बनके नारे लगाता फिर रहा है!" एक दुकानदार ने अपने ग्राहक से कहा।
"अजमेरी नहीं, दयाराम है ... दयाराम! थोड़ी देर में होश में आ जायेगा, जब पगले पर बच्चों के पत्थर पड़ेंगे! .. साला परसों हमारे मंदिर के सामने दूसरे गहरे रंग केे कपड़े पहन कर भजन गा-गा कर नाच रहा था एक बड़े नेता के जुमले बोल-बोल कर!" दुकान पर खड़ा एक अन्य युवक बोला।
"अरे, चुनाव आने वाले हैं न! .. तो हर चुनाव की तरह किसी पार्टी ने इसे इसके काम पर लगा दिया है पूरे शहर में अपने नेताओं और उम्मीदवारों की जयकारा लगाने के लिए! साले की अच्छी-खासी कमाई हो जाती होगी!" एक और आवाज़ सुनाई दी।
"पागल सा है, लेकिन बंदा है टेलेंटिड! रटाये गये जुमले और भाषण बेहतरीन अदायगी से हर चौराहे पर दुहराता है! एक और दुकानदार से एक पुलिसकर्मी ने अपनी हथेली पर तंबाकू घिसते हुए कहा।
"आज तो किसी ने इसको ग़ज़ब का कुर्ता पहना दिया है! उस पर नये वाले नोट बने हैं, मेट्रो-बुलेट-ट्रेन बनी है, धार्मिक-स्थल बने हुए हैं, आस्था के पशु-पक्षी भी तो बने हैं! दुकान पर खड़े एक शिक्षक-दर्शक ने उसे ग़ौर से देखकर कहा।
"जो हर रोज़ देखते-सुनते हैं, वही इन लोगों को दिखाई दे रहा है! .. उसकी ग़रीबी, मानसिक बीमारी, लाचारी और उसका शोषण किसी को नहीं दिख रहा? सब सिर्फ़ मज़े लेते रहे हैं और आज भी ले रहे हैं, बस!" सड़क किनारे दर्शकों की एकत्रित भीड़ में फंसी एक बुज़ुर्ग महिला ने आंखें नम करते हुए कहा, जो शायद उसमें अपने गुमशुदा इकलौते जवां बेटे को देखने की कोशिश कर रही थी।


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 935

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 9, 2018 at 10:43am

आ0 उष्मानी साहब बहुत ही प्रभावशाली प्रस्तुति । हार्दिक बधाई ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 8, 2018 at 10:55pm

गरीबी हमारे देश में ही नहीं सारे विश्व में प्रचारित की जाती है , गरीबी से कमाई अच्छी होती है , बस ज़मीर बेचना पड़ना है , एक बार। फिर कोई परेशानी नहीं होती। लोग कहते हैं वे सत्तर साल से गरीबी मिटा रहे हैं , मिटा नहीं पाए। सच तो यह है की वे गरीबी को एक अबोध बच्चे की तरह पोस रहे हैं , सहेज रहे हैं। ‘ ये हमारे गरीब हैं , इन्हें हमसे कोई ले नहीं सकता है.’ वाला भाव है। कौन करता है गरीबों का इतना ख्याल ? महान लोग हैं।
बहुत गहरे भाव को उजागर करते लघु -कथा के लिए बधाई , आदरणीय शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी , सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 8, 2018 at 7:01pm

आ. भाई शेख शहजाद जी, अच्छी कथा हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on October 8, 2018 at 12:56pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।वर्तमान परिदृश्य को लेकर अच्छा ताना बाना बुना हौ।बहुत कुछ कहती बेहतरीन लघुकथा।

Comment by Neelam Upadhyaya on October 8, 2018 at 12:04pm

 आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, लघुकथा बहुत ही प्रभावी बन पड़ी है।  अंत की पंक्ति  तो मन को छू गयी -
"उसकी ग़रीबी, मानसिक बीमारी, लाचारी और उसका शोषण किसी को नहीं दिख रहा? सब सिर्फ़ मज़े लेते रहे हैं और आज भी ले रहे हैं, बस!"
हार्दिक बधाई प्रस्तति के लिए।

Comment by Samar kabeer on October 8, 2018 at 12:02pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on October 8, 2018 at 11:06am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                          अर्धविक्षिप्त नौजवान के चुनाव प्रचार में इस्तेमाल की पृष्ठभूमि पर लिखी गई बहुत ही ज्वलंत और सामयिक लघुकथा । यह साल चुनावी साल है । अच्छा तमाचा जड़ा है आपने भक्तों पर । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है। यह लघुकथा पाठक को गहरे…"
58 minutes ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान'मैं सुमन हूँ।' पहले ने बतया। '.........?''मैं करीम।' दूसरे का…"
1 hour ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"स्वागतम"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
22 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
23 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service