For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ट्रैफिक सिग्नल की बत्ती लाल हो गयी थी तो उसने ब्रेक लगाया और बाहर देखने लगा. जाने और आने वालों की दो दो लेन थी और हर आदमी ने अपनी गाड़ी थोड़े थोड़े फासले पर खड़ा कर रखी थी. जोहानसबर्ग की यह बात उसे बेहद पसंद थी कि अमूमन हर व्यक्ति कानून का पूरी तरह से पालन करता था और शायद ही कभी लाल बत्ती पर सड़क पार करता था. हॉर्न बजाना तो बेहद असभ्यता की बात मानी जाती थी और किसी की गलती को जताने के लिए ही लोग हॉर्न बजाते थे.
रोज की तरह ही वह अफ़्रीकी नवयुवक, जिसे वह शक्ल से पहचानता था, लेकिन कभी उसने उसका नाम भी नहीं पूछा था, आकर चुपचाप उसके बगल में खड़ा हो गया. अक्सर उसकी गाड़ी इस सिग्नल पर रूकती और वह नवयुवक आकर मुस्कुराते हुए उसके बगल में खड़ा हो जाता. कभी भी उसने न तो मांगने के लिए आवाज लगायी और न ही उसके शीशे पर नॉक किया. बस लोगों की देखा देखी वह भी उसको कुछ रैंड दे देता था.
आज पता नहीं उसे कुछ देने का मन नहीं किया, शायद किसी बात पर अपसेट था. ६० सेकेण्ड वाले सिग्नल का काउंट डाउन चल रहा था और वह युवक सिग्नल पर नजर डालते हुए चुपचाप खड़ा था. लगभग १० सेकेण्ड बचे थे तभी उसकी नजर उस नवयुवक से मिली और ऐसा लगा जैसे उसकी ऑंखें शिकायत कर रही हों.
सिग्नल हरा हुआ और वह उस युवक से नजरें बचाते हुए झटके से आगे बढ़ गया. रास्ते भर उसे अजीब सी बेचैनी महसूस होती रही, ऐसा लग रहा था जैसे उसने किसी का हक़ मार दिया हो.


मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 556

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on October 10, 2018 at 6:00pm

बहुत बहुत आभार आ अजय तिवारी जी इस टिपण्णी के लिए

Comment by Ajay Tiwari on October 10, 2018 at 5:15pm

आदरणीय विनय जी, ये कथा कविता की सरहदों को छू रही है. एक और बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by विनय कुमार on October 9, 2018 at 2:01pm

रचना के मर्म को समझकर टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ नीलम उपाध्याय जी

Comment by Neelam Upadhyaya on October 8, 2018 at 12:07pm

आदरणीय विनय कुमार, अच्छी लघुकथा।  प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें। 

Comment by विनय कुमार on October 6, 2018 at 2:16pm

बहुत बहुत आभार आ मुहरतम समर कबीर साहब

Comment by Samar kabeer on October 6, 2018 at 11:39am

जनाब विनय कुमार जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रसृति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by विनय कुमार on October 5, 2018 at 7:26pm

लघुकथा के मर्म तक पहुंचकर उसपर प्रोत्साहित करनेवाली टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ शेख शहज़ाद उस्मानी साहब

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 5, 2018 at 5:34pm

ऐसा अपराधबोध हर उस इंसान को अक्सर होता है जो भागमभाग और स्वार्थलोलुपता और भ्रष्टाचार के वातावरण में भी नेक राह पर चलकर सच्चा योगदान कर ज़रूरतमंदों की यथासंभव मदद करना चाहते हैं। इस रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार साहिब।

Comment by विनय कुमार on October 4, 2018 at 7:29pm

बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी

Comment by TEJ VEER SINGH on October 4, 2018 at 5:30pm

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।मनोविज्ञान आधारित सुन्दर लघुकथा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"आ. समर सर,मिसरा बदल रहा हूँ ..इसे यूँ पढ़ें .तो राह-ए-रिहाई भी क्यूँ हू-ब-हू हो "
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"धन्यवाद आ. समर सर...ठीक कहा आपने .. हिन्दी शब्द की मात्राएँ गिनने में अक्सर चूक जाता…"
10 hours ago
Samar kabeer commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"जनाब नीलेश 'नूर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई, बधाई स्वीकार करें । 'भला राह मुक्ति की…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, सार छंद आधारित सुंदर और चित्रोक्त गीत हेतु हार्दिक बधाई। आयोजन में आपकी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी,छन्नपकैया छंद वस्तुतः सार छंद का ही एक स्वरूप है और इसमे चित्रोक्त…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, मेरी सारछंद प्रस्तुति आपको सार्थक, उद्देश्यपरक लगी, हृदय से आपका…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, आपको मेरी प्रस्तुति पसन्द आई, आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार। "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service