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रिश्तों की चिता--लघुकथा

चिता पर चाचाजी का शरीर लकड़ियों से ढंका हुआ पड़ा था और उसको आग लगाने की तैयारी चल रही थी. चाचाजी उम्र पूरा करके गुजरे थे इसलिए घर में बहुत दुःख का माहौल नहीं था लेकिन उनकी सेहत के हिसाब से अभी कुछ और साल वह सामान्य तरीके से जी सकते थे. अभी भी सारा परिवार एक में था इसलिए पूरा घर वहां मौजूद था. चचेरे भाई ने चिता जलाने के लिए जलती फूस को हाथ में लिया और चिता के चारो तरफ चक्कर लगाने लगा.
कुछ ही पल में चिता ने आग पकड़ ली और वह एक किनारे से एकटक जलती चिता को देखता रहा. चाचाजी से पिछले कई सालों से उसकी बातचीत बंद थी और उनके जिद्दी स्वभाव के चलते आपस में रिश्ता सुधरने की कोई गुन्जाईस भी नहीं थी. घर के लोगों के साथ साथ उसने भी शुरू के सालों में उनके साथ सम्बन्ध सुधारने की कोशिश की लेकिन हर बार बात और खराब होती गयी. सब लोग उसे समझाते कि चाचाजी का स्वभाव ही ऐसा है, उनकी सोच के उलट कुछ भी करने की मत सोचो. लेकिन उसे आत्मसम्मान को लगी ठेस ने उसे उनसे बहुत दूर कर दिया.
आग पूरा जोर पकड़ चुकी थी और अब चाचाजी का जलता शरीर उसे दिखाई दे रहा था. उसके मन में भी चाचाजी को लेकर जो विरोध था, उसपर धीरे धीरे मंथन चल रहा था. अचानक चटाक की आवाज आयी, उसने देखा आग से कोई हड्डी चटक कर टूट गयी. एकदम से उसकी आंख में पानी आ गया, उसके मन में जमी हुई बर्फ भी चटक गयी. धीरे से उसने जलती हुई चिता की तरफ अपने हाथ जोड़े और वापस घरवालों की तरफ चल दिया.


मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on October 9, 2018 at 2:00pm

रचना के मर्म तक पहुंचकर विस्तृत टिपण्णी करने के लिए बहुत बहुत आभार आ डॉ विजय शंकर साहब

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 8, 2018 at 10:38pm

बात बहुत गहरी है , जीवन में एहसास बहुत जरूरी है , इस एहसास पूर्ण कथा के लिए बधाई, आदरणीय विनय कुमार जी , सादर।

Comment by विनय कुमार on October 8, 2018 at 6:17pm

रचना के मर्म को समझकर टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ नीलम उपाध्याय जी

Comment by विनय कुमार on October 8, 2018 at 6:17pm

रचना के मर्म को समझकर टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ मुहतरम जनाब समर कबीर साहब

Comment by विनय कुमार on October 8, 2018 at 6:16pm

बहुत बहुत आभार आ लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहब

Comment by विनय कुमार on October 8, 2018 at 6:15pm

रचना के मर्म को समझकर उस पर विस्तृत टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ मोहम्मद आरिफ साहब

Comment by विनय कुमार on October 8, 2018 at 6:15pm

रचना के मर्म को समझकर उस पर विस्तृत टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी

Comment by विनय कुमार on October 8, 2018 at 6:14pm

रचना के मर्म को समझकर उस पर विस्तृत टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ शेख शहज़ाद उस्मानी साहब

Comment by Neelam Upadhyaya on October 8, 2018 at 12:17pm

आदरणीय विनय कुमार जी, अच्छी भावपूर्ण  लघुकथा हुई है।  इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Mohammed Arif on October 8, 2018 at 11:12am

आदरणीय विनय कुमार जी आदाब,

                             मरणोपरांंत केवल पश्चाताप का ही तो दाह-संस्कार शेष रहता है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैंं ।

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