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शट अप
ओफ्फ हो ! क्या माँ आप हरदम ज़ोर-ज़ोर से बोलती हो । ये गाँव नहीं है ,वीआईपी कॉलोनी है । यहाँ सभी वेल एजुकेटेड लोग रहते हैं ,धीमे स्वर में बोलते है । वेल कल्चर हैं यहाँ , वेल कल्चर समझी ।"
" मगर मुझे एक बात समझ में नहीं आई। जब से यहाँ आई हूँ देख रही हूँ कि कोई किसी से बतियाता है न बातचीत करता है । क्या यहाँ की वेल कल्चर है ?"
" शट अप !!"
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 4, 2017 at 6:07am
आ. भाई आरिफ जी,ओढ़ी हुई सभ्यता पर प्रहार करती बेहतरीन कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।
Comment by Mohammed Arif on November 3, 2017 at 5:11pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, लघुकथा को अपनी अमूल्य सटीक और संक्षिप्त टिप्पणी से पोषित करने का बहुत-बहुत शुक्रिया ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 3, 2017 at 3:38pm

संकुचित मानसिकता के बढ़ते प्रभाव को शाब्दिक करती बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. हार्दिक बधाई आदरणीय आरिफ जी.

Comment by Mohammed Arif on November 3, 2017 at 12:05pm
लघुकथा पर अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया से पोषित करने का बहुत-बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2017 at 9:47am

आज के सो कॉल्ड  वेळ कल्चर का  बेहतरीन चित्रण किया है हाई सोसाइटी ,पोश कॉलोनी में लोग बात नहीं करते घड़ी की टिक टिक सुन सकते हैं बस साधारण परिवेश में पले  बढे लोग या बुजुर्ग ऐसी जगह खुद जाना नहीं चाहते जीवन जीने की राह संकुचित हो गई है 

बहुत बहुत बधाई आद० मोहम्मद आरिफ जी इस शानदार लघु कथा के लिए |

Comment by Mohammed Arif on November 2, 2017 at 7:43am
बहुत-बहुत आभार आदरणीय बृजेश कुमार जी । लेखन सार्थक हुआ ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2017 at 9:55pm
सामाजिक विद्रूपता को उजागर करती हुई उम्दा कथा..बधाई आदरणीय
Comment by Mohammed Arif on November 1, 2017 at 9:45pm
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय सलीम रज़ा साहब ।लेखन सार्थक हो गया ।
Comment by Mohammed Arif on November 1, 2017 at 9:43pm
आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब आदाब, आपकी हौसला अफज़ाई, सटीक टिप्पणी से मैं अभिभूत हो गया । बहुत-बहुत दिली शुक्रिया अदा करता हूँ ।
Comment by Samar kabeer on November 1, 2017 at 9:26pm
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,आजकल आप जो कम शब्दों में अपनी लेखनी का जादू जगा रहे हैं वो वाक़ई क़ाबिल-ए-तारीफ़ है, प्रस्तुत लघुकथा भी अपने मैयार की बुलंदियां छूती हुई लिखी आपने,इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।

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