For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ख़्यालों में गिरफ़्तार

गम्भीर   उदास

अपना सिर टेक कर

इ-त-नी पास

तुम इतनी पास

तो कभी नहीं बैठती थी

फिर आज...?

मिलने पर 

न स्वागत

न शिकायत

न कोई बात

अपने में ही सोचती-सी ठहरी

धड़कन की खलबली में भी

तुम इतनी आत्मीय ...

मेरे बालों की अव्यवस्था को ठेलती

कभी शाम के मौन में  शाम की

निस्तब्धता को पढ़ती

शांत पलकें, अब अलंकार-सी

जागती-सी सोचती, कुछ खोजती

पूछती हैं कोई शरारत भरा सवाल

मेरी आँखों से मेरी आँखों में, ..बस

कभी मुंदती, कभी खुलती पलकें तुम्हारी

शिशु-सी मुस्कान, कि मानो ईश्वर हो पास

आसमान भी अब बिना सरहद का लगता

हम दोनों पर इ-त-ना महरबान ... सुनो

कहता है एक बात, एक बात कहता है

स्नेह की महक में विकसित फूलों-सी तुम

आज यूँ ही मेरी धड़कन पर सिर टेके रहो

                  ----------

-- विजय निकोर

Views: 682

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on November 1, 2017 at 4:44pm

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय महेन्द्र कुमार जी।

देर से आया हूँ, क्षमाप्रार्थी हूँ।

Comment by vijay nikore on November 1, 2017 at 4:41pm

// भावनाओ का समुंदर उड़ेल दिया आपने //

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिहं जी।

Comment by vijay nikore on October 8, 2017 at 12:51am

//मन्त्र मुग्ध सा इसे मैं पढता ही चला गया। कि-त-ना का नवीन प्रयोग मुझे बहुत भाया//

आपने मेरे प्रयास को सफ़ल किया है, आदरणीय सुशील जी। हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on October 8, 2017 at 12:49am

//बहुत ख़ूबसूरत अहसासात से सजी//

आपने म्रेरा मनोबल बढ़ाया है। हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय समर जी।

Comment by vijay nikore on October 8, 2017 at 12:47am

//सुंदर अहसासों की पावन बगिया //

इस रचना को इन शब्दों से मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी

Comment by vijay nikore on October 8, 2017 at 12:45am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कल्पना जी। 

Comment by Mahendra Kumar on September 27, 2017 at 7:55pm

अच्छी भावपूर्ण कविता है आ. विजय निकोर जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by नाथ सोनांचली on September 26, 2017 at 8:11pm
आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन, भावनाओ का समुंदर उड़ेल दिया आपने, बधाई स्वीकार करें। सादर
Comment by Sushil Sarna on September 26, 2017 at 7:26pm

कभी मुंदती, कभी खुलती पलकें तुम्हारी
शिशु-सी मुस्कान, कि मानो ईश्वर हो पास
आसमान भी अब बिना सरहद का लगता
हम दोनों पर इ-त-ना महरबान ... सुनो
कहता है एक बात, एक बात कहता है
स्नेह की महक में विकसित फूलों-सी तुम
आज यूँ ही मेरी धड़कन पर सिर टेके रहो

वाह आदरणीय मन्त्र मुग्ध सा इसे मैं पढता ही चला गया। कि-त-ना का नवीन प्रयोग मुझे बहुत भाया। इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर।

Comment by Samar kabeer on September 26, 2017 at 6:00pm
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत ख़ूबसूरत अहसासात से सजी इस बढ़िया कविता के लिये दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
14 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
yesterday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service