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हालात-ए-तालीम -- डॉo विजय शंकर

सदैव सचेत ,जाग्रत ,
रहने वाले प्रबुद्ध हैं हम ,
बस अपने से ही दूर ,
अनन्त अंजान हैं हम।
जागते रहो , नारा है ,
लक्ष्य-आदर्श नहीं ,
दृश्य है , वो दीखता नहीं ,
अदृश्य , लक्ष्य है , और
पहुँच से बहुत दूर दीखता है ,
फिर भी अति प्रसन्न हैं हम ,
सुसुप्त-सुख से ग्रस्त हैं हम ,
जगा दे कोई किसी में दम नहीं।
फिर भी कोई दुःसाहस करे ,
जागते नहीं , उखड़ जाते हैं हम ,
भड़क जाते हैं हम ,
ज्ञान बोध से नहीं ,
अज्ञान के उद्भव से , हम।
जगाने वाले के पक्के
दुश्मन हैं हम।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 512

Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on July 4, 2016 at 8:08pm
आदरणीय राजेन्द्र कुमार दुबे जी , रचना पर उपस्थित एवं प्रशस्ति के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Rajendra kumar dubey on July 3, 2016 at 10:44am
सही हालात बंया किए हैं आदरणीय डॅा विजय शंकर जी बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये हार्दिक बधाई
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 3, 2016 at 9:48am
आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी , बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , इसबार भेंट काफी अर्से बाद हुयी है , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 3, 2016 at 9:48am
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 3, 2016 at 9:47am
.... और यदि पर्दा जड़ता का हो तो और भी कठिन है उसे हटाना। सुन्दर विचारों एवं बधाई हेतु आभार एवं धन्यवाद , आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 3, 2016 at 8:39am
फिर भी अति प्रसन्न हैं हम ,
सुसुप्त-सुख से ग्रस्त हैं हम ,
जगा दे कोई किसी में दम नहीं।
फिर भी कोई दुःसाहस करे ,
जागते नहीं , उखड़ जाते हैं हम ,
भड़क जाते हैं हम ,
ज्ञान बोध से नहीं ,
अज्ञान के उद्भव से , हम।
जगाने वाले के पक्के
दुश्मन हैं हम।
आ. डॉ विजय शंकर सर बातें तल्ख हैं क्योंकि यह सत्य मौजूदा दौर में एक बड़ा वर्ग इस बीमारी से ग्रस्त है। हार्दिक बधाई इस रचना के लिये।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2016 at 9:26pm

विजय सर , सुन्दर अभिव्यक्तिके लिये बधाई

जागते नहीं , उखड़ जाते हैं हम ,
भड़क जाते हैं हम ,
ज्ञान बोध से नहीं ,
अज्ञान के उद्भव से , हम।
जगाने वाले के पक्के
दुश्मन हैं हम।

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 2, 2016 at 7:11pm

सुन्दर अभिव्यक्ति है आदरणीय डॉ. विजय शंकर  जी, सच है जब आँखों पर कोई पर्दा पड़ जाए तो उसे हटाना आसान नहीं है. सादर.

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