कभी निकटता रिश्तों में ,
ज्यों सागर की गहराई !
कभी दूरियाँ अपनों में,
ज्यों अम्बर की ऊँचाई !
कभी सहजता चुप्पी में,
कभी जटिलता बोली में !
कभी बर्फ मैं ज्वाला किंतु,
आंच नहीं अब होली मैं !
कहीं मोहब्बत की म्यानों में,
रखी बैर की शमशीरें !
कहीं इबारत उलटी यारों ,
जहाँ लिखी हैं तक़दीरें !
कहीं सत्य एक झंझट,
कही झूठ है सुलझा !
कहीं किसी ने जाल बिछाया
खुद ही आकर उलझा !
कहीं प्रेम का इन्द्रधनुष,
कहीं घृणा की बौछारें !
जीवन तो है एक नदी ,
पर अलग अलग इसकी धारें!
जीवन तो है एक नदी ,
पर अलग अलग इसकी धारें!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय "जितेन्द्र पस्टारिया सर" उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार ! सादर
कहीं सत्य एक झंझट,
कही झूठ है सुलझा !
कहीं किसी ने जाल बिछाया
खुद ही आकर उलझा !..........बहुत सुंदर. सत्य को बहुत हद तक परिभाषित करती पंक्ति. बधाई आदरणीय हरिप्रकाश जी
मन प्रसंन्न हो गया , उत्साहवर्धन के लिए आपका आभार सोमेश भाई !
जीवन एक नदी है ,है इसको अविरल बहना
सागर अंतिम लक्ष्य वहाँ तक ऊँच-नीच सहना
तेरी नई-नई कविताओं पर भाई इतना ही कहना
बहना-बहना सदा नए भाव में ऐसे ही बहना |
रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीय गिरिराज सर ! सादर
आदरणीय हरि प्रकाश भाई , बढिया गीत रचना हुई है , आपको दिली बधाइयाँ ।
रचना की सराहना एवम् आपकी उत्साहवर्धक पर्तिक्रिया पर बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी, सादर।
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण सर ,रचना पर आपकी उपस्तिथी ही उत्साहवर्धक है ,आभार सादर।
कहीं सत्य एक झंझट,
कही झूठ है सुलझा !
कहीं किसी ने जाल बिछाया
खुद ही आकर उलझा !
आदरणीय हरि प्रकाश सर काफ़ी चिंतन तथा दर्शन से परिपूर्ण रचना है |सभी बंध सुन्दर है |नववर्ष की ढेरों शुभकामनाओं सहित -सादर अभिनन्दन |
sundar bhavpoorn kavita
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