और भाई, इस बार तो तूने पूरी राम लीला देख ली क्या सीखा ?
भईया, रामचरितमानस की कथा के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ की पिता का कहना नहीं मानना चाहिए, इससे बहुत तकलीफ उठानी पड़ती है !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी ! सादर
आपके उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय शिज्जू सर !
आदरणीय हरिप्रसाद दूूबे जी सही जगह आपने चोट की है बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये
आज को देखते हुए, बहुत ही सटीक सन्देश छोडती हुयी लघुकथा. बहुत-२ बधाई आदरणीय हरि प्रकाश जी
आपके उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया अर्चना तिवारी जी !
आपके प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार सोमेश भाई !
रचना आपको पसंद आई , बहुत बहुत आभार आदरणीय खुरशीद जी !
सुंदर भाव ,आज के बेटे यही निष्कर्ष निकालते हैं
हा.. हा... हा... क्या ख़ालिश तंज़ है ,मज़ा आ गया |सादर अभिनन्दन आदरणीय हरि प्रकाश जी |
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