For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे

.
ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
दुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे.
.
जादू टोना यूँ लब ओ रुख़्सार भी करते रहे
जो मुदावा थे वही बीमार भी करते रहे.
.
उस की सुहबत के असर में हो गए उस की तरह  
फिर उसी के लहजे में गुफ़्तार भी करते रहे.
.
जिस्म को जीते रहे हम एक क़िस्सा मान कर  
और अपनी रूह को तैय्यार भी करते रहे.
.
हर क़िले के द्वार अन्दर ही से खोले जाते हैं
दुश्मनों का काम चौकीदार भी करते रहे.
.
‘नूर’ ऐसा था कि चुँधियाने लगीं आँखें तो फिर  
बंद आँखों ही से हम दीदार भी करते रहे.
.
मौलिक अप्रकाशित 

Views: 127

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 4, 2025 at 3:12pm

धन्यवाद आ. बृजेश जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 4, 2025 at 12:17pm

ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
दुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश जी क्या ही शानदार कहन है

शेर दर शेर रवानगी अद्भुत है....

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 29, 2025 at 11:03am

धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 29, 2025 at 11:03am

धन्यवाद आ. सौरभ सर,

यह ग़ज़ल तरही ग़ज़ल के साथ ही हो गयी थी लेकिन एक ही रचना भेजने के नियम के चलते यहाँ पोस्ट की.
चाहता तो मिक्स खिचडी कर के इसके पाँच शेर और उसके 6 शेर रख कर ११ शेर के तहत पोस्ट कर देता लेकिन उस ग़ज़ल को अधिकतर हिंदी शब्दों में बाँधा है और इसे अधिकांश उर्दू शब्दों में. 
आपको ग़ज़ल पसंद आई तो कहना सार्थक हुआ .
सादर  

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 29, 2025 at 7:37am

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। यह गजल भी बहुत सुंदर हुई है। हार्दिक बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2025 at 1:30pm

आदरणीय नीलेश भाई, 

आपकी इस प्रस्तुति के भी शेर अत्यंत प्रभावी बन पड़े हैं. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें> 

मतला तो कमाल हुआ ही है. इसके बाद का शेर तो एकदम से मुग्ध कर देता है. 

जादू टोना यूँ लब ओ रुख़्सार भी करते रहे
जो मुदावा थे वही बीमार भी करते रहे. ...   ओह्होह ... वाह वाह..  बढिया बढिया .. 

ऐसा नहीं कि बाकी अश’आर पर ध्यान नहीं जाता. लेकिन निम्नलिखित शेरों ने अपनी खास जगह बनाई है. 

जिस्म को जीते रहे हम एक क़िस्सा मान कर  
और अपनी रूह को तैय्यार भी करते रहे.   ...      क्या बात है. बहुत सुंदर .. 

‘नूर’ ऐसा था कि चुँधियाने लगीं आँखें तो फिर  
बंद आँखों ही से हम दीदार भी करते रहे. ..........  वाह वाह .. तखल्लुस का मकते में वाकई बहुत ही सार्थक प्रयोग हुआ है.

आदरणीय, ढेर सारी बधाई बनती है. जय हो.. 

और, मिसरों का वजन भी लिख देना था. आगे कौन जानेगा कि यह मिसरा तरह के तौर पर लिया गया था ?

 शुभ-शुभ

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 28, 2025 at 1:04pm

धन्यवाद आ. अजय जी ..
.
जिस्म और रूह के सम्बन्ध में रूह को किसलिए तैयार किया जाता है यह ज़रा सा फ़लसफ़ा और थोड़ी से शाइरी जानने वाला समझता है अत: इस पर बात करना बनता नहीं है.
मैं अगर एक ज़मीन पर दो ग़ज़लें कह रहा हूँ तो आपको आश्वस्त होना चाहिए कि मैंने सभी प्रकार के शब्द और हर एक भी  की संभावनाएं जांचने के बाद ही ऐसा कर रहा हूँ. 
मैं वैसे भी तुकबन्दी के लिए अथवा सिर्फ ग़ज़ल कहने भर के लिए ग़ज़ल कहना एक अरसा पहले बंद कर चुका हूँ. 
ग़ज़ल तक आने और पढ़ने हेतु आभार . 

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय on May 28, 2025 at 12:44pm

मुशायरे की ही भाँति अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई नीलेश जी। मतला बहुत अच्छा लगा। अन्य शेर भी शानदार हुए हैं।

जिस्म को जीते रहे हम एक क़िस्सा मान कर
और अपनी रूह को तैय्यार भी करते रहे.//  रूह को तैयार किस बात के लिए। ऐसा लगता है जैसे कुछ अधूरापन सा हो।

मक़ते में "भी" का निर्वाह पुनर्विचार चाह रहा है। "भी" के बिना भी बात स्पष्ट है। चुँधियाना भी पहली बार ही पढ़ रहा हूँ। चौंधियाना ही पढ़ने-सुनने भी आता है।

बाक़ी सब बहुत बढ़िया हुआ है हमेशा की तरह। अच्छी ग़ज़ल के लिए पुनः बधाई।

सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 27, 2025 at 4:45pm

धन्यवाद आ. रवि जी 

Comment by Ravi Shukla on May 27, 2025 at 12:47pm

आदरीणीय नीलेश जी तरही मिसरे पर मुशाइरे के बाद एक और गजल क साथ उपस्थिति पर आपको बहुत बहुत मुबारक बाद अच्छे शेर कहे हैं आपने बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service