For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-अपना है कहाँ

2122 2122 2122 212

1

औरों के जैसा मुकद्दर यार अपना है कहाँ

अपने दिल का जोर उसके दिल प चलता है कहाँ

2

रात होती है कहाँ और दिन गुज़रता है कहाँ

मन मुआफ़िक़़ ज़िन्दगी में जीना मरना है कहाँ

3

एक दिन में कुछ नहीं पर एक दिन होगा ज़रूर

आदमी ये सब्र तब तक यार रखता है कहाँ'

4

आज तक कोई नहीं यह जान पाया दोस्तो

इस ज़माने को बनाने वाला रहता है कहाँ

 5

किस तरह भर लूँ उनींदी आँखों में ख़्वाबों के रंग

थपकियाँ देकर सुलाने चाँद आया है कहाँ

6

रूह को"निर्मल" मयस्सर क़ुर्ब हो भी किस तरह 

वो नज़र अपनी वहाँ तक ले के जाता है कहाँ

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 595

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by gumnaam pithoragarhi on May 21, 2022 at 8:30am

वाह बहुत खूब गजल हुई है है .। बहुत खूब .. 

Comment by gumnaam pithoragarhi on May 21, 2022 at 8:28am

वाह बहुत खूब गजल हुई है है .। बहुत खूब .. 

Comment by Rachna Bhatia on May 14, 2022 at 3:55am

आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार।सर् आपके कहे अनुसार सुधार कर दिए हैं।

ग़ज़ल सहीह करने के लिए बेहद शुक्रिय:।

Comment by Samar kabeer on May 12, 2022 at 6:09pm

''अपने दिल का जोर उसके दिल प चलता है कहाँ"

अब मिसरा ठीक है ।

Comment by Rachna Bhatia on May 12, 2022 at 5:45pm

आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी ग़ज़ल तक आने तथा अपनी राय रखने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

आपने सही कहा लेकिन मुझे लगता है कि ख़्वाब नींद आने पर ही आते हैं और ख़्वाब ज़रूरी नहीं कि मनपसंद आएँ। 

फिर भी आदरणीय समर कबीर सर् से बात कर लेती हूँ। 

सादर।

Comment by Rachna Bhatia on May 12, 2022 at 5:40pm

आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार। उत्तर देरी से देने के लिए क्षमा चाहती हूँ।

आदरणीय सर्, आपने सही कहा कि मिसरअ बह्र में नहीं है।

क्या पर को प कर दूँ।

"अपने दिल का जोर उसके दिल प चलता है कहाँ"

बाक़ी सही कर देती हूँ।

सर् आपका ग़ज़ल तक आने तथा इस्लाह देने के लिए बेहद शुक्रिय:।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 10, 2022 at 6:34pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ, मुहतरम समर कबीर साहिब ने बहतरीन इस्लाह फ़रमाई है, 

"किस तरह भर लूँ उनींदी आँखों में ख़्वाबों के रंग" इस मिसरे के शिल्प पर ग़ौर कीजियेगा, 'उनींदी आँखें' मतलब नींद से भरी हुई आँखें यानि ख़्वाब आ सकते हैं :-)) मुनासिब समझें तो इस मिसरे को यूँ कर लें -

"जागती आँखों में भर लूँ किस तरह ख़्वाबों के रंग" 

Comment by Samar kabeer on May 10, 2022 at 3:17pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी अआदाब , ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I 

'अपने दिल का जोर उसके दिल पर चलता है कहाँ'--ये मिसरा बह्र में नहीं देखें I 

'मन मुआफ़िक ज़िन्दगी में जीना मरना है कहाँ'--मुआफ़िक--"मुआफ़िक़"

'आदमी पर सब्र तब तक यार रखता है कहाँ'--इस मिसरे को यूँ कहें :-

'आदमी ये  सब्र तब तक यार रखता है कहाँ'

'रूह को"निर्मल" मयस्सर कुर्ब हो भी किस तरह'--कुर्ब --"क़ुर्ब" 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
8 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
8 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
9 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
10 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
13 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
18 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
19 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान की परिभाषा कर्म - केंद्रित हो, वही उचित है। आदरणीय उस्मानी जी, बेहतर लघुकथा के लिए बधाइयाँ…"
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service