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यूँ उम्र भर रहे बेताब देखने के लिये
किसी कँवल का हंसीं ख़ाब देखने के लिये
कहाँ थे देखो सनम हम कहाँ चले आये
वो गुलबदन के वो महताब देखने के लिये
न जाने कब से हक़ीक़त की थी तलब हमको
न जाने कब से थे बेताब देखने के लिये
छुआ तो जाना हर इक ख़्वाब था धुआँ यारो
बचा न कुछ भी याँ नायाब देखने के लिये
क़रीब जा के हर एक चीज खोयी है हमने
लुटे हैं ज़िंदगी शादाब देखने के लिये
कटी है ज़िंदगी अपनी भी यूँ उसूलों पर
फ़ज़ा में रह गया तल्ख़ाब देखने के लिये
हाँ एक बार किया था भरम निग़ाहों पर
गये थे दश्त में तालाब देखने के लिये
भटक रहे हैं अभी तक उन्हीं नज़ारों में
न मिल सका हमें गुल ख़्वाब देखने के लिये
उजाड़ कर मेरे ख़्वाबों की छोटी सी दुनिया
मुझे वो दे गया इक ख़्वाब देखने के लिये
यूँ दे के ज़ख़्म गया कोई ज़िंदगी भर को
किसी की आँख को ख़ूँ-नाब देखने के लिये
न जाने ख़ाक हुईं हैं याँ कितनी ज़िंदगियाँ
सुकून चैन का पायाब देखने के लिये
तमाम ज़िंदगी हमने गुजार दी 'आज़ी'
यहाँ तो ख़ुद को ज़फ़रयाब देखने के लिये
आज़ी तमाम
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
जी आदरणीय ब्रज जी बस कोशिश जारी है
आपका आभार ग़ज़ल तक आने के लिये
ऐसा लगता है की शायद दोषरहित ग़ज़ल लिखना असंभव है
अभी तक तो बाकी तो सब गुणीजनों की इस्लाह से इतना हुआ है कोशिश रहेगी आगे भी सुधार हो
समर गुरु जी जैसे निस्वार्थ इस्लाहकारों को ख़ुदा लंबी उम्र बख़्शे
सादर
जी आदरणीय अमीर जी सहृदय शुक्रिया ग़ज़ल तक आने के लिये
आपका दिल से आभार
सहृदय शुक्रिया आ नूर जी
आपकी ग़ज़ल मुझे बहुत पसंद आती है
ग़ज़ल तक आने के लिये शुक्रिया
मैं इस ग़ज़ल को जल्द ही दुरुस्त कर दूंगा कोशिश जारी है
भाई आजी तमाम जी जिस तरह से आप मेहनत कर रहे हैं...निश्चय ही एक दिन दोषरहित ग़ज़ल कहेंगे...ऐसी मेरी शुभकामनाएं हैं।
जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल की अच्छी कोशिश हुई है बधाई स्वीकार करें। मुहतरम समर कबीर साहिब ने मुकम्मल इस्लाह कर दी है। सादर।
आ. आज़ी साहब
मतला क्या कहना चाहता है यह स्पष्ट नहीं है..बाकी सब समर सर कह ही चुके हैं..
प्रयास के लिए बधाई 
सादर 
सादर प्रणाम गुरु जी
सहृदय शुक्रिया ग़ज़ल पर बारीकी से गौर फरमाने के लिये
दिल से आभार
मैं कोशिश करूँगा दुरुस्त करने की
जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, ओबीओ के तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है , बधाई स्वीकार करें I
`किसी कँवल का हंसीं ख़ाब देखने के लिये
किसी के हुस्न का सैलाब देखने के लिये`
मतला नहीं हुआ , दोनों मिसरे अलग अलग हैं इनमें रब्त पैदा नहीं हो सका , ग़ौर करें I
`वो गुलबदन वो आब ओ ताब देखने के लिये`
ये मिसरा बह्र में नहीं है , देखियेगा I
`छुआ तो जाना हर इक ख़ाब था धुंआ यारो`
इस मिसरे में `ख़ाब` को "ख़्वाब" और `धुंआ` को "धुआँ " कर लें I
`करीब जा के हर एक चीज खोयी है हमने
लुटे हैं खुद को ही ईजाब देखने के लिये`
इस शे`र के ऊला मिसरे में `करीब` को "क़रीब" और `एक` को "इक" कर लें , और सानी मिसरे में "ईजाब" शब्द का अर्थ होता है मंज़ूर , क़ुबूल , जो यहाँ काम नहीं दे रहा है , देखियेगा I
`हाँ एक बार किया था भरम निग़ाहों ने
दिली पसंद का आदाब देखने के लिये`
इस शे`र का भाव मेरी समझ में नहीं आया I
गिरह का मिसरा अच्छा है I
`न जाने ख़ाक-बसर हुईं कितनी ज़िंदग़ियाँ
सुकून ओ चैन का पायाब देखने के लिये`
इस शे`र का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है, और सानी में इज़ाफ़त का इस्तेमाल मुनासिब नहीं है क्योंकि `चैन` शब्द हिन्दी भाषा का है और `सुकून`शब्द अरबी भाषा का I
`तरस गये हैं ज़फ़रयाब देखने के लिये`
इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा :-
`यहाँ तो ख़ुद को ज़फ़रयाब देखने के लिये `
बाक़ी शुभ शुभ I
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