For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: किसी कँवल का हंसीं ख़ाब देखने के लिये

1212 1122 1212 112

यूँ उम्र भर रहे बेताब देखने के लिये

किसी कँवल का हंसीं ख़ाब देखने के लिये

कहाँ थे देखो सनम हम कहाँ चले आये

वो गुलबदन के वो महताब देखने के लिये

न जाने कब से हक़ीक़त की थी तलब हमको

न जाने कब से थे बेताब देखने के लिये

छुआ तो जाना हर इक ख़्वाब था धुआँ यारो

बचा न कुछ भी याँ नायाब देखने के लिये

क़रीब जा के हर एक चीज खोयी है हमने

लुटे हैं ज़िंदगी शादाब देखने के लिये 

कटी है ज़िंदगी अपनी भी यूँ उसूलों पर

फ़ज़ा में रह गया तल्ख़ाब देखने के लिये

हाँ एक बार किया था भरम निग़ाहों पर

गये थे दश्त में तालाब देखने के लिये

भटक रहे हैं अभी तक उन्हीं नज़ारों में

न मिल सका हमें गुल ख़्वाब देखने के लिये

उजाड़ कर मेरे ख़्वाबों की छोटी सी दुनिया

मुझे वो दे गया इक ख़्वाब देखने के लिये

यूँ दे के ज़ख़्म गया कोई ज़िंदगी भर को

किसी की आँख को ख़ूँ-नाब देखने के लिये

न जाने ख़ाक हुईं हैं याँ कितनी ज़िंदगियाँ

सुकून चैन का पायाब देखने के लिये

तमाम ज़िंदगी हमने गुजार दी 'आज़ी'

यहाँ तो ख़ुद को ज़फ़रयाब देखने के लिये

आज़ी तमाम

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 653

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Aazi Tamaam on October 18, 2021 at 1:20pm

जी आदरणीय ब्रज जी बस कोशिश जारी है

आपका आभार ग़ज़ल तक आने के लिये

ऐसा लगता है की शायद दोषरहित ग़ज़ल लिखना असंभव है

अभी तक तो बाकी तो सब गुणीजनों की इस्लाह से इतना हुआ है कोशिश रहेगी आगे भी सुधार हो

समर गुरु जी जैसे निस्वार्थ इस्लाहकारों को ख़ुदा लंबी उम्र बख़्शे

सादर

Comment by Aazi Tamaam on October 18, 2021 at 1:14pm

जी आदरणीय अमीर जी सहृदय शुक्रिया ग़ज़ल तक आने के लिये

आपका दिल से आभार

Comment by Aazi Tamaam on October 18, 2021 at 1:13pm

 सहृदय शुक्रिया आ नूर जी

आपकी ग़ज़ल मुझे बहुत पसंद आती है

ग़ज़ल तक आने के लिये शुक्रिया

मैं इस ग़ज़ल को जल्द ही दुरुस्त कर दूंगा कोशिश जारी है

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 17, 2021 at 4:44pm

भाई आजी तमाम जी जिस तरह से आप मेहनत कर रहे हैं...निश्चय ही एक दिन दोषरहित ग़ज़ल कहेंगे...ऐसी मेरी शुभकामनाएं हैं।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 14, 2021 at 4:55pm

जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल की अच्छी कोशिश हुई है बधाई स्वीकार करें। मुहतरम समर कबीर साहिब ने मुकम्मल इस्लाह कर दी है।  सादर। 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 14, 2021 at 8:59am

आ. आज़ी साहब
मतला क्या कहना चाहता है यह स्पष्ट नहीं है..बाकी सब समर सर कह ही चुके हैं..
प्रयास के लिए बधाई 
सादर 

Comment by Aazi Tamaam on October 11, 2021 at 3:49pm

 सादर प्रणाम गुरु जी

सहृदय शुक्रिया ग़ज़ल पर बारीकी से गौर फरमाने के लिये

दिल से आभार

मैं कोशिश करूँगा दुरुस्त करने की

Comment by Samar kabeer on October 11, 2021 at 3:10pm

जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, ओबीओ के तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है , बधाई स्वीकार करें  I 

`किसी कँवल का हंसीं ख़ाब देखने के लिये

किसी के हुस्न का सैलाब देखने के लिये`

मतला नहीं हुआ , दोनों मिसरे अलग अलग हैं इनमें रब्त पैदा नहीं हो सका , ग़ौर करें I 

`वो गुलबदन वो आब ओ ताब देखने के लिये`

ये मिसरा बह्र में नहीं है , देखियेगा I 

`छुआ तो जाना हर इक ख़ाब था धुंआ यारो`

इस मिसरे में `ख़ाब` को "ख़्वाब" और `धुंआ` को  "धुआँ " कर लें I 

`करीब जा के हर एक चीज खोयी है हमने

लुटे हैं खुद को ही ईजाब देखने के लिये`

इस शे`र के ऊला मिसरे में `करीब` को "क़रीब" और `एक` को "इक" कर लें , और सानी मिसरे में "ईजाब" शब्द का अर्थ होता है मंज़ूर , क़ुबूल , जो यहाँ काम नहीं दे रहा है , देखियेगा  I

`हाँ एक बार किया था भरम निग़ाहों ने

दिली पसंद का आदाब देखने के लिये`

इस शे`र का भाव मेरी समझ में नहीं आया I 

गिरह का मिसरा अच्छा है I 

`न जाने ख़ाक-बसर हुईं कितनी ज़िंदग़ियाँ

सुकून ओ चैन का पायाब देखने के लिये`

इस शे`र का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है, और सानी में इज़ाफ़त का इस्तेमाल मुनासिब नहीं है क्योंकि `चैन` शब्द हिन्दी भाषा का है और `सुकून`शब्द अरबी भाषा का I 

`तरस गये हैं ज़फ़रयाब देखने के लिये`

इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा :-

`यहाँ तो ख़ुद को ज़फ़रयाब देखने के लिये `

बाक़ी शुभ शुभ  I 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
5 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service