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ग़ज़ल

221 1221 1221 122

.

आँखों मे छुपी अश्कों की जागीर का मतलब
समझेगी न ये दुनिया मेरी पीर का मतलब

चल मुझसे नहीं तुझको महब्बत ज़रा समझा
वो पर्स में तेरे मेरी तस्वीर का मतलब

जन्नत है कहीं गर तो यहीं पर है यहीं पर
क्या था कभी क्या आज है कश्मीर का मतलब

थे एक से बढ़ एक गुरु फिर भी न समझे
वो बीच सभा खिंचते हुए चीर का मतलब

इस जिस्म के हर हिस्से में बाँधे हूँ मैं ज़ेवर
कैसे मुझे मालूम हो जंजीर का मतलब

आशिक़ ये नयी पौध के क्या जानें है क्या इश्क़
राँझा है भला कौन है क्या हीर का मतलब

तू देख ले तो अच्छी न देखे तो बुरी है
बदले यूँ 'सिफ़र' के लिये तक़दीर का मतलब

मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित

अंजलि सिफ़र

Views: 864

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 21, 2020 at 6:25am

आ. अंजलि जी, गजल का प्रयास अच्छा हुआ है । हार्दिक बधाई ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 17, 2020 at 8:08pm

वाह क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीया...हरेक शे'र लाजबाब।

Comment by Rachna Bhatia on November 9, 2020 at 1:09pm

आदरणीया अंजलि गुप्ता जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई।सर् द्वारा दी गई इस्लाह से भी सीखने को मिला।रदीफ़ बहुत अच्छी ली आपने, बधाई।

Comment by narendrasinh chauhan on November 9, 2020 at 12:24pm

khub sundar rachna 

Comment by anjali gupta on November 9, 2020 at 12:23am

आदरणीय सालिक गणवीर जी, आपका दिली शुक्रिया

Comment by anjali gupta on November 9, 2020 at 12:21am

आदरणीय समर sir, 

sir वो शब्द की ज़रूरत महसूस हो रही।है ज़ोर डालने के लिए।

जन्नत है ज़मीं पर तो यहीं पर है यहीं पर

क्या यूँ कहने से बेहतरी हो रही है sir क्योंकि कश्मीर के लिए ही ये कहा जाता था कभी

/थे इक से बड़े एक गुरु फिर भी न समझे/ क्या ये बेहतर है

/बाँधे हूँ मैं ज़ेवर/ sir यहॉं बांधना जानबूझकर इस्तेमाल किया है क्योंकि जब मन से न पहना जाए तो ज़ेवर भी ज़ंजीर महसूस होता है और जबरन बाँधे जाने का एहसास होता है। ज़ंजीर में टंकण त्रुटि के लिए मुआफ़ी चाहती हूँ sir। ग़ज़ल को समय देने के लिए और मार्गदर्शन के लिए जितना आभार व्यक्त करूं कम है।

Comment by Samar kabeer on November 8, 2020 at 12:08pm

मुहतरमा अंजलि गुप्ता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।


'वो पर्स में तेरे मेरी तस्वीर का मतलब'

इस मिसरे में 'वो' शब्द भर्ती का है, ग़ौर करें ।

'जन्नत है कहीं गर तो यहीं पर है यहीं पर
क्या था कभी क्या आज है कश्मीर का मतलब'

इस शैर के दोनों मिसरे अलग अलग हैं,इनमें रब्त पैदा नहीं हो सका,ग़ौर करें ।

'थे एक से बढ़ एक गुरु फिर भी न समझे'

इस मिसरे में 'एक से बढ़ एक' वाक्य दुरुस्त नहीं सहीह वाक्य है "एक से बढ़ कर एक' ग़ौर करें ।

'इस जिस्म के हर हिस्से में बाँधे हूँ मैं ज़ेवर
कैसे मुझे मालूम हो जंजीर का मतलब'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, और ऊला में 'ज़ेवर' बाँधेनहीं जाते,ग़ौर करें,और सहीह शब्द "ज़ंजीर" है ।

Comment by सालिक गणवीर on November 6, 2020 at 10:08pm

मुहतरमा अंजलि गुप्ता जी
सादर अभिवादन
उम्दा क्या ग़ज़ल कही आपने,वाह। एक एक लफ्ज़ और हर एक अशआर के लिए तह -ए -दिल से दाद और मुबारक़बाद क़ुबूल करें।

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