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Harash Mahajan's Blog (27)

मेरी चिंता मत न कर तू दिल की चिंता जारी रख

2222 2222 2222 222



मेरी चिंता मत न कर तू दिल की चिंता जारी रख,

कितने बलवे झेले तूने, यारों से अब यारी रख ।



उसके ज़ुल्मों से तंग आकर मर्यादा न भूलो तुम,

कर्मों का सब लेखा है ये अपना मन न भारी रख ।



जब देखो वो सरहद पर, बारूदी खेलों में मशगूल,

ताँका-झांकी बंद न होगी अपनी भी तैयारी रख ।



कब तक बिजली गर्जन कर तू बादल पर मंडरायेगी,

पापी तुझको भूलें हैं सब, अपनी भागीदारी रख ।



मैखाने में गिर कर उठना पीने वालों का दस्तूर,

गिर न… Continue

Added by Harash Mahajan on August 21, 2015 at 5:28pm — 13 Comments

दिल चाहता है तुझसे कभी, ना गिला करूँ

2212       1221      2212     12



दिल चाहता है तुझसे कभी, ना गिला करूँ,

इस ज़िन्दगी में तुझसे यही सिलसिला करूँ |



दिन भर शराब पी के हुआ,था मैं दरबदर,

अब ढूंढता हूँ चादर ग़मों की सिला करूँ |



नफरत थी जिन दिलों में, भुलाया नहीं मुझे,

दिल में बता खुदा, उनके, कैसे खिला करूँ |



अमन-ओ-अमां के साये ही जिनसे नसीब हो,

ऐसे चमन  जमी दर ज़मीं  काफिला करूँ |



तन्हा है सब सफ़र और तनहा हैं रास्ते,

अब सोचता हूँ तुझसे यहाँ ही मिला…

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Added by Harash Mahajan on August 6, 2015 at 6:03pm — 13 Comments

बन गया मैं यूँ खुदा सूली पे चढ़ जाने के बाद

2122 2122 2122 212



बन गया मैं यूँ खुदा, सूली पे चढ़ जाने के बाद,

पत्थरों में पूजे मुझको, अब सितम ढाने के बाद |



बनके पत्थर देखता हूँ,  इंतिहा बुत परस्ती की,

फूल बरसाए है दुनियां, चोट बरसाने के बाद |

 

मैं था पागल इश्क में, उसको न जाने क्या हुआ,

लौ बुझा दी इस दीये की, इतना समझाने के बाद |



बे-वफाई छेदती है, नर्म दिल की परतों को,

हूर रुख्सत हो कभी दिल में वो बस जाने के बाद |



इतना रोया हूँ, मगर अब, अश्क आँखों में…

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Added by Harash Mahajan on August 3, 2015 at 1:30pm — 9 Comments

किस तरह नादानियों में हम मुहब्बत कर गए

2122 2122 2122 212



किस तरह नादानियों में हम मुहब्बत कर गए,

दी सजा दुनियां ने हमको सारे अरमां मर गए |



कब तलक खारिज ये होगी हक परस्तों की ज़मीं,

महके गुलशन तो समझना कातिलों के सर गए |



बंदिशें अब बेटियों पर, आसमां को छू रहीं,

किस तरह बदला ज़माना, बरसों पीछे घर गए |



प्यार की, हर पाँव से, अब बेड़ियाँ कटने लगीं,

नफरतों में, जुल्फों से, अब फूल सारे झर गए |



लुट रही अस्मत चमन की, कागज़ी घोड़े यहाँ,…

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Added by Harash Mahajan on August 1, 2015 at 1:00pm — 13 Comments

बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब (इस्लाही गजल )

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बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब,

देता तुझे आवाज  तेरे मंदिरों में अब |



मांगी थी मैंने उम्र की संजीदगी लेकिन, 

क्यों इस तरह  मुहताज तेरे मंदिरों में अब |



मन जिसका देखूं दुश्मनी की नीव पे काबिज़, 

कैसे करूँ परवाज़ तेरे मंदिरों में अब | 



बस रौशनी की खोज में भटका तमाम उम्र

पगला गया, नेवाज तेरे मंदिरों में अब |



ले चल मुझे शमशान, कोई गम जहाँ ना हो, 

मेरा गया हमराज, तेरे मंदिरों में अब |…

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Added by Harash Mahajan on July 30, 2015 at 11:02am — 37 Comments

खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले ( इस्लाही ग़ज़ल )

खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले,

जहाँ ढूँढू मैं अरमां को , वहां अरमां भी कम निकले |



हजारों गम मेरे दिल में न मुझको राख ये कर दें ,

कहीं इन सुर्ख आँखों से नदी बन के न हम निकले |



तुम्हें लिख-लिख के ख़त अक्सर कभी मैं भूल जाता था,

पुराने ख़त दराजों से जो निकले आज, नम निकले |



किसी की जुस्तजू करके कि खुद को खो चुका हूँ मैं,

उधर से बेरुखी उनकी इधर दुनिया से हम निकले |



जगह छोड़ी है जख्मों ने कहाँ अब 'हर्ष' सीने में,…

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Added by Harash Mahajan on July 28, 2015 at 7:00pm — 4 Comments

अपनी साँसें भी मुझे अपनी सी लगती ही नहीं

अपनी साँसे भी मुझे अपनी सी लगती ही नहीं,

बात इतनी सी मगर दिल से ये निकली ही नहीं |



दिल में आतिश है बहुत ये हुस्न बे जलवा नहीं

चाहता हूँ आग उसमें पर वो जलती ही नहीं |



शाम से शब ग़ैर की ज़ुल्फ़ों में जब करने लगे

रात ऐसी जो हुई फिर सुब्ह निकली ही नहीं |



जब तलक थे हमकदम, अपना सफ़र चलता रहा,

दरिया क़तरा जब हुवा, मंज़िल वो मिलती ही नहीं |



इस कदर रोया हूँ मैं आखें भी धुंधला सी गई,

आज कुछ बूँदे भी आँखों से निकलती ही नहीं |  …

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Added by Harash Mahajan on July 25, 2015 at 6:30pm — 16 Comments

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