For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरी चिंता मत न कर तू दिल की चिंता जारी रख

2222 2222 2222 222

मेरी चिंता मत न कर तू दिल की चिंता जारी रख,
कितने बलवे झेले तूने, यारों से अब यारी रख ।

उसके ज़ुल्मों से तंग आकर मर्यादा न भूलो तुम,
कर्मों का सब लेखा है ये अपना मन न भारी रख ।

जब देखो वो सरहद पर, बारूदी खेलों में मशगूल,
ताँका-झांकी बंद न होगी अपनी भी तैयारी रख ।

कब तक बिजली गर्जन कर तू बादल पर मंडरायेगी,
पापी तुझको भूलें हैं सब, अपनी भागीदारी रख ।

मैखाने में गिर कर उठना पीने वालों का दस्तूर,
गिर न पाये नज़रों से तू, इतनी तो खुद्दारी रख ।

हर्ष महाजन

"मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 878

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on August 25, 2015 at 2:17pm

आदरणीय मिथिलेश जी आपके मार्गदर्शन से इस ग़ज़ल का असल स्वरूप कुछ यूँ हुआ.....

मेरी चिंता मत कर लेकिन, दिल की चिंता जारी रख,
कितने बलवे झेले तूने, यारों से अब यारी रख |

उनके ज़ुल्मों से तंग आकर, मर्यादा मत भूलो तुम,
कर्मों का सब लेखा है ये,  अपना मन मत भारी रख ।

जब देखो वो सरहद पर, बारूदी खेलों में मशगूल,
ताँका-झांकी बंद न होगी अपनी भी तैयारी रख ।

कब तक बिजली गर्जन कर तू बादल पर मंडरायेगी,
पापी तुझको भूलें हैं सब, अपनी भागीदारी रख ।

मैखाने में गिर कर उठना पीने वालों का दस्तूर,
मत गिर जाना नज़रों से तू, इतनी तो खुद्दारी रख ।


यूँ ही अपना स्नेह बनाए रखियेगा.....आभार !!

Comment by Harash Mahajan on August 25, 2015 at 1:22pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ग़ज़ल पर आने के लिए तह-इ-दिल से शुक्रिया --सर आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा ये ग़ज़ल कहना सफल हुआ... |उम्मीद है आप का इसी तरह सहयोग और स्नेह  मिलता रहेगा | साभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2015 at 10:13am

आदरणीय हर्ष भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ॥  मिथिलेश भाई जी ने काफी कुछ समझा दिया है , खयाल कीजीयेगा , मत और न दोनो समानार्थी  हैं , मत करो या न करो , दोनो एक साथ सही नही है , देख लीजियेग ।

Comment by Harash Mahajan on August 24, 2015 at 12:42pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी कितने कम शब्दों में आपने इतना कुछ समझा दिया | मेरे लिए आज का दिन बहुत ही शुभ और फायदेमंद साबित हुआ है सर | हाँ सर....आदरणीय गोपाल सर के संकेतानुसार ही मैंने "न" की जगह "अब" रखने का सोचा था | दिल से शुक्रिया |साभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 24, 2015 at 11:35am

आदरणीय हर्ष जी, मफ्ऊलातुन के विषय में मुझे कोई जानकारी नहीं है. 

 "न" और 'ना'  दोनों का वज्न 1 ही होता है.

//मेरी चिंता मत न कर तू दिल की चिंता जारी रख,// इस मिसरे में मत और न का एक साथ प्रयोग मुझे समझ नहीं आया. आपको इस विषय पर आदरणीय गोपाल सर भी संकेत कर चुके है.  व्याकरण की दृष्टि से तो सर्वथा गलत है.

आपके इस मिसरे में देखिये कितने बढ़िया चौकल बने है और मिसरे की रवानी भी खूब है 

कितने / बलवे  /   झेले   /  तूने /    यारों / से अब / यारी  /  रख 

फैलुन / फैलुन / फैलून / फैलून / फैलून /  फैलून /  फैलून  / फा 

चौकल/ चौकल/ चौकल/ चौकल/ चौकल/ चौकल / चौकल/  द्विकल  

Comment by Harash Mahajan on August 24, 2015 at 11:10am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी अरकान तो स्पष्ट ही है वज़न के अनुसार सर |
क्या रुक्न के समूह को अरकान नहीं समझा जा सकता ?
जैसे मैंने लिखी....
2222 2222 2222 222

सर क्या हमारे लिए ये ज़रूरी है कि हम उर्दू में ही अरकान को स्पष्ट करें | मैंने कहने का अर्थ इतना है सिर्फ...
क्या हम सात फैलुन + एक फा की जगह
तीन मफ्ऊलातुन + एक मफ्ऊलुन ..नहीं कह सकते ?
सर  "कहीं कहीं द्विकल-त्रिकल-चौकल के संयोजन"..........इस बारे में भी इतना गूड समझ से परे हुआ जाता है...थोड़ा आसान सा शब्द दीजियेगा जिस से मैं आपके दिशा निर्देश का पालन कर सकूं |

साभार !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 24, 2015 at 10:05am
आदरणीय हर्ष जी, आपने जो बह्र का वज़्न लिखा है उसके अर्कान भी लिख दें तो बात स्पष्ट होगी।
Comment by Harash Mahajan on August 24, 2015 at 9:52am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपका ग़ज़ल पर रुकना मेरी कलम को गति देना सा लगता है | एक नई ऊर्जा उत्पन्न होती है | शुक्रिया सर | आपने जो शेर दर शेर इंगित किया तप्सिरा देखा हूँ ...आपकी लेखनी से निकले शब्दों से ग़ज़ल की आब भी बढ़ी है , अच्छी तरह समझ में भी आया | इसके लिए हृदय ताल से आपका आभारी हूँ |.....लेकिन दुबिधा दूर करने हेतु सर "न" को '2" मात्रा में लेना क्या अनुचित है ? अगर ऐसा है तो मुझे अपनी बहुत सी गजलों में दुबारा अपने अहसासों संग उतरना होगा  |

दुसरे बहर के मुताल्लिक मैंने अपनी ओर से जिस बहर को कहा है ...

वो 2222 2222 2222 222 ये  है | लेकिन
आपने उसे 22 22 22 22 22 22 2 कि ओर इशारा किया है | मैंने यहाँ कई और सज्जन भी हैं जो आप की ही कही बहर पर कहते हैं | इसके समाधान हेतु भी कुछ प्रकाश डालिएगा तो मेरी दुविधा दूर हो सके |

आपकी हौंसिला अफजाई के लिए दिली शुक्रिया एक बार फिर.....इंतज़ार में |
साभार

हर्ष महाजन


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 23, 2015 at 10:38pm

आदरणीय हर्ष महाजन जी बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है. सात फैलुन + एक फा है इसे पढ़कर  16-14 पर यति वाले कुकुभ छंद की याद भी आ गई.इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है. कहीं कहीं द्विकल-त्रिकल-चौकल के संयोजन अथवा न के प्रयोग से मिसरे बेबहर लग रहे थे उन्हें इंगित कर रहा हूँ. 

मेरी चिंता मत न कर तू दिल की चिंता जारी रख,...... मेरी चिंता मत कर लेकिन, दिल की चिंता जारी रख
कितने बलवे झेले तूने, यारों से अब यारी रख ।...... बढ़िया मतला 

उसके ज़ुल्मों से तंग आकर मर्यादा न भूलो तुम,...... उनके ज़ुल्मों से तंग आकर, मर्यादा मत भूलो तुम,
कर्मों का सब लेखा है ये अपना मन न भारी रख ।.... कर्मों का सब लेखा है ये,  अपना मन मत भारी रख ।

जब देखो वो सरहद पर, बारूदी खेलों में मशगूल,
ताँका-झांकी बंद न होगी अपनी भी तैयारी रख ।........  बहुत बढ़िया शेर 

कब तक बिजली गर्जन कर तू बादल पर मंडरायेगी,
पापी तुझको भूलें हैं सब, अपनी भागीदारी रख ।........... वाह भई बहुत खूब कहा है.

मैखाने में गिर कर उठना पीने वालों का दस्तूर,
गिर न पाये नज़रों से तू, इतनी तो खुद्दारी रख ।....  मत गिर जाना नज़रों से तू, इतनी तो खुद्दारी रख । यहाँ आप लिख न रहे हैं लेकिन उच्चारण ना का कर बह्र के वज्न को संतुष्ट करना पड़ रहा है. 

इस बेहतरीन ग़ज़ल पर बहुत बहुत बधाई. 

Comment by Harash Mahajan on August 23, 2015 at 1:39pm
आदरणीय डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आपकी उपस्थिति ने ही इस ग़ज़ल को पुरअसर कर दिया सर । आपकी कही बात मतले के मुताल्लिक पुन: विचार करने की तो है सर । इसमें सुधार कर "न" की जगह हम "अब" पढ़ें तो भी वज़न, लय और विचार किसी में कोई अंतर नहीं पड़ेगा ।
सर दिशा देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया । साभार ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
11 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
17 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service