रघुनाथ ट्यूर से लौटा तो पिताजी दिखाई नहीं दिये। वे बरामदे में ही बैठे अखबार पढ़ते रहते थे। उनके कमरे में भी नहीं थे।रघुनाथ का नियम था कि वह कहीं से आता था तो पिता के चरण स्पर्श करता था।
"शीला, पिताजी नहीं दिख रहे। कहीं गये हैं क्या?"
"मुझे कौनसा बता कर जाते हैं? तुम हाथ मुंह धोलो। चाय पकोड़े लाती हूँ।" शीला के लहजे से रघुनाथ को कुछ शंका हुई।
इतने में उसका सात वर्षीय बेटा बिल्लू भी आगया।
"बिल्लू, बाबा तुम्हारे साथ गये थे क्या?"
"बाबा तो गाँव वापस चले गये। बाबा उस दिन बहुत रो रहे थे।"
"तुमने कैसे जाना कि वे गाँव ही गये हैं?"
"वे रास्ते में मुझे मिले थे तो उनके हाथ में लाठी और थैला था तथा कंधे पर कंबल पड़ा था।इसलिये मैंने पूछ लिया था।"
तभी शीला चाय और पकोड़े लेकर आगयी।आते ही उसने बिल्लू को निर्देश दिया कि तुम्हारी चाय और पकोड़े तुम्हारे कमरे में रखे हैं।बिल्लू चला गया ।
चाय पीकर रघुनाथ बिल्लू के कमरे में चला गया," हाँ तो बिल्लू बेटा, तुम क्या बता रहे थे बाबा के बारे में?"
"पापा, ये माँ अच्छी नहीं है।"
"नहीं बिल्लू, ऐसा नहीं बोलते अपनी माँ के लिये।"
"वह तो खुद ही कहती हैं कि तू मेरा सौतेला बेटा है, असली नहीं।"
"चलो अच्छा यह बताओ बाबा गाँव क्यों चले गये?"
"पापा, माँ बाबा को बहुत सताती थीं। चाय मांगते थे तो डाँट देती थी।खाना भी समय पर नहीं देती थी। ठंडा खाना देती थीं जबकि बाबा को ठंडी रोटी नहीं भाती थी।"
"यह तुम्हें बाबा ने बताया|"
"नहीं पापा, बाबा कुछ नहीं बताते थे।मैंने खुद देखा।एक दिन तो बाबा पूरे दिन भूखे रहे।"
"ऐसा क्यूं?"
"उस दिन बाबा ने बोला,"दाल में नमक तेज है" तो माँ उनकी थाली उठा ले गयीं और बोलीं कि, "आपको भूख नहीं है इसलिये नखरे कर रहे हो।"
"बाबा गाँव गये थे उस दिन भी कुछ हुआ था क्या?"
"हाँ बाबा के बिस्तर पर माँ ने पानी डाल दिया और उन्हें बुलाकर भला बुरा कहा कि आपको शर्म नहीं आती इस उम्र में भी बिस्तर गीला करते हो।"बाबा ने मना किया तो माँ बोलती हैं कि, झूठ भी बोलते हो।"
शीला दरवाजे पर खड़ी यह सब सुन रही थी,"देखो कितना झूठा है ये। इतनी सी उम्र में कैसे कहांनियाँ गढ़ लेता है?"
"नहीं शीला, मैं बिल्लू को तुमसे बेहतर जानता हूँ। मीरा ने उसे बहुत अच्छे संस्कार दिये हैं | तुम पिताजी के मित्र की बेटी हो और वे तुम्हारी बहुत तारीफ़ करते थे।इसलिये उन्हीं के दवाब में मैंने तुमसे दूसरी शादी की थी क्योंकि मेरा ट्यूरिंग जॉब था।लेकिन तुम हमारी अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरीं|"
"रघु ये तुम कैसी बातें कर रहे हो?"
"शीला मैं तुम्हें आखिरी मौका दे रहा हूँ।मैं पिताजी को लेने जा रहा हूँ।तुम अगर उनके साथ नहीं रहना चाहो तो अपना ठिकाना देखो, कोई नहीं रोकेगा।"
मौलिक,अप्रकाशित एवम अप्रसारित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । अति उत्तम कथा हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।
हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी ।
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब जी ।आदाब।
आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन। बहुत मार्मिक और यथार्थपूर्ण लघुकथा लिखी है आपने। बधाई स्वीकार कीजिये
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब, अच्छी लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।
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