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Er. Ganesh Jee "Bagi"'s Blog – September 2013 Archive (5)

लघुकथा : बहन जी (गणेश जी बागी)

"अरे वाह ! कुछ ही दिनों में ये मोबाइल, ये नया टैब ! क्या बात है मैडम जी, कोई लाटरी लग गई है क्या ?", राधिका ने अपनी रूम-मेट आयशा को छेड़ते हुए कहा | 

"नहीं रे, ये दोनो गैजेट तो प्रशांत ने ग़िफ़्ट किये हैं |"

"देख आयशा, मैने तुझे पहले भी आगाह किया था.. आज फिर कह रही हूँ, ये प्रशांत और उसके दोस्तों से संभल के रह... वे लोग मुझे ठीक...."…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 30, 2013 at 9:30pm — 40 Comments

लघुकथा : मिठाई (गणेश जी बागी)

काम बेहद मामूली था पर बड़े बाबू फाइल पर कुंडली मारे बैठे थे । मित्रों ने बताया कि बिना हजार-डेढ़ हजार का चढ़ावा लिए वो काम करने वाले नही हैं । गुप्ताजी यह सुन कर चुप रह गये । 



"बड़े बाबू एक छोटा सा काम आपके पास पेंडिंग है, यदि कर देते तो बड़ी मेहरबानी होती"

"हाँ-हाँ, गुप्ताजी हो जाएगा, थोड़ा खर्च-वर्च कर दीजिएगा", बड़े बाबू बगैर लाग-लपेट बोल उठे ।

"देखिए बड़े बाबू मैं खर्च करने की स्थिति मे तो नही…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2013 at 8:59pm — 60 Comments

ग़ज़ल (गणेश जी बागी)

ग़ज़ल

वजन : 2212 2212

 

बकवास सारा आ गया,

खबरों में रहना आ गया ।1। 

 

जो धड़कनें पढ़ने लगे, 

तो शेर कहना आ गया ।2।

 

जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,

तब ही से सहना आ गया ।3।

 

जब से सियासत सीख ली,

कह के मुकरना आ गया ।4।

 

दो बेटियों का बाप हूँ,

मुझको भी डरना आ गया ।5।

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => …

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 13, 2013 at 9:00pm — 41 Comments

लघुकथा : डर (गणेश जी बागी)

          टीवी देखते देखते अचानक राम लाल बड़ी तेज़ी से फोन की ओर लपका, घर से दूर बड़े शहर मे पढ़ रही बिटिया से बात कर कुछ संयत हुआ, फिर दोनो आँखें बंद कर बुदबुदाया ……
"हे !  प्रभु आपका लाख-लाख शुक्र है बिटिया सकुशल है" 
                   टीवी पर अभी भी एक महिला फोटोग्राफर के साथ हुए सामूहिक बलात्कार पर विश्लेषण जारी था…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 5, 2013 at 7:56pm — 44 Comments

लघुकथा : त्रिया चरित्र (गणेश जी बागी)

ये साहब बहुत ही कड़क और अत्यंत नियमपसंद स्वाभाव के थे ।  कई दिन रेखा देवी की हाजिरी कट गई |  फटकार लगी सो अलग ।

उस दिन साहब के चैम्बर से तेज आवाज़ें आ रही थीं । रेखा देवी चीखे जा रही थीं, "ये साहब मेरी इज़्ज़त पर हाथ डाल रहा है.."

सब देख रहे थे, ब्लाउज फटा हुआ था । साहब भी भौचक थे । उनकी साहबगिरी और बोलती दोनो बंद थी |



साहब संयत हुए और बोले, "जाओ रेखा देवी.. जब आना हो कार्यालय आना और जब जाना हो जाना, आज से मैं तुम्हें कुछ नही कहनेवाला । वेतन भी…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 1, 2013 at 10:00am — 50 Comments

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