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हाल- ए- दिल ऊंचे महलों से पूछो जरा,
मस्तियाँ बादलों की कैसी उन्हे लगती हैं,

जब सावन की पहली पड़ती फुहार,
धरा ख़ुशी से सोंधी खुशबू बिखेरती,
बच्चे उछलते कूदते मचलते खेलते,
चेहरे किसानो के उम्मीदों से चमकते,

हाल- ए- दिल झोपड़ियो से पूछो जरा,
आंशु बन बारिश छपरों से टपकती है,

खूब बारिश हुई भरी नदिया और ताल ,
मचलती तितलियाँ भी आँचल संभाल,
हवाओं को भी देखो चलती मदभरी,
दीवाना बनाने को हमें हठ पर अड़ी,

हाल- ए- दिल उन बस्तियों से पूछो जरा,
जिन्दगी जिनकी किनारों पर गुजरती हैं,

जवान होती है शहरो की नशीली रात ,
आँखों आँखों में कटती कही काली रात,
तेज धुन पर कही आहा करते है लोग ,
भय के कारण कही आह करते है लोग,

हाल- ए- दिल भूखे बच्चों से पूछो जरा,
गीले चूल्हों मे जब भींगी लकड़ियाँ जलती है,

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 7, 2011 at 1:29pm
धन्यवाद आनंद जी , राजिव जी और आशा दीदी |
Comment by Anand kumar Ojha on May 7, 2011 at 1:21pm
Sabhi rash maujud hai aapki kawita me ....
Comment by Anand kumar Ojha on May 7, 2011 at 1:20pm
Sundaram... Bhaw bivor ho gaya mai
Comment by Rajeev Mishra on March 14, 2011 at 1:28pm
बहुत सुंदर !
Comment by asha pandey ojha on January 10, 2011 at 8:18pm
हाल- ए- दिल झोपड़ियो से पूछो जरा,
आंशु बन बारिश छपरों से टपकती है, waah Ganesh bhiya kamal ki rachna hai yah .. teen baar padh chuki hun ... waah anand aa gya 

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 26, 2010 at 9:16am
आदरणीय ब्रिजेश भाई साहब, बहुत बहुत धन्यवाद उत्साहवर्धन के लिये, आप बड़ों का यह आशीर्वाद और प्यार है जो मैं कुछ लिख लेता हूँ, निवेदन है कि इसी तरह नेह बनाये रखे |
Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 26, 2010 at 7:01am
गणेशजी ,
इस कविता में एक साथ अनेक सन्देश प्रभावशाली ढंग से आपके द्वारा प्रेषित हैं
गरीब की टपकती झोपड़ी का दर्द आपने जनसामान्य के साथ जिस तरह आपने बांटा है वो बेमिसाल है बच्चों के उत्साह में शामिल कवि स्वयं में एक बच्चा ही दिखता है यह कवि की अपार सफलता है..इस अति सुन्दर कविता के लिए आप को बधाई

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2010 at 8:17pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शैलेश्वर पाण्डेय जी , आदिल भाई और आदरणीया आशा दीदी,
Comment by Shaileshwar Pandey ''Shanti'' on October 17, 2010 at 6:42pm
Ati Sundar Ganesh Ji,aap ki ye kavita bachapan ki yad dila rahi hai...Bahut achi hai ye kavita ...budha man bhi jawan ho jayega padhane ke baad...Dhanyavaad.
Comment by mohd adil on October 17, 2010 at 2:38pm
जवान होती है शहरो की नशीली रात ,
आँखों आँखों में कटती कही काली रात,
तेज धुन पर कही आहा करते है लोग ,
भय के कारण कही आह करते है लोग,

in lines ka jawab nahe bhut jaan dar hain bhai

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