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Nilesh Shevgaonkar's Blog – February 2018 Archive (1)

ग़ज़ल नूर की -खेल सारे, हर तमाशा छोड़ कर

२१२२/२१२२/२१२

.

खेल सारे, हर तमाशा छोड़ कर

सब को जाना है ये मेला छोड़ कर. 

.

एक क़िस्सा-गो अचानक मर गया

अपने कुछ क़िरदार ज़िंदा छोड़ कर.

.

था बहुत जिन को समुन्दर पर यकीं

अब वो पछताते हैं दरिया छोड़ कर.

.

मोड़ कोई इक ग़लत मुडने के बाद

याँ तलक पहुँचे हैं रस्ता छोड कर.

.

उस ख़ुदा का मत दिया कर वास्ता  

जा चुका जो कब से दुनिया छोड़ कर.

.

बात मेरी मान कर तो देखिये

आप अपना ये रवैया छोड़ कर.

.

चाँद…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on February 21, 2018 at 8:02pm — 12 Comments

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