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Naveen Mani Tripathi's Blog – February 2017 Archive (7)

आसमा कब से पड़ा वीरान है

2122 2122 212

बेसबब लिखता कहाँ उन्वान है ।

वो नई फ़ितरत से कब अनजान है ।।



कुछ मुहब्बत का तजुर्बा है उसे ।

मत रहो धोखे में वो नादान है ।।



सिर्फ माँगा था अदा की इक नज़र।

कह गई वह जान तक कुर्बान है ।।



दायरों से दूर जाना मत कभी ।

ताक में बैठा कोई अरमान है ।।



है भरोसा ही नहीं खुद पर जिसे ।

ढूढ़ता फिरता वही परवान है ।।



कहकशां में ढूँढिये अब चाँद को।

आसमा कब से पड़ा वीरान है ।।



इश्क़ की गलती करेगा आदमी… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on February 25, 2017 at 12:04am — 1 Comment

ग़ज़ल- यह ज़माना हाल पर मुस्कुराना चाहता है

2122 2122 2122 2122

हाथ पर बस हाथ रखकर याद आना चाहता है ।

वो मुकद्दर इस तरह से आजमाना चाहता है ।।



गुफ्तगूं होने लगी है फिर किसी का क़त्ल होगा ।

है कोई मासूम आशिक़ सर उठाना चाहता है ।।



शह्र में दहशत का आलम है रकीबों का असर भी ।

तब भी वह अहले ज़िगर से इक फ़साना चाहता है ।।



बेसबब यूं ही नही वह पूछता घर का पता अब ।

रस्म है ख़त भेजना शायद निभाना चाहता है ।।



स्याह रातों का है मंजर चाँदनी मुमकिन न होगी ।

रोशनी के वास्ते वह घर जलाना… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on February 24, 2017 at 2:59am — 5 Comments

ऐसा लगा जमी पे आसमा उतर गया

*221 2121 2121 212*



‌मेरी गली के पास से वो यूँ गुजर गया ।

ऐसा लगा जमीं पे आसमा उतर गया ।।



माना मुहब्बतों का फ़लसफ़ा अजीब है ।

शायद नज़र खराब थी वो भी उधर गया ।।



मैं रात भर सवाल पूछता रहा मगर ।

उसका जबाब हौसलों के पर क़तर गया ।।



‌तुमने दिए जो जख़्म आज तक न भर सके ।

‌जब जब किया है याद दर्द फिर उभर गया ।





इस तर्ह उस हसीन की तू पैरवी न कर ।

मतलब निकलने पर जो रब्त से मुकर गया ।।



‌तू मेरी आजमाइशों की कोशिशें… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on February 20, 2017 at 12:53am — 16 Comments

ग़ज़ल -यतीम घर से कोई माँ कई दफ़ा पहुँची

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ये जिंदगी है अभी तक नहीं दुआ पहुँची ।

खुदा के पास तलक भी न इल्तजा पहुँची।।



गमो का बोझ उठाती चली गई हँसकर ।

तेरे दयार में कैसी बुरी हवा पहुँची ।।



अजीब दौर है रोटी की दास्ताँ लेकर ।

यतीम घर से कोई माँ कई दफ़ा पहुची ।।



तरक्कियों की इबारत है सिर्फ पन्नों तक ।

है गांव अब भी वही गाँव कब शमा पहुँची ।।



यहां है जुल्म गरीबी में टूटना यारो ।

मुसीबतों में जफ़ा भी कई गुना पहुँची।।



है फरेबों का चमन मत…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on February 13, 2017 at 1:00pm — 7 Comments

ग़ज़ल- बस नज़र क्या मिली हो गया आपका

212 212 212 212

याद आता रहा सिलसिला आपका ।

बस नज़र क्या मिली हो गया आपका ।।



आपकी सादगी यूं असर कर गई ।

रेत पर नाम मैंने लिखा आपका ।।



इश्क़ की जाने कैसी वो तहरीर थी ।

रातभर इक वही खत पढ़ा आपका ।।



है सलामत अभी तक वो खुशबू यहां ।

गुल किताबों से मुझको मिला आपका ।।



वक्त की भीड़ में खो गया इस कदर ।

पूछता रह गया बस पता आपका ।।



इक ख़ता जो हुई भूल पाया कहाँ ।

यूं अदा से बहुत रूठना आपका ।।



बात शब् भर चली हिज्र… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on February 11, 2017 at 1:36am — 6 Comments

ग़ज़ल -कर गया हुस्न को आँखों से इशारा किसने

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मुद्दतों बाद तुझे हद से गुज़ारा किसने ।

कर गया हुस्न को आँखों से इशारा किसने ।।



खास मकसद को लिए लोग यहां मिलते हैं ।

फिर किया आज मुहब्बत से किनारा किसने ।।



आज महबूब के आने की खबर है शायद ।

जुल्फ रह रह के कई बार संवारा किसने ।।



ऐ जमीं दिल की निशानी को सलामत रखना ।

मेरी ताबूत पे लिक्खा है ये नारा किसने ।।



हो गया था मैं फ़ना वस्ल की ख्वाहिश लेकर ।

चैन आया ही नहीं दिल से पुकारा किसने ।।



चोट गहरी थी… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on February 9, 2017 at 9:50pm — 6 Comments

आइए बस चले आइये

212 212 212

इस तरह रूठ मत जाइए ।

आइये बस चले आइये ।।



आज तो जश्न की रात है ।

घुंघरुओं की सदा लाइए ।।



टूट जाए न दिल ही मेरा ।

जुल्म इतना नहीं ढाइये ।।



बेगुनाही पे चर्चा बहुत ।

कुछ सबूतों से भरमाइये ।।



जो तरन्नुम में था मैं सुना ।

गीत फिर से वही गाइये ।।



हम गिरफ्तार पहले से हैं ।

मत रपट कोई लिखवाइये।।



है ग़ज़ल में मेरे तू ही तू ।

एक मिसरा तो पढ़वाइये ।।



हूँ तेरे हुस्न का आइना… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on February 7, 2017 at 9:00pm — 8 Comments

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