For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 1212 22

गुल जो सूखा किताब में देखा ।
आपको फिर से ख़्वाब में देखा ।।

बारहा चाँद की नज़ाक़त को ।
झाँक कर वह नकाब में देखा ।।

मैकदे में गया हूँ जब भी मैं ।
तेरा चेहरा शराब में देखा ।।

वस्ल जब भी लगा मुनासिब तो।
कोई हड्डी कबाब में देखा ।।

तोड़ पाता उसे भला कैसे ।
हुस्न उसका गुलाब में देखा ।।

डाल कर फूल राह में सबके ।
मैंने पत्थर जबाब में देखा ।।

लुट गईं रोटियां गरीबों की ।
हादसा इंकलाब में देखा ।।

तेरे आने का जिक्र होते ही ।
रंग आता शबाब में देखा ।।

कौन कहता है तुम नशे में हो ।
मैंने तुमको हिसाब में देखा ।।

हैं मुहब्बत बड़ी या फिर दौलत ।
आपके इंतखाब में देखा ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

Views: 810

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on July 2, 2018 at 11:05pm

नवीन जी,"कबाब में हड्डी" एक मुहावरा है, इसे हड्डियों करने से बात नहीं बनेगी,इस शैर को ख़ारिज करना ही मुनासिब होगा ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 2, 2018 at 10:47pm
आ0 कबीर सर यह कैसा रहेगा

हड्डियों को कबाब में देखा ।
Comment by Samar kabeer on July 2, 2018 at 3:27pm

'कोई हड्डी कबाब में देखा'

इस मिसरे को दुरुस्त कर दिखाएँ ।

Comment by राज़ नवादवी on July 2, 2018 at 11:20am

जी सही है, मगर कुछ और उदाहरण हैं, मैंने लोगों को देखा, मैंने लोग देखे, मैंने घर को जलता हुआ देखा, मैंने घर जलता हुआ देखा, मैंने लाल क़िले को देखा, मैंने लाल क़िला देखा. बस यूँ ज्ञान वर्धन के लिए पूछ रहा हूँ. सादर. 

Comment by Samar kabeer on July 2, 2018 at 11:15am

'मैंने हड्डी को देखा' इस वाक्य में 'को' शब्द भर्ती का है, सहीह वाक्य "मैंने हड्डी देखी" सहीह वाक्य है ।

Comment by राज़ नवादवी on July 2, 2018 at 11:04am

आदरणीय समर साहब, सही कह रहे हैं आप, "मैं हड्डी देखा" शायद ये वाक्य ग़लत है, "मैंने हड्डी को देखा" या "मैंने हड्डी देखी" ये सही है. सादर 

Comment by Samar kabeer on July 2, 2018 at 10:52am

राज सहिब,'हड्डी' शब्द स्त्रीलिंग है, तो उसके साथ 'देखा'?

Comment by राज़ नवादवी on July 1, 2018 at 11:26pm

ग़ज़ल के लिए त्रिपाठी जी बधाई स्वीकार करें. 

Comment by राज़ नवादवी on July 1, 2018 at 11:23pm

जबाब शब्द को भी सहीह  करने की ज़रुरत है, जवाब. सादर 

Comment by राज़ नवादवी on July 1, 2018 at 11:20pm

(मैं)कोई हड्डी कबाब में देखा

क्या ऐसा हो सकता है? बस एक जिज्ञासा है समर साहब. मतलब मैं छुपा है, मैंने नहीं. सादर.  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ सर,अजय जी ने उर्दू शब्दों की बात की थी इसीलिए मैंने उर्दू की बात कही.मैं जितना आग्रही उर्दू…"
23 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय, धन्यवाद.  अन्यान्य बिन्दुओं पर फिर कभी. किन्तु निम्नलिखित कथ्य के प्रति अवश्य आपज्का…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी,    ऐसी कोई विवशता उर्दू शब्दों को लेकर हिंदी के साथ ही क्यों है ? उर्दू…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मेरा सोचना है कि एक सामान्य शायर साहित्य में शामिल होने के लिए ग़ज़ल नहीं कहता है। जब उसके लिए कुछ…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. अजय जी,ग़ज़ल के जानकार का काम ग़ज़ल की तमाम बारीकियां बताने (रदीफ़ -क़ाफ़िया-बह्र से इतर) यह भी है कि…"
4 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको एक चुप्पी है जो अब तक खल रही…"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय बृजेश कुमार जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मैं आपके कथन का पूर्ण समर्थन करता हूँ आदरणीय तिलक कपूर जी। आपकी टिप्पणी इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service