कितना अच्छा हो ....
अभी-अभी
हवाओं के थपेड़ों से बजते
वातायन के पटों ने
तिमिर में सुप्त चुप्पी से
चुपके से कुछ कहा //
अभी-अभी
रिमझिम फुहारों ने
चंचल स्मृति की
असीम गहराईयों संग
अंगड़ाई ली //
अभी-अभी
एक रूठा पल
घोर निस्तब्धता को
अपनी निःशब्द श्वासों से
जीवित कर गया //
अभी-अभी
एक तारा टूट कर
किसी की झोली
सपनों से भर गया //
अभी-अभी से लिपट
कभी पलक…
Added by Sushil Sarna on January 4, 2016 at 7:48pm — 12 Comments
चुटकियाँ- ….. …
नेता क्या और भाषण क्या
भाषण पे अनुशासन क्या
मूक बधिर इस जनता को
व्यर्थ में आश्वासन क्या !!1!!
देश क्या विकास क्या
बिन कुर्सी मधुमास क्या
छल करते जो नित् निर्बल से
उस आवरण का विश्वास क्या !!2!!
नीति क्या अनीति क्या
भ्रष्ट की सोच से प्रीति क्या
जनता के जो खून से जिन्दा
उस नेता की परिणति क्या !!3!!
फ़र्ज़ क्या …
Added by Sushil Sarna on December 24, 2015 at 1:27pm — 6 Comments
ये सिलसिला .......
सच ! कितना स्वार्थी है इंसान
हर जीत पे मुस्कुराता है
हर हार से जी चुराता है
अपने स्वार्थ की पगडंडी पर अक्सर
वो हर रास्ते से नाता जोड़ लेता है
हर मोड़ पे इक दर्द को छोड़ देता है
हर कसम तोड़ देता है
मुहब्बत की पाक इबारत पे
वासना की कालिख पोत देता है
जिस्म के रोएँ रोएँ में
नफ़रत की फसल छोड़ देता
किसी ज़िंदगी को नरक कर
उसके अरमानों को रौंद देता है
किसी की पाकीज़गी को
चीत्कारों से ढक देता है
उफ़ !…
Added by Sushil Sarna on December 21, 2015 at 8:08pm — 4 Comments
नई पसंद का जमाना ... (110 वीं रचना )
राम राम भाई
आज दुकान खोलने में बड़ी देर लगाई
हमने भी पड़ोसी को राम राम कहा
और अपनी नासाज़ तबियत का हवाला देते हुए
अपनी दुकान का शटर उठाया
धूप अगरबत्ति जलाकर
उसके धुऐं को दुकान और गल्ले में घुमाया
प्रभु को शीश नवाकर
अच्छी बोहनी के लिए प्रार्थना करके
धूपदानी प्रभु के आगे रखी ही थी कि
एक ग्राहक ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई
हमने चौंक कर
अपनी सुराहीदार गर्दन को
भगवान बने ग्राहक की तरफ घुमाया…
Added by Sushil Sarna on December 15, 2015 at 12:45pm — 4 Comments
हकीकत.....
उस दिन
जब तुमने मेरे काँधे पे
अपना हाथ रखा था
कितने ख़ुशनुमा अहसास
मेरे ज़हन में
उत्तर आये थे
लगा भटकी कश्ती को
जैसे साहिलों ने
अपनी आगोश में ले लिया हो
मगर मैं उन सुकून देते लम्हों को
कहाँ पहचान पायी थी
क्या खबर थी कि तुम
इज़हारे मुहब्बत के बहाने
मेरे कमजोर कांधों की
ताकत नाप रहे थे
मैंने तुम्हें अपना सागर मान
अपने वज़ूद को
तुम्हें सौंप दिया
आज तक
तुम्हारी उँगलियों की वो छुअन…
Added by Sushil Sarna on December 14, 2015 at 1:00pm — 4 Comments
मर्यादा ....
चक्षु को चक्षु से देखा
करते हमने द्वंद
उलझे करों को
देख इक दूजे में
हम तो रह गये दंग
आँख बचा कर
कब बाला ने
बदला कपोल का रंग
वर्तमान में बेहयाई का
हुआ ये आम प्रसंग
संस्कारों को त्याग जोड़े ने
अधर मिलाये संग
समझ न आये
क्यूँ इस युग में
कपडे हो गये तंग
मृग नयनी का
नशा देख के
फीकी पड़ गयी भंग
बैठ बाईक पर
दौड़ चले फिर
इक दूजे के संग
शर्मो-हया की चिंता किसे अब
सतरंगी है मन…
Added by Sushil Sarna on December 8, 2015 at 7:15pm — 2 Comments
अधूरे हर्फ़ :..........
हंसी आती है
अपने ख्यालों पर
मेरे तसव्वुर में
तुम जब भी आती हो
इक अधूरी ग़ज़ल की तरह आती हो
नज़र से नज़र मिलती ही
एक अजीब सी सिहरन होती है
तुम किताब के रूठे हर्फों की तरह
किसी कोने में सिमटी रहती हो
मैं अपने अधूरे हर्फों को
इक मुकम्मल शक्ल देने की कोशिश में
तमाम शब चरागों में झिलमिलाते
तुम्हारे अक्स के साथ
गुज़ार देता हूँ
सहर होने के साथ
हम अधूरे लफ़्ज़ों के तरह
मुकम्मल होने के लिए…
Added by Sushil Sarna on December 7, 2015 at 8:04pm — 2 Comments
साये....
रहने दो
तुम सायों की खामोशी क्या जानो
तुम सिर्फ खोखले अहसासों के
सूखे शज़र हो
साये का दर्द तो सिर्फ
ज़मीन सहती है
हर जिस्मानी खरोंच को
खामोशी से पी जाती है
उफ़ नहीं करती
रेज़ा रेज़ा बिखरती
तारीक में सिमट जाती है
जब कोई तन्हा शब
किसी परिंदे की तरह
पेड़ पर फड़फड़ाती है
बेतरतीब से सलवटों में
तब वफा भी कराहती है
गुजरे लम्हों के साये
तमाम उम्र
जीने की सजा दे जाते हैं
ज़िस्म की कश्कोल में…
Added by Sushil Sarna on December 2, 2015 at 8:02pm — 12 Comments
टीस.....
चलो न
कुछ और बात करते हैं
अपनी अपनी टीस से
मुलाक़ात करते हैं
नेह से देह की थकान
तो अधरों से तृप्ति हारी है
सच कहूँ तो
बीती हुई रात की
चुपके से हुई बात
कुछ तेरी पलक पर
तो कुछ मेरी पलक पर
अभी तक भारी है
जूही के फूलों में लिपटे
वो स्वप्निल लम्हे
अस्त व्यस्त से सलवटों में
अपनी गंध से
अलौकिक अनुभूति की
व्याख्या करते प्रतीत होते हैं
निर्वसन शरीर के उजास की चांदनी
एकान्तता से लिपट…
Added by Sushil Sarna on December 1, 2015 at 7:45pm — 10 Comments
न जग तेरा है .....
न जग तेरा है न मेरा है
बस दो साँसों का डेरा है
है पल भर की बस भोर यहां
पल अगला घोर अँधेरा है
न जग तेरा है ....
मैं पथ का कोई शूल कहूँ
या जीवन कोई भूल कहूँ
इक पल यहाँ पर है उत्सव
पल दूजा दुख का डेरा है
न जग तेरा है ....
स्वर प्रेम नीड को ढूंढ रहे
दृग पीर नीर में मूँद रहे
है नीरवता हर ओर यहां
विष सेज पे सुप्त उजेरा है
न जग तेरा है ....
अभिलाष हृदय की…
Added by Sushil Sarna on November 24, 2015 at 9:35pm — 4 Comments
कुछ एक बातें …
कुछ एक बातें ऐसी हैं
कुछ एक बातें वैसी है
होठों पर लज्जा वाली
भीगी रातों जैसी हैं
कुछ एक बातें …
हृदय के सागर पर लिखी
अमर प्रीत की बात कोई
शब्द नीड़ में जागी सोई
अलसायी बातों जैसी हैं
कुछ एक बातें …
मन के अम्बर पर कोई
दीप प्रीत के जला गया
मधुपलों की सिमटी सी
कुछ यादें मेघों जैसी हैं
कुछ एक बातें …
इक शीत बूँद अंगारों पर
तृप्ति पूर्व ही झुलस गयी
हार जीत की नैनझील पर…
Added by Sushil Sarna on November 17, 2015 at 7:21pm — 4 Comments
तुम निष्ठुर हो …
तुम निष्ठुर हो तुम निर्मम हो
तुम बे-देह हो तुम बे-मन हो
तुम पुष्प नहीं तुम शूल नहीं
तुम मधुबन हो या निर्जन हो
तुम निष्ठुर हो …
तुम विरह पंथ का क्रंदन हो
तुम सृष्टि भाल का चंदन हो
तुम आदि-अंत के साक्षी हो
तुम वक्र दृष्टि की कंपन्न हो
तुम निष्ठुर हो …
तुम नीर नहीं समीर नहीं
तुम हर्ष नहीं तुम पीर नहीं
तुम हर दृष्टि से ओझल हो
तुम रखते कोई शरीर नहीं
तुम निष्ठुर हो …
तुम चलो तो सांसें चलती…
Added by Sushil Sarna on November 14, 2015 at 8:13pm — 13 Comments
अमर गंध …
पी के संग सो गयी
पी के रंग हो गयी
प्रीत की डोर की
मैं पतंग हो गयी
दीप जलता रहा
सांस चलती रही
पी की बाहों में मैं
इक उमंग हो गयी
हर स्पर्श देह में
गीत भरता रहा
नैनों की झील की
मैं तरंग हो गयी
निशा ढलती रही
आँखें मलती रही
होठों की होठों से
एक जंग हो गयी
कुछ खबर न हुई
कब सहर हो गयी
साँसों में पी की मैं
अमर गंध हो गयी
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on November 5, 2015 at 4:18pm — 6 Comments
कैसे अपने मधु पलों को शूल शैय्या पे छोड़ आऊँ
स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊं
विगत पलों के अवगुंठन में
इक दीप अधूरा जलता रहा
अधरों पर लज्जा शेष रही
नैनों में स्वप्न मचलता रहा
एकांत पलों में तृप्ति भाव को किस आँगन मैं छोड़ आऊँ
प्रिय स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊँ
अधरों से मिलना अधरों का
तिमिर का मौन शृंगार हुआ
तृषित देह का देह मिलन से
अंगार पलों का संचार हुआ
किस पल को मैं बना के जुगनू तिमिर…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 4, 2015 at 7:30pm — 27 Comments
दृग
शृंगार करते रहे
आंसुओं से
तृषित मन
आस की मरीचिका में
भटकता रहा
व्यथा
दूर तक फ़ैली नदी में
वायु वेग को सहती
बिन पाल की नाव सी
किसी किनारे की तलाश में
व्यथित रही
दृष्टि स्पर्श
प्रणय अस्तित्व को
नागपाश सा
स्वयंम में लपेटे रहा
अंतर्कथा के मौन पृष्ठों में
जीवन के इक मोड़ की त्रासदी
स्मृति सीप में
कराहती रही
कदम
धूप की तपन को
मन के अंतर्नाद में डूबे
एक क्षितिज की तलाश में…
Added by Sushil Sarna on October 21, 2015 at 5:43pm — 12 Comments
अंजामे मुहब्बत .......
कितनी अज़ीब हैं ज़िंदगी की राहें
हर मोड़
एक उलझी पहेली
हर राह पर फिसलन
हर नफ़स एक चुभन
गर्द में दफ़्न
वफ़ा और ज़फ़ा के अनसुने अनकहे
वो अफ़साने
जिन्हें सुनना चाहे
ये दिल बार बार
हर बार
कोई लफ्ज़ लबे दहलीज़ पे
इज़हार से शरम खाता है
और अश्के रवां रुखसार पे रुक जाता है
कह देती है सांस
साँसों में तपते अहसासों को
दे देती है खामोश धड़कनों को
अपनी धड़कनों की आवाज़
वो बात मुहब्बत की…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 14, 2015 at 2:16pm — 10 Comments
तुम न समझ पाओगे .....
तुम न समझ पाओगे
मुहब्बत की ज़मीन पर
कतरा कतरा बिखरते
रूमानी अहसासों के सायों का दर्द
तुम तो बुत हो
सिर्फ बुत
जिसपर कोई रुत असर नहीं करती
तुम से टकराकर
हर अहसास संग -रेज़ों में तक़सीम जाता है
और साथ चलते साये का वज़ूद
सिफर में तब्दील हो जाता है
रह जाते हैं बस शानों पर
स्याह शब में गुजरे चंद लम्हे
जो आज मुझे किसी माहताब में
लगे दाग़ की तरह लगते हैं
तुम्हारी याद का हर अब्र
मेरी चश्म…
Added by Sushil Sarna on October 6, 2015 at 9:42pm — 10 Comments
ख़ौफ़ खाता हूँ …
ख़ौफ़ खाता हूँ
तन्हाईयों के फर्श पर रक्स करती हुई
यादों की बेआवाज़ पायल से
ख़ौफ़ खाता हूँ
मेरे जज़्बों को अपाहिज़ कर
अश्कों की बैसाखी पर
ज़िंदा रहने को मज़बूर करती
बेवफा साँसों से
ख़ौफ़ खाता हूँ
हयात को अज़ल के पैराहन से ढकने वाली
उस अज़ीम मुहब्बत से
जो आज भी इक साया बन
मेरे जिस्म से लिपट
मेरे बेजान जिस्म में जान ढूंढती है
और ढूंढती है
ज़मीं से अर्श तक
साथ निभाने की कसमों के…
Added by Sushil Sarna on October 3, 2015 at 8:30pm — 12 Comments
तुम इसे तवज्जो न देना ....
ये बादे सबा अगर
तुम्हें मेरे दर्द का पैगाम दे जाये
तो अपने ज़हन में
करवटें लेते खुशनुमा अहसासों पर
तुम तवज्जो न देना
किसी तारीक शब को
अब्र से झांकता माहताब
पीला नज़र आये
तो तन्हाई से गुफ़्तगू करती
मेरी खामोशियों पर
तुम तवज्जो न देना
सड़क पर चलते
तुम्हारे पाँव के नीचे
कोई ज़र्द पत्ता चीखे
तो गर्द में डूबे
मेरी मुहब्बत के
बदलते मौसम पर
तुम तवज्जो न…
Added by Sushil Sarna on September 29, 2015 at 7:30pm — 10 Comments
आत्मिक प्रेमतत्व …
जलतरंग से
मन के गहन भावों को
अभिव्यक्त करना
कितना कठिन है
हम किसको प्रेम करते हैं ?
उसको !
जिसके संग हमने
पवन अग्नि कुण्ड के चोरों ओर
सात फेरे लिए
या उसको
जिसके प्रेम में
स्वयं को आत्मसात कर हम
जीवन के समस्त क्षण
उसके नाम कर दिए
एक प्रेम
जीवन के अंत को जीवन देता है
और दूसरा अंतहीन जीवन को अंत देता है
जिस प्रेम को बार बार
शाब्दिक अभिव्यक्ति की आसक्ति हो …
Added by Sushil Sarna on September 25, 2015 at 8:30pm — 10 Comments
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2024
2023
2022
2021
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2019
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