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Sushil Sarna's Blog (851)

शर्मीले लब ……….

शर्मीले लब ……….

ये मोहब्बत भी

अज़ब शै है ज़माने में

उम्र गुज़र जाती है

समझने

और समझाने में

हो जाती हैं

सांसें चोरी

खबर नहीं होती

नींद नहीं आती बरसों

उनके इक बार मुस्कुराने में

डूबे रहते हैं पहरों

इक दूजे के ख़्यालों में

गुज़र जाती शब्

इक दूजे से बतियाने में



राहे मोहब्बत में

जाने ये कैसे मुक़ाम आते हैं

दो ज़िस्म

इक जान हो जाते हैं

मैं और तुम के अहसास

कहीं फ़ना हो जाते हैं

मख़मली लम्हे…

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Added by Sushil Sarna on August 5, 2017 at 3:39pm — 8 Comments

डुगडुगी बजती रही.......

डुगडुगी बजती रही.......

1.

गरजे घन घनघोर

प्रलय चहुँ ओर

तृण बहे

तन बहे

करके

सब को अशांत

फिर 

वृष्टि का तांडव

हो गया

शांत



2

बुझ गयी

कुछ क्षण जल कर

माचिस की तीली सी

जंग लड़ती

साँसों से

असहाय काया

अस्थि कलश में

सिमट गयी

मुट्ठी भर राख में

साँसों की

माया

3

तालियों के शोर

चिलचिलाती धूप

करतब दिखाती बच्ची

रस्सी से गिर पड़ी

साँसों से संघर्ष…

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Added by Sushil Sarna on August 4, 2017 at 5:26pm — 4 Comments

तन्हा...

तन्हा....

बहुत डरता हूँ
हर आने वाली

सहर से 

शायद इसलिए कि
शाम ने सौंपी थी
जो रात
मेरे ख़्वाबों को
जीने के लिए
ढक देगी उसे सहर
अपने पैरहन से
हमेशा के लिए
और मैं
रह जाऊंगा
सहर की शरर से
छलनी हुए
ख्वाबों के साथ
तन्हा

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on July 23, 2017 at 9:18pm — 10 Comments

जाम ... (एक प्रयास)

जाम ... (एक प्रयास)
२१२२ x २

शाम भी है जाम भी है
वस्ल का पैग़ाम भी है।l
हाल अपना क्या कहें अब
बज़्म ये बदनाम भी है।l
हम अकेले ही नहीं अब
संग अब इलज़ाम भी है।l
बाम पर हैं वो अकेले
सँग सुहानी शाम भी है।l
ख़्वाब डूबे गर्द में सब
संग रूठा गाम भी है।l
ख़ौफ़ क्यूँ है अब अजल से
हर सहर की शाम भी है ll
होश में आएं भला क्यूँ
संग यादे जाम भी है !l


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 21, 2017 at 5:30pm — 20 Comments

व्यर्थ है ...

व्यर्थ है ...

व्यर्थ है

अपनी आशाओं को

दियों की

उदास पीली

मटमैली रोशनी में

मूर्त रूप देना

व्यर्थ है

प्रतीक्षा पलों की

चिर वेदना को

कपोलों पर

खारी स्याही से अंकित

शब्दों के स्पंदन को

मूर्त रूप देना

व्यर्थ है

शून्यता में विलीन

पदचापों को

अपने स्नेह पलों में

समाहित कर

मौन पलों को

वाचाल कर

मन कंदरा के

भावों को

मूर्त रूप…

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Added by Sushil Sarna on July 18, 2017 at 10:00pm — 8 Comments

पावस रुत में ....

तृण तृण भीगा

प्रीत पलों का

सावन की बौछारों में

तड़पन भीगी

तन-मन भीगा

सावन की बौछारों में

बीती रैना

भीगे बैना

सावन की बौछारों में

पावस रुत में

नैना बरसे

सावन की बौछारों में

निष्ठुर पिया को

पल पल तरसे

सावन की बौछारों में

बादल गरजे

बिजली चमकी

सावन की बौछारों में

भीगी चौली

भीगी अंगिया

सावन की बौछारों में

चूड़ी खनकी

मिलन को तरसी

सावन की बौछारों में …

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Added by Sushil Sarna on July 16, 2017 at 1:30pm — 6 Comments

नेम प्लेट ...

नेम प्लेट ...

कुछ देर बाद
मिल जाऊंगा मैं
मिट्टी में
पर
देखो
हटाई जा रही है
निर्जीव काल बेल के साथ
लटकी
मेरी ज़िंदा
मगर
उखड़े उखड़े अक्षरों की
एक अजीब सी
चुप्पी साधे
पुरानी सी 
नेम प्लेट

मुझसे पहले 

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 14, 2017 at 3:30pm — 24 Comments

आसक्ति …….

आसक्ति …….

परिचय  हुआ  जब   दर्पण से
तो  चंचल  दृग   शरमाने  लगे 
अधरों  पे कम्पन्न  होने   लगा 
पलकों  में  बिंब  मुस्काने  लगे ll


काजल मण्डित रक्तिम लोचन
अनुराग  निशा  से  बढ़ाने लगे 
कच क्रीडा में लिप्त समीर  से
मेघ  अम्बर  में  शरमाने  लगे ll


लज्ज़ायुक्त स्वर्णिम कपोल पे 
फिर  जलद नीर बरसाने लगे
कनक कामिनी  की काया पे
मधुप  आसक्ति  दर्शाने  लगे ll

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 12, 2017 at 4:30pm — 15 Comments

जरा जी कर देखें ...

चलो

जिन्दगी को

ज़रा करीब से देखें

दर्द को ज़रा

महसूस करके देखें

क्या खबर

कोई लम्हा

अपना सा मिल जाए कहीं

चलो

उस लम्हे को

जरा जी कर देखें//

जिन चेहरों पे हंसी

बाद मुद्दत के आई है

जिन आँखों में

अब सिर्फ और सिर्फ तन्हाई है

जिस आंगन में

धूप अब भी

सहमी सहमी आती है

उस आंगन के

प्यासे रिश्तों से

जरा रूबरू होकर देखें

चलो!

जिन्दगी को

जरा जी कर देखें//

हमारे अहसास

किसी…

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Added by Sushil Sarna on July 9, 2017 at 4:30pm — 10 Comments

तिरंगे की लाज के लिए ....

तिरंगे की लाज के लिए ....





मैं अब तुम्हें

मुड़ के न देखूँगा

अपने बढ़े कदम

विछोह के डर से

न रोकूंगा

जानता हूँ

कितना मुशिकल है

अपनी प्रीत को

दूर जाते हुए देखना

कतरा कतरा

अपने प्यार को

बिखरते हुए देखना

अपने सपनों को

अनजानी भोर की

बलि चढ़ते हुए देखना

पंखुड़ी की जगह

ओस को शूलों पर

सोते देखना

कितनी आँखों से तुम

अपने बहते दर्द को छुपाओगी





सब कुछ जानते हुए भी

मैं न…

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Added by Sushil Sarna on July 8, 2017 at 2:30pm — 8 Comments

यारियां .../रूठे ...



1. यारियां ...

एक ही पल में कितनी दूरियां  हो जाती हैं

हर नफ़स अश्कों से यारियां  हो  जाती  हैं

धड़कनें ख़ामोश ज़िस्म बेज़ान हो जाता  है

गिरफ़्त में हालात के खुद्दारियां हो जाती हैं

....................................................

2. रूठे ...

न जाने कितने शबाबों की शराब अभी बाकी है

न जाने कितने जख्मों का हिसाब अभी बाकी है

कैसे चले जाएँ भला हम उठ के अभी मैखाने से 

बेवज़ह रूठे हर सवाल का जवाब अभी…

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Added by Sushil Sarna on July 7, 2017 at 9:30pm — 8 Comments

प्रेम ...

प्रेम ...

अनुपम आभास की

अदृश्य शक्ति का

चिर जीवित

अहसास है

प्रेम

मौन बंधनों से

उन्मुक्त उन्माद की

अनबुझ प्यास है

प्रेम

संवादहीन शब्दों की

अव्यक्त अभिव्यक्ति

का असीमित

उल्लास है

प्रेम

निःशब्द शब्दों को

भावों की लहरों पर

मुखरित करने का

आधार है

प्रेम

अपूर्णता को

पूर्णता में परिवर्तित कर

अंतस को

मधु शृंगार से सृजित कर…

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Added by Sushil Sarna on July 4, 2017 at 9:22pm — 10 Comments

तुम्हारे हृदय में ....

तुम्हारे हृदय में ...

ये

समय ठहरा था

या कोई स्मृति

वाचाल बन

मेरी शेष श्वासों के साथ

चन्दन वन की गंघ सी

मुझे

कुछ पल और

जीवित रखने का

उपक्रम कर रही थी

ये

समय का कौन सा पहर था

मैं पूर्णतयः अनभिज्ञ था

अपनी क्लांत दृष्टि से

धुंधली होती छवियों में

स्वयं को समाहित कर

अपने अंत को

कुछ पल और

जीवित रखने का

असफ़ल

प्रयास कर रहा था

शायद किसी के

इंतज़ार में

तुम…

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Added by Sushil Sarna on July 3, 2017 at 6:00pm — 8 Comments

ज़िंदगी के सफ़हात...

ज़िंदगी के सफ़हात ...

हैरां हूँ

बाद मेरे फना होने के

किसी ने मेरी लहद को

गुलों से नवाज़ा है

एक एक गुल में

गुल की एक एक पत्ती में

उसके रेशमी अहसासों की गर्मी है

नाज़ुक हाथो की नरमी है

कुछ सुलगते जज़्बात हैं

कुछ गर्म लम्हों की सौगात है

काश

तुम मेरे शिकवों को समझ पाते

जलते चिराग का दर्द समझ पाते

मेरी पलकों को

इंतज़ार की चौखट में

कैद करने वाले

कितना अच्छा होता

साथ इन गुलों के

तुम भी आ जाते…

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Added by Sushil Sarna on June 25, 2017 at 9:30pm — 4 Comments

पीते हैं ...

पीते हैं ...

सब 

कुछ न कुछ

पीते हैं //



रजनी

सांझ को

पी जाती है

और सहर

रजनी को

फिर सांझ

सहर को

सच

सब

कुछ न कुछ

पीते हैं //

अंत

आदि को

पंथ

पथिक को

संत

अनंत को

घाव

भाव को

सच

सब

कुछ न कुछ

पीते हैं //



नयन

नीर को

नीर

पीड़ को

समय

प्राचीर को

सरोवर

तीर को

सच

सब

कुछ न कुछ

पीते हैं…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 23, 2017 at 7:22pm — 4 Comments

सौगंध के बंधन ....

सौगंध के बंधन ....

मुझे

सब याद है

समय की गर्द में

कुछ भी तो नहीं छुपा

न तुम

न तुम्हारी

आँखों में आंखें डालकर

सात जन्मों तक

साथ निभाने की

सौगंध

चलते रहे

चलते रहे

साथ साथ

इक दूजे के दिल में

पुष्प भाव से गुंथे हुए

अर्थपूर्ण तृषा

और अर्थपूर्ण तृप्ति की

अभिलाष के साथ

इक दूसरे  के

अंतर्मन को छूते हुए

कब यथार्थ की नदी पर

एक किनारे ने

दूसरे किनारे को जन्म…

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Added by Sushil Sarna on June 23, 2017 at 4:21pm — 8 Comments

अनकहा ...

अनकहा ...

कुछ तो

रहने दिया होता

मन की कंदराओं में

करवटें लेता

कोई भाव

अनकहा

क्या

ज़रूरी था

स्मृति पृष्ठ की

यादों को

नयन तीरों का

पता देना

आखिर

पता लग गया न

ज़माने को

सब कुछ

जो दबा के रखा था

दिल में

इक दूजे से

बांटने के लिए

सांझा दर्द

अनकहा

सांझ

कब तलक

तिमिर को रोकती

प्रतीक्षा की रेशमी डोरी

प्रभात की तीक्षण रश्मियों से…

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Added by Sushil Sarna on June 21, 2017 at 3:25pm — 8 Comments

तुम्हारी कसम ...

तुम्हारी कसम ...

सच

तुम्हारी कसम

उस वक़्त

तुम बहुत याद आये थे

जब

सावन की फुहारों ने

मेरे जिस्म को

भिगोया था

जब

सुर्ख़ आरिज़ों से

फिसलती हुई

कोई बूँद

ठोडी पर

किसी के इंतज़ार में

देर तक रुकी रही

जब

तुम्हारे लबों के लम्स

देर तक

मेरे लबों से

बतियाते रहे

जब

घटाओं की

कड़कती बिजली में

मैं काँप जाती

जब

बरसाती तुन्द हवाओं से…

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Added by Sushil Sarna on June 15, 2017 at 9:35pm — 6 Comments

1 . नटखट नज़र .../2 . भीगी सौगातें ...

1 . नटखट नज़र ...

हो जाती बरसात तो गज़ब  होता
फिर वो भीगी हया का क्या होता
वो उड़ती चुनर पे नटखट  नज़र
भटक जाती अगर तो क्या  होता

2 . भीगी सौगातें ..

.

सावन की रातें हैं सावन की बातें है 

सावन में भीगी सी चंद मुलाकातें है
इक दूजे में सिमटे वो भीगे से  लम्हे
साँसों की साँसों को भीगी सौगातें हैं

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 14, 2017 at 1:30pm — 4 Comments

मैं तस्वीर हो गया ...

मैं तस्वीर हो गया ...

क्यूँ

मेरी तस्वीर को

दीवार पर लगाते हों

एक कल को

वर्तमान बनाते हो

आज तक

कोई मेरे चेहरे को

पढ़ न पाया था

हर अपने ने मुझे

अपने स्वार्थ का

मोहरा बनाया था

मेरी हंसी भी मज़बूर थी

मेरा अश्क भी पराया था

यूँ जीवित रहने का

मैंने हर फ़र्ज़ निभाया था

चलो अच्छा हुआ

मैं एक अनकही तहरीर हुआ

बेगानों से अपनों की

ज़ागीर हुआ

अब मेरा सम्मान मोहताज़ नहीं

किसे से छुपा कोई राज़ नहीं…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 12, 2017 at 3:00pm — 5 Comments

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