For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तेरे मेरे दोहे :

तेरे मेरे दोहे :
पथ को दोष न दीजिये , पथ के रंग हज़ार
प्रीत कभी पनपे यहां ,कभी विरह शृंगार!!१!!

दर्पण झूठ न बोलता ,वो बोले हर बार
पिया नहीं हैं पास तो, काहे करे सिँगार!!२!!

शर्म  न आए चूड़ियाँ ,शोर करें घनघोर
राज रात के कह गई, पुष्प गंध हर ओर!!३!!

जर्ज़र तन ने देखिये, ये पायी सौग़ात
निर्झर नैनों से गिरे,दर्द भरी बरसात!! ४!!

बन कर लहरों पर रहें, श्वास श्वास इक जान।
मिट कर भी संसार में ,हो अपनी पहचान।।५!!

सांझे चूल्हे न रहे ,टूट गए परिवार
बच्चों का भी हो गया,अपना ही संसार!! ६!!

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 515

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on November 27, 2017 at 10:14pm
ठीक है सर ... आपकी बात से मैं पूरी तरह से सहमत हूँ। शब्दकोष में भी शर्म और शरम के आगे (फा.) लिखा हुआ है जिसे मैं समझ नहीं पाया अब समझ में आया कि उसका अभिप्राय फारसी से था। ज्ञान वृद्धि के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया सर। अपना स्नेह बनाए रखें।
Comment by Samar kabeer on November 27, 2017 at 9:38pm
"शर्म"शब्द फ़ारसी भाषा का है, जिसे आम बोलचाल में लोग"शरम"बोलते हैं,लेकिन साहित्य का आम बोल चाल से क्या सम्बन्ध?इसे हिन्दी भाषा में "लाज"कहते हैं ।
Comment by Sushil Sarna on November 27, 2017 at 9:19pm
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया का आभारी है। आदरणीय रामबली गुप्ता जी के अनुसार मैंने उसे एडिट कर दिया है। सर एक बात हिंदी शब्दकोष में शर्म और शरम दोनों ही हैं आपके अनुसार उर्दू में शर्म सही है तो फिर हिंदी में ? वैसे इस मुद्दे की तरफ ध्यानाकर्षण के लिए हार्दिक आभार।
Comment by Samar kabeer on November 27, 2017 at 1:18pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा भावपूर्ण दोहे रचे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
जनाब रामबली गुप्ता जी की बातों का संज्ञान लें ।
तीसरे दोहे में उर्दू के हिसाब से 'शरम'शब्द ग़लत है,सही शब्द है "शर्म" देखियेगा ।
Comment by Sushil Sarna on November 27, 2017 at 1:13pm

आदरणीय रामबली गुप्ता जी सृजन को आत्मीय स्नेह से अलंकृत करने एवं महीन त्रुटि को इंगित करने का हार्दिक आभार। मैं आपके विचार से सहमत हूँ और उसे एडिट कर देता हूँ। आपके इस अमूल्य सुझाव का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on November 27, 2017 at 1:13pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब सृजन को अपने स्नेह से शोभित करने का दिल से आभार।

Comment by रामबली गुप्ता on November 25, 2017 at 11:13am
बहुत खूब हार्दिक बधाई स्वीकारें। अच्छे भावपूर्ण दोहे हुए हैं आदरणीय सुशील सरना जी। कुछ शिल्पगत गुंजाइश है अभी। 'काहे करे शृंगार' में मात्राभार अधिक है। इसे 'काहे करे सिँगार' कर लीजिए। 'कह गई राज रात के' गेयता भंग है। इसे इस प्रकार करें-'राज रात के कह गई'। पाँचवे दोहे के पदांत में गुरु-लघु(21) होना चाहिए जो नही है। 'एकल हुए परिवार' में मात्राभार अधिक है। पुनः देख लीजियेगा।

शेष सब शुभ शुभ। सादर
Comment by Mohammed Arif on November 25, 2017 at 7:53am
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब,
प्रीत में , रंग में , श्रृंगार में , बेचैनी में डूबे बेहतरीन दोहों की प्यारी सौग़ात । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service