For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम चली आना   ... 


जब 

दिन भर का
शेष
थोड़ा सा
उजाला हो
थोड़ी सी
सांझ हो
मेरे प्रतीक्षा द्वार पर
निस्संकोच
तुम चली आना

जब
थके हारे विहग
अंधकार में
विलीन होती
सांझ के डर से
अपने अपने
तृण निर्मित घोंसलों में
अपनी
चहचहाट के साथ
लौट आएं
तब

मेरी आशाओं के घरौंदों में
अपनी प्रीत का
दीप जलाने
निस्संकोच
तुम चली आना

जब
मेरी पलकें
प्रतीक्षा के बोझ से
बोझिल हो
मुंदने लगें
तुम
काल पराजित करती
अपनी स्वप्न गलबाहियों से
मेरी स्वप्न सुधा मिटाना
मेरी पलक देश में
विचरण करने
निस्संकोच
तुम चली आना

मैं देर तक
रजनी को
उजालों में जाने न दूंगा
काल को
श्वासों की देहरी
लांघने न दूंगा
बस
मेरा
इतना सा अनुरोध
मान लेना
मेरे आभास को
अपने विश्वास के
आलिंगन से
अमर प्राण देने
निस्संकोच
तु........म
च....ली
आ..ना

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 524

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on October 7, 2017 at 12:14pm

आदरणीय महेंद्र जी सृजन की मुक्त कंठ से प्रशंसा का हार्दिक आभार। इंगित त्रुटि से मैं पूर्णतः सहमत हूँ इसको अभी दुरुस्त कर पुनः प्रेषित करता हूँ।  इस हेतु आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Mahendra Kumar on October 6, 2017 at 9:13pm

आ. सुशील सरना जी, बढ़िया भावाभिव्यक्ति हुई है. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.

"तुम भी मेरी 
आशाओं के घरौंदों में 
अपनी प्रीत का 
दीप जलाने 
निस्संकोच 
तुम चली आना"

यहाँ "तुम" की आवृत्ति दो बार हो रही है. देख लीजिएगा. सादर.

Comment by Sushil Sarna on September 30, 2017 at 7:27pm

आदरणीय उस्मानी साहिब , आदाब  .. सृजन के भावों की गहनता को आत्मीय मान  देने का तहे दिल से शुक्रिया।  सर इसे अतुकांत कविता ही कहेंगे।  इस शैली में बस किसी भाव के मूल बिंदु को विस्तार देते हुए अपने शब्दों में एक प्रवाह के साथ चरम तक ले जाना होता है। बस और कुछ विशेष नहीं। आपकी इस श्रद्धा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 29, 2017 at 11:21pm
बार-बार पढ़ने और पाठ करने का मन हो रहा है इस भावपूर्ण रचना का। अंतिम पंक्तियां भावनाओं के चरमोत्कर्ष पर ले जाकर झकझोर देतीं हैं। आपकी शैली की एक और बेहतरीन रचना के लिए सादर हार्दिक बधाई और आभार आदरणीय सुशील सरना जी। जानना चाहता हूं कि इस तरह की शैली कविता कहलाती है या अतुकान्त या क्षणिका। मुझे ऐसा लिखना सीखने के लिए क्या क्या करना चाहिए पढ़ने के अलावा?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
33 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
38 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
50 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service