For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुझे संसार में आने दो .....

मुझे संसार में आने दो .....

ठहरो !
पहले मैं अपनी बेनामी को नाम दे दूँ
गर्भ के रिश्ते को
दुनियावी अंजाम दे दूँ
जानती हूँ
जब
तुम मुझे जान जाओगे
बिना समय नष्ट किये
मुझे गर्भ से ही
कहीं दूर ले जाओगे
कूड़ेदान
कंटीली झाड़ियों
या फिर किसी नदी,कुऍं में
या किसी बड़े से पत्थर के नीचे
दूर रेगिस्तान में
फेंक आओगे
जहां से तुम्हें
मेरी चीख भी सुनायी न देगी

इसके बाद
तुम चैन की नींद सो जाओगे

सच बताना
क्या चैन से सो पाओगे
क्या इस जघन्य अपराध बोध से
मुक्त हो पाओगे
शायद कभी नहीं
मेरा अस्तित्व
मिट कर भी
तुम्हारे हृदय की कंदराओं में
तुम्हारे अस्तित्व तक
तुममें
जीवित रहेगा
हो सकता है
दुनिया के नज़र में
बेनामी का कफ़न ओढ़े
मैं शायद
तुम्हारे नाम के बन्धन से
मुक्त हो
मिट जाऊं
पर
याद रखना
जब कभी तुम
मेरी सृजन धरा
मेरी माँ से
आँख मिलाओगे
सच कहती हूँ
उसकी आँखों में
दूर खड़ी
इक बेटी को
तड़पता पाओगे
ज़िदगी के मोड़ पर
जब कभी
अकेले रह जाओगे
बेनामी के अन्धकार में फेंके
इस बेटी नाम के
रिश्ते के लिए
बहुत पछताओगे


चलो
सब से छुपा लोगे
मुझे बेनाम बना लोगे
मगर मैं तो तुम्हारे रिश्ते से बंधी
तुम्हारी बेटी हूँ
तुम्हारी साँसों
तुम्हारे खून
तुम्हारी आँखों में कहीं लेटी हूँ
तुम करो तो करो
मैं तुम्हें बेनाम नहीं कर सकती
बड़ी मुशिकल होगी
जब मैं इक लावा बन
तुम्हारी आँख से बह निकलूंगी
तुम्हारे हाथ पर गिरूँगी
तुम्हारी उंगली पकड़ूँगी
और मिट्टी में गिर पड़ूँगी
तुम्हारे हाथ कुछ भी न आएगा
गीली मिट्टी से हाथ सन जाएगा
एक बेनाम रिश्ता
कहकहे लगाएगा
इसलिए ठहरो
मुझे कोख से रिश्ता बनाने दो
मुझे संसार में आने दो

मुझे अपनी बेटी कहलाने दो 

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 522

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on November 3, 2017 at 4:40pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब  ... सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार।  मैं आपकी बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ और इस बाबत सजग भी रहता हूँ पर कभी कभी भावों का प्रवाह ऐसा बहता है कि मैं रचना की सीमा से बाहर हो जाता हूँ।  बहरहाल भविष्य में आपकी सलाह को अमल में लाने का पूरा प्रयास करूंगा।  आपके इस सुझाव का दिल से आभार। 

Comment by Samar kabeer on November 1, 2017 at 2:47pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,कविता बहुत गंभीर और मार्मिक है, और वो सब बयान करती है जिसे बयान होना चाहिए,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
एक बात हमेशा ध्यान में रखिये कि रचना की लम्बाई कभी कभी पाठक पर वो असर नहीं छोड़ती जो उसका अधिकार होता है,इसलिये तवालत से बचना चाहिए ।
Comment by Sushil Sarna on October 31, 2017 at 3:56pm

आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी सृजन के भावों की गहनता को आत्मीय सम्मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on October 31, 2017 at 3:56pm

आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 31, 2017 at 12:08pm
आदरणीय आपकी बहुत मार्मिक एवं जीवन्त रचना दिल को छू गयी ,इस बेहतरीन सृजन के लिए आपको कोटिशः बधाई
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 31, 2017 at 12:02pm

आदरणीय सुशील जी दिल को छू लेने वाली अत्यंत ही मार्मिक रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया

पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।घुसें समझ कर सौड़ ,…See More
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service