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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog (496)

बनाता खेत की रश्में - लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

1222  1222 1222 1222

************************

बनाता  खेत  की  रश्में  चला  जो  हल नहीं सकता

लगाता  दौड़  की  शर्तें  यहाँ   जो  चल  नहीं सकता

***

पता  तो  है  सियासत  को  मगर  तकरीर करती है

कभी तकरीर  की  गर्मी  से  चूल्हा जल नही सकता

*****

भरोसा  आँख  वालों से  अधिक  अंधों को जो कहते

तुम्हें धोखा  हुआ  होगा कि सूरज  ढल नहीं  सकता

****

असर  कुछ  छोड़ जाएगी  मुहब्बत  की झमाझम ही

किसी के शुष्क  हृदय  को भिगा बादल   नहीं…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 12, 2015 at 12:03pm — 26 Comments

प्रेत अफजल औ' कसाबों के यहाँ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर’

2122   2122   212

********************

फिर  चिरागों  को बुझाने ये लगे

रास्ता  तम  का  सजाने ये लगे

****

प्रेत अफजल औ' कसाबों के यहाँ

कुर्सियाँ  पाकर   जगाने  ये  लगे

****

साजिशें  रचते  मरे  हैं  जो उन्हें

देश भक्तों  में  गिनाने  ये  लगे

****

देश  के  गद्दार   जितने  बंद  हैं

राजनेता  कह  छुड़ाने  ये  लगे

****

बनके अपने आज खंजर देख लो

आस्तीनों   में   छुपाने   ये  लगे

****

हौसला  दहशतगरों  का यार यूँ…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 11, 2015 at 10:30am — 16 Comments

था सरीफों के लिए वो - लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

2122    2122   2122   212

*****************************

दुर्दिनों ने आँख का  जब यार  जाला  हर लिया

तब दिखा है मयकशी ने इक शिवाला हर लिया

****

बाँटती थी  कल  तलक तो  वो बहुत ही जोर दे

राह ने किस बात से  अब पाँव छाला हर लिया

****

था  सरीफों  के  लिए  वो  राह  से  भटकें नहीं

कोतवालो चोर  से  पहले  ही  ताला हर लिया

****

टोकता है  कौन  दिन  को  दे  उजाला  कुछ उसे

रात के हिस्से का जिसने सब उजाला हर लिया

****

था पुराना  ही  सही पर मान…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2015 at 5:00am — 14 Comments

दिल से हम असआर पकाया करते हैं - लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

2222    2112   2222

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पत्थर  पर  भी  प्यार  जताया करते हैं

इक  नूतन  संसार   बसाया   करते  हैं

****

लज्जत  तुमको  यार तनिक तो देंगे ही

दिल  से  हम असआर पकाया करते हैं

****

तनहा  हमको आप  समझना लोगो मत

हम  गम  का  दरवार  लगाया  करते  हैं

****

कुबड़ी  अपनी पीठ हुई  मत पूछो क्यों

यादों  का   हम  भार   उठाया  करते हैं

****

अश्कों से मत पूछ जिगर तक आजा तू

आँसू   केवल   सार   बताया   करते  हैं

****

जीवन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 7, 2015 at 11:03am — 13 Comments

भरत वो हो नहीं सकता - लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

चुभन मत  याद  रखना  तुम मिली जो खार से यारो

रहे  बस  याद  फूलों  की  मिले   जो  प्यार  से  यारो

*****

नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम

गटक  लें  द्वेष  का  विष  अब चलो संसार से यारो

*****

न समझो  हक  तम्हें  तब तक  सुमारी दोस्तो में है

रखो गर  दुश्मनी  भी  तो  मिलो  अधिकार से यारो

*****

हमें जल  के  ही  मरना था जलाया नीर ने तन मन

खुशी  दो  पल   रही   केवल   बचे  अंगार  से  यारो

*****

भरत  वो  हो  नहीं  सकता  सदा …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 2, 2015 at 11:00am — 11 Comments

धुंध का परदा हटाओ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122    2122    2122    212

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झील के पानी  को  फिर से बादलों ताजा करो

नीर हो  झरते  रहो तुम मत कभी ठहरा करो

***

सिर्फ गर्जन  के लिए  कब  धूप जनती है तुम्हें

प्यास  खेतों  की  बुझाओ  खेल  से  तौबा करो

***

जान का भय  किसलिए है परहितों की बात जब

धुंध  का  परदा   हटाओ   दूर   तक   देखा   करो

***

सूर्य  के  तुम  वंशजों  में  छोड़   दो  मायूसियाँ

त्याग दो  जीवन भले ही तम को मत पूजा करो

***

यूँ अँधेरों की  तिजारत …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2015 at 6:00am — 14 Comments

सत्य की लम्बी उमर हो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122     2122

***************

पाप   का  अवसान  मागूँ

पुण्य  का  उत्थान   मागूँ

**

सत्य  की  लम्बी उमर हो

झूठ  को  विषपान   मागूँ

**

व्यर्थ   है  आकाश  होना

सिर्फ  लधु  पहचान  मागूँ

**

राजपथ  की   राह   नीरस

पथ  सदा  अनजान  मागूँ

**

स्वर्ण   देने   की  न  सोचो

मैं तो  बस  खलिहान मागूँ

**

कोयलों   का   वंश   फूले

आज  यह  वरदान   मागूँ

**

साथ ही पर  काक के हित

इक  मधुर  सा गान मागूँ

**

मिल गए  नवरात …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2015 at 11:31am — 26 Comments

आचरण से ध्यान जादा डील में - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122   2122      212

****************************

दोष  ऐसा  आ  गया  अब  शील में

फासले  कदमों  के  बदले  मील में

***

भर लिया तम से मनों को इस कदर

रोशनी   भी   कम   लगे  कंदील  में

****

देह  होकर   देह   सा   रहते  नहीं

टाँगते  खुद  को वसन से कील में

****

युग  नया  है  रीत भी  इसकी नई

आचरण  से  ध्यान  जादा डील में  /       डील-दैहिक विस्तार

****

अब  बचे  पावन  न  रिश्ते दोस्तो

तत तक बदले है खुद को चील में

***

भय सताता क्या …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2015 at 7:00am — 25 Comments

मुखौटे ओढ़कर अब तो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1222     1222  1222 1222

*****************************

बुरे  की  कर  बुराई  अब (बुरे को अब बुरा कह कर)  बुराई  कौन  लेता  है

यहाँ  रूतबे  के  लोगों  से  सफाई कौन लेता है

 ***

हँसी अती है लोगों को किसी की आँख नम हो तो

किसी  की  पीर  हरने  को  बिवाई  कौन  लेता है

 ***

सभी  हम्माम  में नंगे किसे क्या  फर्क पड़ता अब

जमाना  भी  न   देखे   जगहॅसाई   कौन   लेता है

 ***

मुखौटे ओढ़कर अब तो दिलो का राज रखते सब

सच्चाई …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2015 at 11:00am — 18 Comments

धारावाहिक गजल भाग -1 ( लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' )

2122    2122    2122

***********************

डूबता  हो  सूर्य तो अब डूब जाए

मत कहो तुम रोशनी से पास आए /1

******

एक अल्हड़ गोद में शरमा रही जब

चाँद से  कह दो नहीं वह मुस्कुराए /2

******

थी  कभी  मैंने लगायी बोलियाँ भी

मोलने पर तब न मुझको लोग आए /3

******

आज मैं अनमोल हूँ बेमोल बिक कर

व्यर्थ  अब  बाजार जो कीमत लगाए /4

******

कामना जब मुक्ति की थी खूब मुझको

बाँधने  सब  दौड़ कर नित पास आए /5



रास  आया  है मुझे  जब  आज…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2015 at 1:52pm — 7 Comments

बसर तो प्यार से करते - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1212   1122  1212     22

***************************

किरन की साँझ पे यल्गारियाँ नहीं चलती

तमस  की  भोर पे हकदारियाँ नहीं चलती

**

बचाना  यार  चमन बारिशें भी गर हों तो

हवा की आग से कब यारियाँ नहीं चलती

**

बसर तो प्यार से करते वतन में हम  दोनों

धरम  के नाम की गर आरियाँ  नहीं चलती

**

चले वही जो करे जाँनिसार खुश हो के

वतन की राह में गद्दारियाँ नहीं चलती

**

बने हैं संत ये बदकार मिल रही इज्जत

कहूँ ये कैसे कि…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2015 at 4:04pm — 15 Comments

गाँव को तहजीब में यारो नगर मत कीजिए - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122    2122    2122    212

******************************

कोशिशें  पुरखों  की  यारों बेअसर मत कीजिए

नफरतों को फिर दिलों का यूँ सदर मत कीजिए

******

मिट गये  ये तो  नरक  सी जिंदगी हो जाएगी

प्यार  को  सौहार्द  को यूँ दरबदर मत कीजिए

******

कर रहे हो  कत्ल  काफिर बोलकर मासूम तक

नाम  लेकर  धर्म का  ऐसा कहर  मत कीजिए

******

वो  शहीदी  कैसे  जिनसे  है  फसादों   की  फसल

उनको ये इतिहास में लिख के अमर मत कीजिए

*******

दुश्मनी …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2015 at 12:34pm — 22 Comments

घाव की मौजूदगी में - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122   2122    2122   2122

******************************

मन  किसी  अंधे  कुए  में  नित  वफ़ा  को  ढूँढता है

जबकि तन  लेकर हवस को रात दिन बस भागता है

*****

तार  कर  इज्जत   सितारे   घूमते  बेखौफ  होकर

कह रहे सब खुल के वचलना चाँद की भोली खता है

*****

जिंदगी  भर  यूँ  अदावत  खूब  की   तूने  सभी  से

मौत  के  पल  मिन्नतें  कर  राह  में क्यों रोकता है

****

जाँच  को  फिर  से  बिठाओ आँसुओं कोई कमीशन

घाव   की   मौजूदगी    में    दर्द  …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2015 at 11:14am — 28 Comments

सात फेरों की रस्में निभाओ मगर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122    1221    2212

**********************

रूह  प्यासी  बहुत  घट ये  आधा न दो

आज ला के निकट कल का वादा न दो



रूख  से  जुल्फें  हटा  चाँदनी  रात में

चाँद को  आह  भरने  का मौका न दो



फिर  दिखा  टूटता नभ  में तारा कोई

भोर  तक  ही  चले  ऐसी आशा न दो



प्यार  के  नाम  पर  खेल कर देह से

रोज  मासूम  सपनों  को धोखा न दो



सात फेरों  की  रस्में  निभाओ  मगर

देह  तक ही  टिके  ऐसा  रिश्ता न दो



चाहिए  अब …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2015 at 11:00am — 10 Comments

प्यार माथे का पसीना पोछ दे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२   २१२२२ २१२

*********************

हो गया  है  सत्य  भी मुँहचौर  क्या

या  दिया हमने ही उसको कौर क्या

****

कालिखें  पगपग  बिछी  हैं निर्धनी

तब  बताओ  भाग्य होगा गौर क्या

****

मार  डालेगा  मनुजता  को  अभी

जाति धर्मो का उठा यह झौर क्या

****

हैं  परेशाँ   आप   भी   मेरी   तरह

धूल पग की हो गयी सिरमौर क्या

****

फूँक  दे  यूँ  शूल  जिनके घाव को

मायने  रखता है  उनको धौर क्या

****

प्यार  माथे  का …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2015 at 11:46am — 20 Comments

एक बूढ़ी माँ अकेली रह गई - लक्ष्मण धामी ' मुसाफिर '

2122    2122    212

*********************

बस गया है लाल बाहर क्या करे

हो  गया है  खेत  बंजर क्या करे

***

एक बूढ़ी माँ  अकेली  रह  गई

काटने को  दौड़ता घर क्या करे

***

चाँद  लौटेगा  नहीं   अब,  है  पता

रात भर रोकर भी अम्बर क्या करे

***

ठोकरें  खाना  खिलाना भाग्य में

राह  का  टूटा वो पत्थर क्या करे

***

रीत  तो थी, जिंदगी भर साथ की

दे गया धोखा जो सहचर क्या करे

***

हाथ   आयी   करवटों  की  बेबसी

मखमली…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2015 at 11:26am — 14 Comments

इस नगर में तो मुश्किल हैं तनहाइयाँ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122    1221     2212

************************

चाँद  आशिक  तो  सूरज दीवाना हुआ

कम मगर क्यों खुशी का खजाना हुआ

****

बोलने   जब   लगी   रात  खामोशियाँ

अश्क अम्बर को मुश्किल बहाना हुआ

****

मिल  भॅवर से स्वयं किश्तियाँ तोड़ दी

बीच  मझधार  में   यूँ   नहाना  हुआ

****

जब  पिघलने  लगे  ठूँठ  बरसात में

घाव  अपना  भी  ताजा  पुराना हुआ

****

देख  खुशियाँ  किसी की न आँसू बहे

दर्द  अपना  भी  शायद  सयाना…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 12, 2015 at 12:30pm — 23 Comments

आज नायक भी यहाँ पर - ग़ज़ल ( लक्ष्मण धामी ' मुसाफिर' )

2122 2122 2122 212

************************

अजनवी  सी  सभ्यता के बीज बोकर रह गए

सोचकर अपना, किसी का बोझ ढोकर रह गए

***

वक्त  सोने  के  जगा करते हैं देखो यार हम

जागने  के  वक्त लेकिन रोज सोकर रह गए

***

लोरियाँ माँ की, कहानी  नानियों की, साथ ही

चाँद तारे , फूल, तितली लफ़्ज होकर रह गए

***

कसमसाकर  दिल जो खोले है पुरानी पोटली

याद कर बचपन  को यारो नैन रोकर रह गए

***

मानता हूँ , है  हसोड़ों  की जरूरत, दुख मगर

आज नायक भी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2015 at 11:11am — 18 Comments

आँख का आँसू हॅसेगा - (ग़ज़ल ) -लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122    2122    2122    212

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चाँद  देता  है  दिलासा  कह  पुरानी  उक्तियाँ

पतझड़ों  में  गीत  उम्मीदों के गाती पत्तियाँ /1/



कह रही हैं एक दिन जब गुल खिलेंगे बाग में

फिर उदासी से  निकल बाहर हॅसेंगी बस्तियाँ /2/



स्वप्न बैठेंगे यहीं फिर गुनगुनी सी धूप में

बीच रिश्तों  के  रहेंगी  तब न ऐसी सर्दियाँ /3/



सिर  रखेगा  फिर  से  यारो सूने दामन में कोई  

आँख का आँसू हॅसेगा छोड़ कर फिर सिसकियाँ /4/



डस  रहा  है …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 24, 2014 at 11:05am — 18 Comments

है भुजंगो से भरा जग मानता हूँ - (गजल ) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122    2122    2122

************************

जिंदगी  का  नाम चलना, चल मुसाफिर

जैसे नदिया चल रही अविरल मुसाफिर /1

***

दे  न  पायें  शूल  पथ  के  अश्रु  तुझको

जब है चलना, मुस्कुराकर चल मुसाफिर /2

**

फिक्र मत कर खोज लेंगे पाँव खुद ही

हर कठिन होते सफर का हल मुसाफिर /3

**

मानता  हूँ  आचरण  हो  यूँ  सरल पर

राह में मुश्किल खड़ी तो, छल मुसाफिर /4

**

रात  का  आँचल  जो फैला है गगन तक

इस तमस में दीप बनकर जल मुसाफिर /5

**

है …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 26, 2014 at 12:30pm — 12 Comments

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