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घाव की मौजूदगी में - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122   2122    2122   2122

******************************
मन  किसी  अंधे  कुए  में  नित  वफ़ा  को  ढूँढता है
जबकि तन  लेकर हवस को रात दिन बस भागता है

*****
तार  कर  इज्जत   सितारे   घूमते  बेखौफ  होकर
कह रहे सब खुल के वचलना चाँद की भोली खता है

*****
जिंदगी  भर  यूँ  अदावत  खूब  की   तूने  सभी  से
मौत  के  पल  मिन्नतें  कर  राह  में क्यों रोकता है

****
जाँच  को  फिर  से  बिठाओ आँसुओं कोई कमीशन
घाव   की   मौजूदगी    में    दर्द   कैसे  लापता  है

*****
आप ने  पूछा  कि  पलकें किस लिए  गीली  हमेंशा
गम रहे  हरदम  सलामत  अश्क  इसको  जागता है

*****
मिल  ही  जाते  हैं  अजाने   लोग  अक्सर  दोस्तों  से
कब मिला पर वो ‘मुसाफिर’ स्वप्न जिसको खोजता है

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2015 at 1:04pm

आ० भाई खुर्शीद जी  , ग़ज़ल पर उपस्थिति से मन बढ़ने के लिय हार्दिक धन्यवाद .

Comment by khursheed khairadi on February 3, 2015 at 9:53am

जाँच  को  फिर  से  बिठाओ आँसुओं कोई कमीशन
घाव   की   मौजूदगी    में    दर्द   कैसे  लापता  है

आदरणीय लक्ष्मण साहब ,सुन्दर ग़ज़ल हुई है |घाव की मौजूदगी में दर्द लापता होना जांच का विषय है |सादर अभिनन्दन 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2015 at 12:22pm

आ0 भाई गणेश जी, गजल की प्रशंसा और उसमें निहित कमियों से अबगत कराने हेतु आभार । दरअसल नियमों पर पूरी पकड़ नहीं बन पायी है । इसलिए कई बार इस ओर ध्यान नहीं जा पाता । इसके निराकरण के लिए मतले की जगह नया मतला इस प्रकार समझें  । क्योंकि मतले में शब्दों का हेरफेर करने से उसका प्रभाव कम होता प्रतीत हो रहा है । बचलना टंकण की त्रुटि है यह शब्द चलना है । अब गजल को इस प्रकार देखें-

लौट  कर  आना  न  उसने  बात   चाहे   ये  पता  है
बाप   बूढ़ा   रास्ता   पर  लाल   का   तो   देखता  है
मन  किसी  अंधे  कुए  में  नित  वफ़ा  को  ढूँढता है
जबकि तन  लेकर हवस को रात दिन बस भागता है

यदि कोई  और  समाधान  हो  तो  सुझाएं   .....

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2015 at 12:13pm


आ0 भाई रामसिरोमणि जी, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2015 at 12:12pm


आ0 प्रतिभा बहन प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2015 at 12:12pm


आदरणीय भाई विजय जी, गजल के अनुमोदन और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2015 at 12:12pm


आ0 भाई गोपालनारायन जी, स्नेहाशीष के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2015 at 12:11pm


आ0 भाई महर्षि त्रिपाठी जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2015 at 12:11pm


आ0 भाई हरिप्रकाश जी स्नेहाशीष के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2015 at 12:11pm


आ0 भाई गुमनाम जी , गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

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