For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बनाता खेत की रश्में - लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

1222  1222 1222 1222

************************

बनाता  खेत  की  रश्में  चला  जो  हल नहीं सकता
लगाता  दौड़  की  शर्तें  यहाँ   जो  चल  नहीं सकता

***
पता  तो  है  सियासत  को  मगर  तकरीर करती है
कभी तकरीर  की  गर्मी  से  चूल्हा जल नही सकता

*****
भरोसा  आँख  वालों से  अधिक  अंधों को जो कहते
तुम्हें धोखा  हुआ  होगा कि सूरज  ढल नहीं  सकता

****
असर  कुछ  छोड़ जाएगी  मुहब्बत  की झमाझम ही
किसी के शुष्क  हृदय  को भिगा बादल   नहीं सकता

****
अगर निकले वो आहों से  तपन सूरज से भी बढ़कर
न सोचो  यार  अश्कों से  बदन ये  जल नहीं सकता

****

भरोसा  भूल  कर  भी तुम  जहाँ में यार करना मत
छले जो नारियों को नित किसे वो छल नहीं सकता

****

दुखाए  मात का मन  जो ‘मुसाफिर’ ठीक कहता है
उसे वरदान  ईश्वर  का जहाँ  में फल  नहीं सकता

****

मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

Views: 768

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 22, 2015 at 10:54am

आ0 भाई गिरिराज जी उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

किसी के शुष्क  हृदय  को भिगा बादल   नहीं सकता

दरअसल यहा पर गेयता के हिसाब से हृदय को हिरदय पढ़ा गया है अत इसकी मात्रा 22 ली गयी है यदि यह उपयुक्त नहीं है तो मार्गदर्शन करें ।  

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 22, 2015 at 10:53am

आ0 भाई मिथिलेश जी प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 15, 2015 at 8:46am

आदरणीय लक्ष्मण भाई , बढिया ग्ज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ !

पता  तो  है  सियासत  को  मगर  तकरीर करती है
कभी तकरीर  की  गर्मी  से  चूल्हा जल नही सकता -- बहुत सुन्दर !

किसी के शुष्क  हृदय  को भिगा बादल   नहीं सकता   -- इस मिसरे की तक्तीअ एक बार और कर लीजियेगा -- हृदय को आपने 22 लिया है शायद , 12 होना चाहिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 14, 2015 at 9:06pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी सर, बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई 

शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

ये कमाल के अशआर हुए है-

पता  तो  है  सियासत  को  मगर  तकरीर करती है
कभी तकरीर  की  गर्मी  से  चूल्हा जल नही सकता


भरोसा  आँख  वालों से  अधिक  अंधों को जो कहते
तुम्हें धोखा  हुआ  होगा कि सूरज  ढल नहीं  सकता

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 14, 2015 at 11:14am

आदरणीय भाई खुर्शीद जी अपका स्नेह पाकर मनोबल उच्चतम हुआ । गजल पर उपस्थिति के लिए कोटि कोटि धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 14, 2015 at 11:14am


आदरणीय भाई सोमेश जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 14, 2015 at 11:13am

आदरणीय भाई लड़ीवाला जी, समर्थन के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by khursheed khairadi on March 14, 2015 at 9:23am

पता  तो  है  सियासत  को  मगर  तकरीर करती है
कभी तकरीर  की  गर्मी  से  चूल्हा जल नही सकता

*****
भरोसा  आँख  वालों से  अधिक  अंधों को जो कहते
तुम्हें धोखा  हुआ  होगा कि सूरज  ढल नहीं  सकता

आदरणीय लक्ष्मण सर ,बहुत बहुत उम्दा अशआर हुए हैं ,सादर अभिनन्दन |

Comment by somesh kumar on March 14, 2015 at 8:51am

भरोसा  आँख  वालों से  अधिक  अंधों को जो कहते
तुम्हें धोखा  हुआ  होगा कि सूरज  ढल नहीं  सकता

हर बार की तरह नि:शब्द कर दिया आपने |सुंदर मनोभावों वाली गजल पर हार्दिक बधाई |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 13, 2015 at 4:15pm

बनाता  खेत  की  रश्में  चला  जो  हल नहीं सकता
लगाता  दौड़  की  शर्तें  यहाँ   जो  चल  नहीं सकता --  

****

दुखाए  मात का मन  जो ‘मुसाफिर’ ठीक कहता है
उसे वरदान  ईश्वर  का जहाँ  में फल  नहीं सकता | वाह ! 

बहुत सुंदर और भापूर्ण रचना | हार्दिक बधाई श्री लक्ष्मण धामी भाई  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale posted a blog post

मनहरण घनाक्षरी

रिश्तों का विशाल रूप, पूर्ण चन्द्र का स्वरूप,छाँव धूप नूर-ज़ार, प्यार होतीं बेटियाँ।वंश  के  विराट…See More
17 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा षष्ठक. . . . आतंक

दोहा षष्ठक. . . .  आतंकवहशी दरिन्दे क्या जानें , क्या होता सिन्दूर ।जिसे मिटाया था किसी ,  आँखों का…See More
17 minutes ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"स्वागतम"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a discussion

पटल पर सदस्य-विशेष का भाषयी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178 के आयोजन के क्रम में विषय से परे कुछ ऐसे बिन्दुओं को लेकर हुई…See More
7 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नीलेश जी, यक़ीन मानिए मैं उन लोगों में से कतई नहीं जिन पर आपकी  धौंस चल जाती हो।  मुझसे…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय मैं नाम नहीं लूँगा पर कई ओबीओ के सदस्य हैं जो इस्लाह  और अपनी शंकाओं के समाधान हेतु…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय  बात ऐसी है ना तो ओबीओ मुझे सैलेरी देता है ना समर सर को। हम यहाँ सेवा भाव से जुड़े हुए…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय, वैसे तो मैं एक्सप्लेनेशन नहीं देता पर मैं ना तो हिंदी का पक्षधर हूँ न उर्दू का। मेरा…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नीलेश जी, मैंने ओबीओ के सारे आयोजन पढ़ें हैं और ब्लॉग भी । आपके बेकार के कुतर्क और मुँहज़ोरी भी…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन, ' रिया' जी,अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया आपने, विद्वत जनों के सुझावों पर ध्यान दीजिएगा,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन,  'रिया' जी, अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया, आपने ।लेकिन विद्वत जनों के सुझाव अमूल्य…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' ग़ज़ल का आपका प्रयास अच्छा ही कहा जाएगा, बंधु! वैसे आदरणीय…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service