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Neeraj tripathi's Blog (25)

आओ थोड़ा सा व्यर्थ जियें

अपनों से दिल की बात, सुनहरी आँखों के ज़ज्बात;

बारिश में भी साथ, तुम्हारे हाथों में इक हाथ ;

चाँद की उजियारी रात, भोर के आने की सौगात;

जब सब बेगाना लगता हो.......

तो वापस जाना वहीँ, जहाँ तुम ह्रदय गंवाया करते थे;

जब दिल में कोई बात न थी, तब भी हकलाया करते थे;

जब आँखों पर चश्मा डाले, तुम तारे रोज़ गिनाते…
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Added by neeraj tripathi on February 9, 2011 at 4:33pm — No Comments

बड़े सामान्य से दिन हैं

बड़े सामान्य से दिन हैं ....

बेमौसम बारिशें हैं,

और सांझ की बयार में ख्वाहिशें हैं,

वही सहमी सी धूप है,

और कहीं इसमें गुमसुम,

छांव का इक रूप है,

वही चंचल से वृक्ष हैं,

और बहती हवा के साथ निष्पक्ष हैं,

वही हैं चेहरे....जाने पहचाने,

और छुपे हुए उनमे रंग,

कितने अनजाने,

वही हैं मुरादें अब भी....मन में,

और जानता है मस्तिष्क,

नहीं होंगी ये पूरी,

इस जीवन में.

बड़े सामान्य से दिन हैं ....

Added by neeraj tripathi on February 9, 2011 at 4:31pm — 1 Comment

भौगोलिक दूरियां

बड़ा बेमानी लगता है;



सुबह जो मेरे घर कि जब कहीं की सांझ होती है,







यहाँ पर सूर्य इतराता है, शाखाओं से पेड़ों की,



वहां मदहोश होने की, चाँद की तैयारी होती है,



यहाँ पर आँख खुलती है, लिहाफों के घरोंदो में,



वहां बुझती सी पलकों पर नींदें भारी होती हैं,



ये दूरी है समय की या धरा भूगोल ऐसा है,



की जगना दो घरों का साथ में, दुशवारी होती है,…

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Added by neeraj tripathi on February 9, 2011 at 4:28pm — No Comments

ये ख़ामोशी तुम्हारी

खामोशी तोड़ सकती है, ख़ामोशी जोड़ सकती है,
किसी बहके से रिश्ते को ख़ामोशी मोड़ सकती है,
खामोश रहता मैं अगर इससे सुकून मिलता,
तुम्हारी पर ये ख़ामोशी मेरा दम तोड़ सकती है.

बहुत कम दिन बचे हैं अब हमारे पास ओ प्रियतम,
कहीं खामोश न रहते हुए निकले हमारा दम,
अगर मिलना न हो हमसे तो बेशक न कभी मिलना,
इक बार हंसकर देख ही लो दर्द होगा कम. 

Added by neeraj tripathi on February 9, 2011 at 11:16am — 1 Comment

ये बदलता स्वरुप

जब बेटे की जिद्द,



माँ के वात्सल्य काजल को,



आँखों से पहले ही रोक लेती है......


जब पिता का…
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Added by neeraj tripathi on February 9, 2011 at 11:14am — 1 Comment

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