एक और ग़ज़ल पेश -ए- महफ़िल है,
इसे ताज़ा ग़ज़ल तो नहीं कह सकता, हाँ यह कि बहुत पुरानी भी नहीं है
गौर फरमाएँ
खूब भटका है दर-ब-दर कोई |
ले के लौटा है तब हुनर कोई |
अब पशेमां नहीं बशर कोई…
Added by वीनस केसरी on December 17, 2012 at 4:17am — 12 Comments
एक और शुरुआती दौर की ग़ज़ल......
कच्चे अधपके ख्यालात.......
एक दो शेअर शायद आपने सुना हो, पूरी ग़ज़ल पहली बार मंज़रे आम पर आ रही है
बर्दाश्त करें ....
इतनी शिकायत बाप रे |
जीने की आफत बाप रे |
हम भी मरें तुम भी मरो,…
Added by वीनस केसरी on December 12, 2012 at 3:05am — 16 Comments
वादा किया था कि जल्द ही कुछ पुरानी ग़ज़लें साझा करूँगा,,,
एक ग़ज़ल पेश -ए- खिदमत है गौर फरमाएं ...
फकत शैतान की बातें करे है ?
सियासतदान की बातें करे है !
अँधेरे से न पूछो उसकी ख्वाहिश,
वो रौशनदान की बातें करे है |…
Added by वीनस केसरी on December 7, 2012 at 6:07am — 10 Comments
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