For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - फकत शैतान की बातें करे है

वादा किया था कि जल्द ही कुछ पुरानी ग़ज़लें साझा करूँगा,,,
  एक ग़ज़ल पेश -ए- खिदमत है गौर फरमाएं ...



फकत शैतान की बातें करे है ?
सियासतदान  की बातें करे है !

अँधेरे से न पूछो उसकी ख्वाहिश,
वो रौशनदान की बातें करे है |

नहीं है रीढ़ की हड्डी भी जिसमें,
पतन उत्थान की बातें करे है |

अगर वो चुप रहे, उसकी खमोशी,
किसी तूफ़ान की बातें करे है |

वो पहले खुल्द की बातें करे फिर,
सरो सामान की बातें करे है |

ग़ज़ल कहना तो पहले सीख 'वीनस',
कहाँ 'दीवान' की बातें करे है |

(१२- १० - २०११)

Views: 759

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on December 13, 2012 at 1:15am

जनाब नादिर ख़ान
भाई डॉ. सूर्या बाली
भाई
SANDEEP KUMAR PATE
भाई संदीप द्विवेदी
जनाब लतीफ़ ख़ान
sri Saurabh Pandey
sri
Er. Ganesh Jee "Bagi"
sri
Laxman Prasad Ladiwala
भाई अरुन शर्मा "अनन्त"

आप सभी का तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ ....
इस ग़ज़ल के खातिर आपने जो मुहब्बत लुटाई है उससे आशआर चमकने लगे हैं
दुआओं में मुझे याद रखें

- आपका वीनस

Comment by नादिर ख़ान on December 12, 2012 at 10:43am

अँधेरे से न पूछो उसकी ख्वाहिश, 
वो रौशनदान की बातें करे है |

नहीं है रीढ़ की हड्डी भी जिसमें, 
पतन उत्थान की बातें करे है |

वाह वीनस भाई  वाह  ..

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 8, 2012 at 10:46pm

अगर वो चुप रहे, उसकी खमोशी, 
किसी तूफ़ान की बातें करे है॥

वाह वीनस भाई क्या खूब कहा है |...बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है॥

मक्ते से आज के हालात को बयां कर दिया है ॥दिली दाद कुबूल करें !

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 8, 2012 at 4:16pm

आदरणीय वीनस सर जी सभी ने बहुत कुछ कह डाला शेष कुछ भी न छोड़ा
तो बस इतन ही के नतमस्तक हूँ आपके विचारों और सोच के सामने
इतनी सालीन कहन के साथ इतने ऊँचे भाव
बस क्या बात है ये स्नेह यूँ ही बना रहे हम नौसीखियों पर भी
सादर प्रणाम

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on December 7, 2012 at 7:51pm

लाजवाब-पुर्शबाब शानदार-जानदार.. क्या कमाल किया है भाई आपने! शुरू से अंत तक एक प्रवाह में पढ़ गया! दो शे'र जो विशेष पसंद आये कोट कर रहा हूँ..

अँधेरे से न पूछो उसकी ख्वाहिश,
वो रौशनदान की बातें करे है -- क्या शानदार मुज़ाहिरा है ग़ज़ल में विरोधाभास अलंकार का..

ग़ज़ल कहना तो पहले सीख 'वीनस',
कहाँ 'दीवान' की बातें करे है -- ग़ज़ब का मक़ता.. 'अधजल गगरी छलकत जाए' टाइप शाइरों के लिए बेहतरीन सबक़ ..

बधाईयां भाई..

Comment by लतीफ़ ख़ान on December 7, 2012 at 7:35pm

जनाब वीनस भाई साहब,, उम्दा और बेहतरीन अशआर से सजी इस ग़ज़ल के लिए तहे-दिल से मुबारक बाद कुबूल कीजिये ,,, एक तवील अरसे के बाद सुकून-दिल का अहसास कराती इस ग़ज़ल का शुक्रिया,,खासकर यह दो शेर तो रिवायती शायरी के नायाब मोती हैं,,,

[१]  अगर वो चुप रहे,उस की खमोशी ,

      किसी  तूफ़ान  की बातें  करे  है ! ,,,,बहुत ख़ूब  ,,,

[२]  वो पहले खुल्द की बातें करे फिर ,

      सरो - सामान  की बातें  करे  है !,,,,रिवायती शायरी की बहतरीन मिसाल ,,,,, मक्ता भी शानदार है ,,,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 7, 2012 at 2:45pm

सियासतदान और शैतान ! यानि मतला इस बात की ताक़ीद कर रहा है कि ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. और उनकी बातें करनेवाला निहायत दोयम दर्ज़े का है. कहन का कमाल है कि ये भाव मिसरों से जबर्दस्त ढंग से उभर कर आते हैं.

सारे अश’आर समृद्ध हैं और उनका इशारा सटीक है.  जैसे, अंधेरे से न पूछो..  . में ’अंधा क्या मांगे दो आँखें, धत्त्तेरेकी..’ का भाव है. और यह शेर अंतर्निहित ’धत्तेरे की..’ के कारण अन्यतम हो गया है.

इसी तरह,  नहीं है रीढ़ की..  के जरिये हवा में मुट्ठियाँ भाँजने वालों या सोशल-साइट्स के कुल्हड़ में हुल्लड़ मचाने वालों की अच्छी खबर ली गयी है.

लेकिन जिस शेर ने मुझे अपनी कहन और अपनी बारीकी से चौंकाया है वह वो पहले खुल्द की..  है. इस शेर को तो मैं हो जाना कहूँगा. बहुत-बहुत ऊँचे मेयार का शेर बन पड़ा है, वीनस जी. बड़ी-बड़ी (?) और आदर्श कोंचती बातों से माहौल और सोसायटियों में एकबारग़ी छा जाने वाले किन्तु अंदर से निहायत खोखले लोगों की दशा पर इतना गहरा तंज शेर कहने वाले की जागरुकता और संवेदनशीलता के साथ-साथ समाज की कारगुजारियों पर पैनी नज़र रखने की उसकी खुसूसी आदतों के कारण ही संभव है.

इस सुन्दर और घोषित रूप से सालभर पुरानी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई कह रहा हूँ. बहुत खूब !!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 7, 2012 at 1:05pm

//नहीं है रीढ़ की हड्डी भी जिसमें,
पतन उत्थान की बातें करे है//

बहुत ही गहरे भाव, वीनस भाई सभी अशआर अच्छे लगे , दाद कुबूल करें |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 7, 2012 at 11:48am
सुन्दर गजल प्रस्तुत करे है 
वादा कर तू निभाया करे है ।
हार्दिक बधाई तो दिया करे है,
गजल की समझ मुझ से परे ही ।
समझ नहीं पर चर्चा करे है 
आदत है उसे मजबूर करे है ।
गजल लिखना तो सीख पहले 
गजल में तू टिपण्णी करे है  । 
Comment by अरुन 'अनन्त' on December 7, 2012 at 11:20am

वाह वीनस भाई सुबह-2 आपकी ग़ज़ल पढ़कर मानो मैं तरोताजा हो गया सभी के सभी अशआर लाजवाब हैं दिली दाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
9 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service