For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

परेशां है समंदर तिश्नगी से - ग़ज़ल

परेशां है समंदर तिश्नगी से 
मिलेगा क्या मगर इसको नदी से

अमीरे शहर उसका ख़ाब देखे  

कमाया है जो हमने मुफलिसी से

 

पुराना मस्अला ये तीरगी का 
कभी क्या हल भी होगा रोशनी से 

यहीं तो खुद से खा जाता हूँ धोका 
निभाना चाहता हूँ मैं सभी से 

नदी वाला तिलिस्मी ख़्वाब टूटा 
भरा बैठा हूँ अब मैं तिश्नगी से 

भुला बैठे जो रस्ता उस गली का  
गुज़रना हो गया किस किस गली से

 

खुशामद भर है जो महबूब की तो,  
मुझे आजिज समझिए शाइरी से

 

पुराना है मेरा लहज़ा यकीनन

मगर बरता है किस शाइस्तगी से

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 648

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on May 2, 2013 at 12:28am

vijay nikore ji  HARDIK AABHAR

Comment by vijay nikore on April 29, 2013 at 7:05pm

बहुत ही उम्दा गज़ल के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by वीनस केसरी on April 28, 2013 at 2:31pm

भावना जी,

हार्दिक आभारी हूँ 

Comment by भावना तिवारी on April 28, 2013 at 2:26pm

भुला बैठे जो रस्ता उस गली का  
गुज़रना हो गया किस किस गली से..............पुराना है मेरा लहज़ा यकीनन

मगर बरता है किस शाइस्तगी से........SADAA KI TARAH UNMDAA SHER वीनस केसरी JI ....BADHAAI .......

Comment by वीनस केसरी on April 28, 2013 at 2:09pm

dr. prachi ji dhanyvaad 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 28, 2013 at 1:03pm

खूबसूरत गज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय वीनस जी 

ये दो शेर खास पसंद आये..

यहीं तो खुद से खा जाता हूँ धोका 
निभाना चाहता हूँ मैं सभी से 

भुला बैठे जो रस्ता उस गली का  
गुज़रना हो गया किस किस गली से

सादर. 

Comment by वीनस केसरी on April 27, 2013 at 11:09pm

श्याम जी, सौरभ जी, प्रदीप जी, केवल जी, अशोक जी,

ग़ज़ल को अपना बहुमूल्य समय दे कर आशिर्वचन से अभिसिंचित करने हेतु आप सभी का हार्दिक आभारी हूँ
सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 26, 2013 at 11:12pm

यहीं तो खुद से खा जाता हूँ धोका 
निभाना चाहता हूँ मैं सभी से ............वाह! बहुत बढ़िया कहा है.

सादर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय वीनस जी सुन्दर गजल पर.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 26, 2013 at 6:45pm

आदरणीय वीनस जी,    अतिसुन्दर!  लाजवाब शे‘र ।  कितनी सादगी से बयां कि  ’पुराना है मेरा लहज़ा यकीनन!  मगर बरता है किस शाइस्तगी से!!’   हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 26, 2013 at 3:50pm

परेशां है समंदर तिश्नगी से 
मिलेगा क्या मगर इसको नदी से

अमीरे शहर उसका ख़ाब देखे  

कमाया है जो हमने मुफलिसी से

आदरणीय वीनस जी शानदार शेर हेतु सादर बधाई 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service