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लघु कथा - मजदूर

क्यों बे साले तेरी ये मजाल ... दो टके का मजदूर हो के मुझसे ज़बान लड़ाता है !

साहेब, गरियाते काहे हैं, मजदूर तो आपौ हैं  

क्या बकता है हरामखोsss

माई बाप ... पिछले हफ्ता एक मई का आपै तो कहे रहेन ,,, "हम सब मजदूर हैं"  

(मौलिक व अप्रकाशित) 

 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 17, 2013 at 8:54pm

मंच पे खड़े हो कर एकता के नारे लगाना , लुभावने भाषण देना एक बात है और कथ्य को मन से महसूस कर कथ्यानुरूप आचरण भी होना बिलकुल ही अलहदी बात!

बहुत ही सुगठित और कम शब्दों में स्पष्ट सन्देश देती सार्थक लघुकथा 

सादर बधाई आ० वीनस जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 6:17pm

वीनस भाई, इस लघुकथा के माध्यम से अत्यंत शाब्दिक और परले दर्ज़े के स्वार्थी दलालों की पूरी कलई खोली गयी है जो ’हम मज़दूर हैं..’ की मुट्ठी-भींचीं चीखों की ओट में असली खेल खेलते हुए राजनीति कर रहे हैं. उन्हें अपनी संज्ञा में मज़दूर शब्द तो मांगता है, लेकिन मज़दूर का कर्म और मज़दूर का जीवन नहीं.

बहुत ही सार्थक प्रस्तुति हुई है. आपकी कम ही लघुकथाएँ हमने देखी हैं. लेकिन जितनी देखी हैं वे सामान्य स्तर से बहुत ऊँची हैं. और उनके लिहाज़ और नज़रिये का विस्तार अवश्य ही बड़ा है.  
दिल से बधाई स्वीकारें

Comment by बृजेश नीरज on October 15, 2013 at 2:09pm

हा हा हा ......औपचारिकता में कह दी गयी बातें कहाँ याद रहती हैं!

बहुत सुन्दर कटाक्ष! आपको हार्दिक बधाई!

सादर!

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 4:58am

वाह वाह वीनस भाई.... सचमुच इस लघु कथा ने बता दिया कि ज़्यादा लिखना मायने नहीं रखता..... वरन् मायने रखता है तो केवल वह बात, भाव या प्रहार जो कम शब्दों के बावजूद पूर्णत: पाठक या श्रोता के मन तक पहुँच जाए एवं उसे झकझोर कर रख दे..... इस सुंदर लघु कथा के लिए बधाई स्वीकारें.....

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 14, 2013 at 10:28pm

मालिक गाली का प्रयोगकर रौब जमा रहा था, मजदूर  ने सुंदर शब्द से उसकी औकात बता दी । बधाई वीनस भाई । 

Comment by MAHIMA SHREE on October 14, 2013 at 10:04pm

वाह बहुत ही बढ़िया ... हार्दिक बधाई आपको

Comment by Sarita Bhatia on October 14, 2013 at 8:15am

बहुत संक्षेप में कटाक्ष कह गए ,बधाई 

Comment by vandana on October 14, 2013 at 6:58am

बहुत बढ़िया तरीके से आपने दोगलेपन पर कटाक्ष किया है आदरणीय सर 

Comment by वीनस केसरी on October 14, 2013 at 1:02am

आप सभी का हार्दिक आभारी हूँ

मित्रों
कुछ लोगों ने कहा कि उन्होंने पहली बार मेरी कोई लघुकथा पढ़ी है सभी से निवेदन है कि मैंने कुछ लघुकथाएं पहले भी ओबीओ पर पोस्ट की है, समय मिले तो मेरी पुरानी पोस्ट पर आईयेगा  ...
सादर

Comment by कल्पना रामानी on October 13, 2013 at 10:28pm

बहुत कम शब्दों में अर्थपूर्ण कथन...अति सुंदर! लघुकथाएँ वैसे भी बहुत भाती हैं, पर कसी हुई शैली की बात ही और होती है।

बहुत बहुत बधाई आपको वीनस जी

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