यही कोई 40 से 45 के बीच की रही होगीं वो गठीला बदन, घने काले बाल थ्री स्टेप में कटे हुए, माथे पर सुर्ख लाल बिंदी उनके चेहरे की खूबसूरती को और भी बढ़ा रही थी हलकी हवा के झोके से उनके बालों की लटकती हुई लट लयमान होकर मानो उनके चेहरे को पूरी तरह से ढकना चाह रही हो उनके एक ओर शून्य में एकटक निहारने की कोशिश जो बरबस उनकी तरफ मुझे आकर्षित कर रही थी उनके व्यक्तित्व को देखकर कोई भी ये महसूस कर सकता था कि उनके चेहरे पर प्रकति ने स्थाई रूप से मुस्कुराहट और प्यार चिपकाए होंगे लेकिन वक्त के थपेड़ों ने…
ContinueAdded by sunita dohare on July 19, 2014 at 5:30pm — 9 Comments
बूढ़े बरगद की आँखें नम हैं
गाँव-गाँव पे हुआ कहर है, होके खंडहर बसा शहर है
बूढा बरगद रोता घूमे, निर्जनता का अजब कहर है
नीम की सिसकी विह्वल देखती, हुआ बेगाना अपनापन है
सूखेपन सी हरियाली में, सुन सूनेपन का खेल अजब है
ऋतुओं के मौसम की रानी, बरखा रिमझिम करे सलामी
बरगद से पूंछे हैं सखियाँ, मेरा उड़नखटोला गया किधर है
सूखे बम्बा, सूखी नदियाँ, हुई कुएं की लुप्त लहर है
निर्जन बस्ती व्यथित खड़ी है, पहले…
Added by sunita dohare on July 4, 2014 at 9:00pm — 5 Comments
फिर वही कहानी “नारी व्यथा”
आज फिर सुर्ख़ियों में पढ़कर एक नारी की व्यथा,
व्यथित कर गयी मेरे मन को स्वतः
नारी के दर्द में लिपटे ये शब्द संजीव हो उठे हैं
इस समाज के दम्भी पुरुष
कभी किसी दीवार के पार उतर के निहारना
नारी और पुरुष के रिश्ते की उधडन नजर आएगी तुम्हे
कलाइयों को कसके भींचता हुआ, खींचता है अपनी ओर
बिस्तर पर रेंगते हुए, बदन को कुचलता है
बेबसी और लाचारी में सिसकती है,
दबी सहमी नारी की देह पर ठहाकों से लिखता है, …
Added by sunita dohare on July 1, 2014 at 1:30am — 19 Comments
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