सुनो सखी !
लगती मनमोहक
पावस की धुली हुई भोर
करती सबको आत्म विभोर
पुष्प से मांगती है मकरंद
छोने दुलराती बागों में मोर
अटकती बलरियों
लटकती वसुधा जी की गोद
देखो लगती मौन मुखर सी
पावस की धुली हुई भोर
भाल प्राची का सजाती
केशर तिलक वो लगाती
अलिक्षित शांति से परिपूर्ण
दर्पण ऑस बूंदों को बनाती
सम्हलती तिमिर के उर में
लजाती नव दुल्हन सी
पावस की धुली हुई भोर
कमल…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on July 26, 2015 at 2:00pm — 4 Comments
ला रहा रवि पालकी
खोल कर आकाश के पट
चल पड़ा है सारथी
खिल रहीं मदहोश कलियाँ
ला रहा रवि पालकी
भोर में ममता लुटाती
स्वर सजीली रागिनी
आ विराजा श्याम कागा
चल सखी-री जाग-री
प्रात का मंचन अनोखा
रश्मियाँ— अप्लावतीं
तृप्त तारक चल पड़े
विश्रांति की आगोश में
चाँदनी मुख ढक चली
सब आ गए यूं होश में
मौन सपनों को सजाने
चल पड़े सब…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on July 21, 2015 at 10:01pm — 14 Comments
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