For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कृष्ण जन्माष्टमी पर चार कुण्डलिया छंद

1)

लगी कहन माँ देवकी….सुनलो तारनहार

सफल कोख मेरी करो…..मानूँगी उपकार

मानूँगी उपकार ……. रहूँ ममता में भूली

हृदय भरें उद्गार…...भावना जाये झूली

स्वारथ हो ये जन्म...जाऊँ बन तेरी सगी

हे करुणा के धाम,लगन मनसा ये लगी॥

***************************************

 2)

कारा गृह में अवतरित......दीनबंधु भगवान

मातु-पिता हर्षित हुए, लख शिशु की मुस्कान

लख शिशु की मुस्कान, व्यथा बिसरी तत्क्षण ही

बही हृदय रस धार ...देव ने किया वरण भी

देव तुल्य वसुदेव ...... देवकी उनकी दारा

गोद विराजे श्याम .. लगी मनभावन कारा

 

 

3)

ताले टूटे जेल के............... सोये पहरेदार

उमगा मन वसुदेव का, आया जगताधार

आया जगताधार .......सो गई सारी नगरी

चली पवन झकझोर...छाई चहूँ दिश बदरी

गई कंस लों खबर …….पड़े प्राणों के लाले

भूला सब सुख चैन ,अकल पे पड़ गए ताले

***************************************

 

4)यमुना उमगी ज़ोर से ,छूने को हरि पाँव

जगत नियंता हँस रहे ….शेषनाग की छाँव

शेषनाग की छाँव...... पिता को धीरज देते

हुई सिथिल जल धार ,सांस राहत की लेते

तात हुये गंभीर ....जोश मन बड़ा सौ गुना

हुये सहायक देव ......शेष जा बैठा यमुना ॥

*****************************************

मौलिक व अप्रकाशित 

कल्पना मिश्रा बाजपेई 

Views: 1233

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kalpna mishra bajpai on September 10, 2015 at 11:46pm

बहुत बहुत आभार सौरभ जी आपका 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 9, 2015 at 10:49pm

//’तेरी सगी’ के ’री सगी’, ’ये लगी’ और ’सौ  इन के स्थान पर किन शब्दो का प्रयोग किया जाए और किस तरह .......... बताने की कृपा कीजिएगा //

इन तीन पंक्तियों के अलावा जिस तरह से आपने अन्य पंक्तियों का अंत किया है और रोला छन्द के विधान का निर्वहन किया है, आदरणीया कल्पनाजी.

शुभ-शुभ

Comment by kalpna mishra bajpai on September 9, 2015 at 8:46pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर आप का सुझाव मेरे लिए बहुत ही हितकर है मैं पूरी कोशिश करुगी सार गर्वित लिखने की । 

’तेरी सगी’ के ’री सगी’, ’ये लगी’ और ’सौ  इन के स्थान पर किन शब्दो का प्रयोग किया जाए और किस तरह .......... बताने की कृपा कीजिएगा  /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on September 9, 2015 at 8:43pm

रचना पसंद करने के लिए आप सभी माननीय जनों का हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ /सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 9, 2015 at 8:09pm

आदरणीय सौरभ जी के विचारों से सहमत . शिल्प को समझने पर कविता और निखरेगी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 9, 2015 at 11:37am

आपकेप्रयासों के लिए हार्दिक धन्यवाद और बधाइयाँ आदरणीया. मनभावन भाव शाब्दिक हुए हैं !

शब्दो के प्रयोग में यह रचना आंचलिकता को छूती चलती है. यह भक्ति भाव से उपजी आत्मीयता के कारण हो सकता है 

शिल्प स्तर पर यही कहना है कि रोला का पदांत रगण (गुरु-लघु-गुरु) से नहीं होता. आपने ’तेरी सगी’ के ’री सगी’, ’ये लगी’ और ’सौ गुना’ का प्रयोग कर ऐसा होने दिया है. 

प्रयास केलिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by Sushil Sarna on September 8, 2015 at 7:03pm

सुंदर कुण्डलिया की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आदरणीया। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 8, 2015 at 6:39pm
सुन्दर प्रस्तुति। बधाई
Comment by Rahul Dangi Panchal on September 8, 2015 at 4:18pm
बहुत सुन्दर रचनाए बधाई स्वीकार करें
Comment by Harash Mahajan on September 8, 2015 at 1:12pm

आदरणीय kalpna mishra bajpai  जी बेहद खूबसूरत कुंडलिया छंद जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में पेश हुए हैं आज आपकी कलम से....बहुत बहुत बधाईइ...!! सादर !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service