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Manan Kumar singh's Blog – May 2017 Archive (6)

गजल(झूठ बहुत ...)

22 22 22 22

झूठ बहुत तुमने बोले हैं

भाव सभीने ही तोले हैं।1



नासमझी का दामन पकड़े

छोड़े तुमने बस गोले हैं।2



कर्त्ता हो,बलिहारी समझो,

शब्दों के पीछे झोले हैं।3(झटके)



निज करनी मत पर्दा डालो,

राज कहाँ हमने खोले हैं?4



लिंग-वचन नियमित रहने दो,

कथ्य बहुत क्यों कर डोले हैं?5



चाहे कुछ भी कर लोगे क्या?

तथ्यों के अपने झोले हैं।6(झोलियाँ)



तुमने कुछ समझा है?,बोलो-

शेर बने क्या मुँहबोले हैं?7

@'मौलिक… Continue

Added by Manan Kumar singh on May 28, 2017 at 10:30pm — 9 Comments

गजल( वह जमीं पर आग यूँ बोता रहा)

2122  :    2122         212 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

वह जमीं पर आग यूँ बोता रहा

और चुप हो आसमां सोया रहा।1



आँधियों में उड़ गये बिरवे बहुत

साँस लेने का कहीं टोटा रहा।2



डुबकियाँ कोई लगाता है बहक

और कोई खा यहाँ गोता रहा।3



पर्वतों से झाँकती हैं रश्मियाँ

भोर का फिर भी यहाँ रोना रहा।4



हो…

Continue

Added by Manan Kumar singh on May 22, 2017 at 8:27am — 7 Comments

गजल(आइये,आज का चलन.....)

212 212 212 212

^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^

आइये,आज का जो चलन,देखिये,

सच हुआ झूठ का जो कथन,देखिये।1



मैं सही,वह गलत,घोषणा हो रही,

जिंस बन बिक रहे वे,रटन देखिये।2



देख लें सूट-बूटी वदन आज कल

फट गयी जेब चमके बटन देखिये।3



बेतरह ढूँढ़ते आपकी गलतियाँ

ढूँढ़ते आप, फटता गगन देखिये।4



नेमतें खुद गिनाते , हुए मौन कब?

लग रहा, बढ़ गया है वजन, देखिये।5



चाँद पर थूकना है मुनासिब कहीं?

दाग लगता नहीं क्या? फलन… Continue

Added by Manan Kumar singh on May 14, 2017 at 8:00am — 14 Comments

गजल( बेखुदी में यार मेरे....)

2122   2122  2122  212

बेखुदी में यार मेरे याद आना छोड़ दो

मुस्कुराने की अदा है कातिलाना, छोड़ दो।1

 

सूखती-सी जो नदी उम्मीद की, बहती रही

कान में पुरवाइयों-सी गुनगुनाना छोड़ दो।2

 

ख्वाहिशों के दौर में थमती नहीं है जिंदगी 

उँगलियों पर अब जरा मुझको नचाना छोड़ दो।3

 

चाँद ढलता जा रहा फिर है पड़ी सूनी गली

बेबसी में अब कभी मुझको बुलाना छोड़ दो।4

राह अपनी मैं चलूँ तुमको मुबारक रास्ते

अनकही बातें बता रिश्ते…

Continue

Added by Manan Kumar singh on May 10, 2017 at 9:11pm — 10 Comments

गजल(कुर्सी के हाथ हुए पीले)

22 22 22 22

***********

कुर्सी के हाथ हुए पीले

साहब जी अब पड़ते ढ़ीले।1



पानी उतरा जाता उनका

दीख रहे टीले ही टीले।2



बिकते आये घोड़े माफिक

रंग रहे काफी चटकीले।3



याद सताती कुर्सी की तो

हो जाते हैं खूब हठीले।4



ढूँढ रहे वे रोज सनद ही

उम्मीद बँधे तो हैं फुर्तीले।5



कुर्सी ढ़ाढ़स देती,कहती-

पाँच बरस कैसे भी जी ले।6



रक्त पिये जायेगा कितना

थोड़ा-थोड़ा आँसू पी ले।7



अँधियारे में वस्त्र फटा… Continue

Added by Manan Kumar singh on May 8, 2017 at 7:00am — 12 Comments

गजल(कुछ भी कह पाना है मुश्किल)

कुछ भी कह पाना है मुश्किल
चुप भी रह जाना है मुश्किल।1

जो बात बयारों की करते
उनको समझाना है मुश्किल।2

वे अक्स छुपाये चलते हैं
पहचान बताना है मुश्किल।3

इतिहास गढ़ा भी जाता है
इतिहास मिटाना है मुश्किल।4

वे काँटे खूब बिछा सकते
बस पीर घटाना है मुश्किल।5

अरमां की लूट मची रहती
हाँ, ख्वाब सजाना है मुश्किल।6
'मैलिक व अप्रकाशित'

Added by Manan Kumar singh on May 5, 2017 at 9:41am — 9 Comments

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