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उठे हैं किसी को गिरा के मियाँ
चले पाग सर पे सजा के मियाँ।1

कहा था, डरेगा न कोई यहाँ
रहे खुद को हाफ़िज बना के मियाँ।2

रहेगा न सूखा शज़र एक भी--
कहें नीर सारा सुखा के मियाँ।3

मिटी भूख उनकी हुए सब सुखी
चहकते चले माल खा के मियाँ।4

किये लाख सज़दे, मिले कब सनम?
गये थे कभी सर नवा के मियाँ।5

पढ़ाने चले पाठ बन हमनवा
घरों को यहाँ पे जला के मियाँ।6

क्या तकरीर करते खड़े सामने
इसी ठाँव बातें बढ़ा के मियाँ।7

निगाहें झुकाये रियाया खड़ी
हँसे आज नजरें उठा के मियाँ।8

गये दिन बहुत याद करते नहीं
टिके हैं हमी को लड़ा के मियाँ।9
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Manan Kumar singh on November 3, 2018 at 9:00pm

आपका आभार आदरणीय छोटेलाल सिंह जी।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on November 3, 2018 at 2:05pm

आदरणीय मनन सिंह जी उम्दा गजल लिखने के लिए हार्दिक बधाई

Comment by Manan Kumar singh on October 30, 2018 at 10:17am

आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण भाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 30, 2018 at 4:58am

आ. भाई मनन जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई।

Comment by Manan Kumar singh on October 29, 2018 at 10:01pm

आभारी हूँ आदरणीय बलराम जी।

Comment by Balram Dhakar on October 29, 2018 at 8:40pm

बेहतरीन ग़ज़ल हुई है, आदरणीय मनन कुमार जी।

बहुत बहुत बधाई।

सादर।

Comment by Manan Kumar singh on October 29, 2018 at 7:20pm

आदरणीय राज नवादवी जी, प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया।

Comment by राज़ नवादवी on October 29, 2018 at 6:46pm

आदरणीय मनन कुमार जी, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ. सादर. 

Comment by Manan Kumar singh on October 29, 2018 at 5:47pm

आदरणीय समर साहिब,नमन व शुक्रिया।मैं एतदजनित संशोधन करता हूँ,शुक्रिया।

Comment by Samar kabeer on October 29, 2018 at 5:17pm

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

'निगाहें झुकाये रियाया खड़ी'

इस मिसरे में 'रियाया' ग़लत शब्द है, सहीह शब्द है "रिआया"

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