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Coontee mukerji's Blog – May 2013 Archive (8)

अचानक



उस दिन अचानक

न मैंने कुछ सोचा था ,

न वक्त ने कुछ तय किया था .

आकाश भी नीला था

उसने भी तो कुछ सोचा नहीं था -

फिर राह में आ गया बादल

हम आपस में टकरा गये

न उसने कुछ कहा

न मैंने कुछ कहा .

हवा धीरे धीरे बह रही थी ,

मुझे देख ठिठक गयी ,

पर, मैं अभिमानिनी ,

जैसे कुछ सुनने की अपेक्षा ही नहीं .

कुछ दूर चल कर बादल रूका ,

वह चाहता था मुझसे कुछ सुनना ,

पर , मैंने कुछ न कहा.

एक अंतराल बाद

जिसमें समय की…

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Added by coontee mukerji on May 31, 2013 at 4:00pm — 14 Comments

हवा

हवा

एक वासंती सुबह

‘’ मैं कितनी खुशनसीब हूँ ,

मेरे सर पर है आसमान

पैरों तले ज़मीन .

मेरी सांसों के आरोह – अवरोह में ,

मेरे रंध्रों में ,

शुद्ध हवा का है प्रवाह .’’

‘’ मैं कितनी खुशनसीब हूँ .’’

कुंजों में एक सरसराहट सी हुई ,

मालती की कोमल पल्लवों पर ,

ठहरी हुई थी हवा ,

मेरे विचारों को भाँप कर ,

मेरे गालों को थपथपा कर

उसने हौले से कहा –

‘’ खुश और नसीब ,

दो अलग अलग है बात .

मुझसे पूछो –

मैं…

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Added by coontee mukerji on May 29, 2013 at 1:25am — 14 Comments

सूखा

सूखा !

मही मधुरी कब से तरस रही ,

बुझी न कभी एक बूँद से तृषा ,

घनघोर घटाएँ लरज लरज कर ,

आयी और बीत चली प्रातृषा .

ईख की जड़ में दादुर बैठे ,

आरोह अवरोह में साँस चले ,

पानी की अहक लिये जलचर ,

ताल हैं शुष्क सबके प्राण जले .

पथिक राह चले बहे स्वेदकण ,

पथतरू* से प्यास बुझाए मजबूरन , * traveller’s tree

दूर कोई आवाज़ बुलाए कल् कल्…

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Added by coontee mukerji on May 9, 2013 at 10:30pm — 14 Comments

भिखारन की निष्ठा

भिखारन की निष्ठा

मेरे घर के करीब भिखारियों का एक परिवार रहता था. चार बच्चे और पति – पत्नी. सुबह तड़के ही सभी घर से निकल जाते और गोधूली बेला तक सभी वापस आ जाते.

एक दिन क्या हुआ कि पति और बच्चे तो आ गये लेकिन भिखारन को आने में देर हो गयी . उसके आते आते रात के आठ बज गये. सभी भूखे थे. अतः भिखारन ने जल्दी से चावल की हांडी चूल्हे पर रख दी. चावल जब पक गया तो उसने अपने पति और बच्चों को पहले खिला दिया. बाद में जब वह खाने बैठी तो देखा हांडी में चावल के साथ एक छिपकली भी पक गयी है. भिखारन के…

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Added by coontee mukerji on May 8, 2013 at 12:00pm — 9 Comments

माँ का पल्लू

माँ का पल्लू



मेरा छोटा भाई हमेशा मेरी माँ का पल्लू थामे रहता .माँ जहाँ भी जाती वह पल्लू पकड़े साथ साथ चलता . कभी कभी तो माँ को जब बाथरूम जाना होता तो और मुश्किल में पड़ जाती. कभी माँ खीज कर कहती – छोड़ो पल्लू बेटा ! इतना अपशकुन क्यों करते हो ? अगर मैं मर गयी तो क्या करोगे ?

अबोध बालक तो कुछ नहीं समझ पाया कि मृत्यु क्या…

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Added by coontee mukerji on May 7, 2013 at 6:00pm — 9 Comments

नर-नारी संवाद



कहता है नर सदियों से

‘’ हे नारी !

पड़े सागर तल में

सीप में जो मोती द्वय

या ‌‌– तुम्हारे दो नयन हैं ! .

तुम रूपजाल हो या –

तुम्हारे अंग – अंग में

प्रकृति अटकी हुई है .’’

नारी कहती है

हे नर !

‘’ मैं ही अक्ष हूँ .

मैं ही आँसू

मोती भी

और सीप भी हूँ -

तुम्हारे लिये ही

मैं रोती हूँ, हँसती हूँ,

सजती हूँ, गाती हूँ

समझो न मुझे तुम रूपजाल

मैं प्रकृति की छाया हूँ

मही मेरी जननी है ‘’

( नर-नारी…

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Added by coontee mukerji on May 6, 2013 at 10:00am — 8 Comments

देवता ! मुझे शरण दो

देवता ! मुझे शरण दो !

अस्सी साल की बुढ़िया ,

लाठी टेकती आयी ,

गुहार करने

मंदिर आंगन द्वार .

हाथ उठाकर ,

घण्टी भी बजा न सकी .

जर्जर काया जीवन से त्रस्त ,

और दुखित -

अपनों से सतायी हुई, उपेक्षित .

माँग रही थी मृत्यु का वरदान ,

पर – देवता सोये थे निश्चिंत .

कम्पित कर जोड़े ,

साथ न दे रही थी

थर्राती वाणी.

‘’ मैया ! घर जाओ ‘’ बोले पुजारी

‘’ कहाँ जाऊँ बेटा, कहीं नहीं कोई ‘’.

जो कुछ था लूट लिया…

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Added by coontee mukerji on May 4, 2013 at 7:13pm — 8 Comments

एक सवाल

(1)

कब मैंने तुमसे

वादा किया था कोई

अपने को मैंने कब बंधन में बाँधा

जो किया , तुमने ही किया

हर सुबह आलस्य तजकर

पूजा की थाल सजा

अरूणोदय होता तेरे दर्शन से .

(2)

मिथ्या लगी

जग की सारी बातें

जब मैंने तुमसे प्रीत की

अब क्रोध करूँ या मान करूँ

या करूँ अपने आप पर दया

रीति रिवाजों के नाम पर

खींच दी तुमने सिंदूर की लम्बी रेखा

भाग्य ने लिख दी माथे पर मृत्युदण्ड

चेहरे पर घूँघट खींचकर .

(3)…

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Added by coontee mukerji on May 2, 2013 at 11:30am — 17 Comments

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"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

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