For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नर-नारी संवाद


कहता है नर सदियों से
‘’ हे नारी !
पड़े सागर तल में
सीप में जो मोती द्वय
या ‌‌– तुम्हारे दो नयन हैं ! .
तुम रूपजाल हो या –
तुम्हारे अंग – अंग में
प्रकृति अटकी हुई है .’’
नारी कहती है
हे नर !
‘’ मैं ही अक्ष हूँ .
मैं ही आँसू
मोती भी
और सीप भी हूँ -
तुम्हारे लिये ही
मैं रोती हूँ, हँसती हूँ,
सजती हूँ, गाती हूँ
समझो न मुझे तुम रूपजाल
मैं प्रकृति की छाया हूँ
मही मेरी जननी है ‘’
( नर-नारी जन्म-जन्मान्तरों से हैं
एक दूसरे के हृदय में विराजमान
कभी रूप कभी रस तो कभी गंध
बन, खिले मुरझाए हैं जीवन वन )

Views: 538

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 8, 2013 at 4:51am

पस्पर विश्वास ही पूरक होने की आ्वस्ति का मूल हैं. इस तथ्य की रोचक प्रस्तुति हुई है.

सादर बधाई, आदरणीया.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 7, 2013 at 7:47pm

आदरणीया कुन्ती जी,  वाह!  क्या खूब?  शानदार, आत्मा-परमात्मा का सुन्दर मिलन,  एकाकार-कस्तूरी सा एहसास।  तहेदिल से हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by Usha Taneja on May 7, 2013 at 7:00pm

आदरणीया  coontee mukerji जी, 

तुम्हारे लिये ही
मैं रोती हूँ, हँसती हूँ,
सजती हूँ, गाती हूँ
समझो न मुझे तुम रूपजाल 
मैं प्रकृति की छाया हूँ
मही मेरी जननी है ‘’

मन को छू गई है.

मर्मस्पर्शी कविता अच्छी लगी. 

बधाई!

Comment by manoj shukla on May 6, 2013 at 6:06pm
इस सुन्दर अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें आदर्णीया
Comment by Shyam Narain Verma on May 6, 2013 at 1:23pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.
Comment by vijay nikore on May 6, 2013 at 12:45pm

आदरणीया कुंती जी:

 

नर-नारी की गुत्थियों की सुन्दर अभिव्यक्ति।

बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by coontee mukerji on May 6, 2013 at 12:11pm

बहुत बहुत धन्यवाद , आदरणिय प्रदीप जी .

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 6, 2013 at 12:07pm

bahut hii sundr abhivyakti hetu 

hardik badhai swikar karen mahodya ji 

saadr 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर और भावप्रधान गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"सीख गये - गजल ***** जब से हम भी पाप कमाना सीख गये गंगा  जी  में  खूब …"
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"पुनः आऊंगा माँ  ------------------ चलती रहेंगी साँसें तेरे गीत गुनगुनाऊंगा माँ , बूँद-बूँद…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
16 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service