For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(1)
कब मैंने तुमसे
वादा किया था कोई
अपने को मैंने कब बंधन में बाँधा
जो किया , तुमने ही किया
हर सुबह आलस्य तजकर
पूजा की थाल सजा
अरूणोदय होता तेरे दर्शन से .

(2)
मिथ्या लगी
जग की सारी बातें
जब मैंने तुमसे प्रीत की
अब क्रोध करूँ या मान करूँ
या करूँ अपने आप पर दया
रीति रिवाजों के नाम पर
खींच दी तुमने सिंदूर की लम्बी रेखा
भाग्य ने लिख दी माथे पर मृत्युदण्ड
चेहरे पर घूँघट खींचकर .

(3)
मौत का कहीं नामोनिशान नहीं
खामोश है तक़दीर
एक अदृश्य भय मन को सालता
सुहाग बिंदी दर्पण से पूछती
‘’ कब तक है अस्तित्व मेरा ? ‘

(4)
कितने सवाल उठते हैं ,
मगर अधूरे ,
मन की आशाएँ उतनी ही चंचल ,
सागर में उठती जितनी लहरें
आकाश में जितने हैं उड़ते बादल .

(5)
सदियों से नारी पूछ रही
है सवाल !
कभी कन्या कभी भार्या बन कर
कहाँ है मेरे पग तले की जमीन ?
इतनी बड़ी धरती में
मैं क्यों अस्तित्वहीन ?

Views: 740

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on May 29, 2013 at 3:50pm
क्षमा करें आदरेया आपकी इस उत्कृष्ट कृति तक इतनी देर से पहुंच सकी।
ऐसी कौन नारी होगी जिसके हृदयातल को नहीं कुरेदेगी ये रचना! पर ये सवाल शायद अनुत्तरित ही रहेगा।
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है आदरणीय।
सादर बधाई स्बीकारें
Comment by Vindu Babu on May 29, 2013 at 3:49pm
क्षमा करें आदरेया आपकी इस उत्कृष्ट कृति तक इतनी देर से पहुंच सकी।
ऐसी कौन नारी होगी जिसके हृदयातल को नहीं कुरेदेगी ये रचना! पर ये सवाल शायद अनुत्तरित ही रहेगा।
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है आदरणीय।
सादर बधाई स्बीकारें
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 23, 2013 at 6:13am

नि:शब्द कर देती है आपकी हरेक पंक्तियाँ!

Comment by coontee mukerji on May 14, 2013 at 12:24pm

सीमा जी , जब तक दहेज प्रथा बंद नहीं होगी , जब तक बेटियाँ बिखती रहेंगी, नारियाँ सवालों का अंबार लगाती रहेंगी.. ....कभी मूक नयनों से सवाल करेगी तो कभी मुखर हो के ...........जिस दिन समस्या का समाधान हो जायगा तो देखिये  नारी का सौम्य और विलक्षण रूप ...जो अब तक नाना प्रकार की सामाजिक कुरीतियों में  जकड़ी हुई है ........... मेरी मेड के हाथ पर गाड़ी का पहिया चढ़ गया  यह  इसलिये कि उसे हाथ भर लम्बा घूँघट  निकाल  कर ससुराल जाना था......खैर जिंदगी एक जंग है पल पल मौत का सामना करना पड़ता तो है. मेरी रचना को मान देने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद .

Comment by Roshni Dhir on May 13, 2013 at 8:53pm

Mukrji ...

अति सुंदर ... सब पहले ही इतनी तारीफ कर चुके है .. मेरे तो बस ये तो शब्द ही है आपकी रचना के लिए अति सुंदर ..

आभार 

Comment by seema agrawal on May 9, 2013 at 8:48pm

स्त्री और पुरुष के बीच खींची सनातन प्रश्नों की दीवार एक बार पुनः नए कलेवर में आपकी रचनाओं में मिली 

सदियों से नारी पूछ रही
है सवाल !
कभी कन्या कभी भार्या बन कर
कहाँ है मेरे पग तले की जमीन ?
इतनी बड़ी धरती में
मैं क्यों अस्तित्वहीन ?................ शायद अब प्रश्न बंद कर प्रयास का समय आ जाना चाहिए अन्यथा प्रश्नों के ढेर  बढ़ते रहेंगे और समाधान का समय बीतता जाएगा 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 4, 2013 at 11:20pm

सदियों से नारी पूछ रही
है सवाल !
कभी कन्या कभी भार्या बन कर
कहाँ है मेरे पग तले की जमीन ?
इतनी बड़ी धरती में
मैं क्यों अस्तित्वहीन ?..............वाह........... बहुत सुन्दर यह पद सबसे सुन्दर है. 

Comment by KAVI DEEPENDRA on May 4, 2013 at 7:29pm

भावना, शब्द, हर लिहाज से काबिलेतारीफ....

Comment by Priyanka singh on May 4, 2013 at 7:26pm

बहुत सुन्दर शब्दो से सजाया अपने,उमदा.....बधाई

Comment by बृजेश नीरज on May 4, 2013 at 6:48pm

स्त्री पुरूष के संबंध बहुत ही नाजुक होते हैं। प्रेम और वासना, अहं और अस्तित्व, अधिकार और वर्चस्व के बीच झूलते इस संबंध के अंतर्संघर्ष को जिस खूबसूरती से आपने पिरोया है उसके लिए आप बधाई की पात्र हैं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
2 hours ago
vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
10 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
22 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
22 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service