For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


उस दिन अचानक
न मैंने कुछ सोचा था ,
न वक्त ने कुछ तय किया था .

आकाश भी नीला था
उसने भी तो कुछ सोचा नहीं था -
फिर राह में आ गया बादल
हम आपस में टकरा गये
न उसने कुछ कहा
न मैंने कुछ कहा .
हवा धीरे धीरे बह रही थी ,
मुझे देख ठिठक गयी ,
पर, मैं अभिमानिनी ,
जैसे कुछ सुनने की अपेक्षा ही नहीं .
कुछ दूर चल कर बादल रूका ,
वह चाहता था मुझसे कुछ सुनना ,
पर , मैंने कुछ न कहा.
एक अंतराल बाद
जिसमें समय की सीमा निर्धारित न थी,
बादल आया नहीं -
मैं रोज खेतों की मेढ़ पर खड़ी राह देखती रही ,
नदी नाले सूख गये ,
ज़मीन फट गयी
सारी बस्ती उजड़ गयी .
परिंदों ने भी जाते – जाते मुझसे कहा –
‘’चलें.. ‘’
मैं नहीं गयी .
मुझे बादल के आने की प्रतीक्षा थी ,
आज न हो ,कल तो आएगा .
साल दर साल गुज़र गये
मैं जड़ हो गयी . ......और ,
एक दिन अचानक ,
बादल आया पानी की बारात लेकर .
सूखी नदी उमड़ आयी
नयी कोपलें ज़मीन से उभरी
चिड़ियाँ भी लौटीं
डालों पर घोंसले बनायीं
नित्य नये संसार बसने लगे .
मेरे पैरों तले की ज़मीन भी गीली हुई,
मेरी अंतरात्मा तर हो गयी .

मेरे सोये सपने जाग उठे
मैंने पलकें झपकाईं
मोगरे के फूल झरने लगे
जिंदगी नयी खुशियाँ लेकर ,
पुनः मेरे आँगन में उतरी .
......फिर एक दिन अचानक
कुछ पंछी आये और बोले –
‘’ चलो ! नयी बस्ती की खोज में ‘’
‘’ क्यों ?’’
‘’ क्योंकि यह जीवन का दस्तूर है . ‘’
मेरा नव जागरण हो चुका था ,
मैं जीवन का मर्म समझ चुकी थी .
कुछ और साल बीते .....
एक दिन अचानक
घनघोर घटाएँ
मेरे आँगन में उमड़ी
इस बार बिजली भी आयी सौत बनकर ,
बादल गरजा दामिनी दमकी ,
पर मैं अविचलित रही ,
मैं चैतन्य थी , जागरूक थी .
साल बीतते गये ,
मेरे और बादलों के बीच एक
सामंजस्य बैठ गया .
मैं जंगल बनाती गयी ,
वह पानी बरसाता गया.
पशु कभी भूख से मरे नहीं
पंछी वन छोड़ उड़े नहीं.
हम आपस में बात करते रहे
वह मेरा मार्गदर्शन करता रहा .
मैं एक-एक बूँद से जलाशय बनाती गयी .
लोगों ने कहा – ‘’ इतना पानी क्या होगा ?
धरती डूब जायगी .’’
‘’ डूबने दो ‘’
‘’ सूखे से डूबना बेहतर है .
उसी में नवजीवन है. ‘’
धरा ने हरा आंचल मुँह में दबाकर
धीरे से करवट बदल ली.

 

 
( मौलिक एवं अप्रकाशित रचना )

Views: 700

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by D P Mathur on June 17, 2013 at 7:50am

भावपूर्ण और सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई ! 

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 8, 2013 at 9:32pm

आदरणीया कुंती जी सादर बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by विजय मिश्र on June 3, 2013 at 12:50pm
कुंतीजी ,अपने में जीवन मर्म के गहन अर्थ समेटे धीरे-धीरे पग बढ़ाती सबकुछ ढंग से कहती है आपकी यह भावभरी कविता . साधुवाद .
Comment by annapurna bajpai on June 3, 2013 at 1:23am

adarniya kuntee ji sundar kavita hetu bahut badhai .

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on June 2, 2013 at 1:40pm

बेहतरीन रचना... आदरणीया कुन्ती जी सादर बधाई स्वीकारें...

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 2, 2013 at 12:16pm
"आदरणीया...अति सुन्दर रचना " न मैने कुछ सोचा था, न वक्त ने कुछ तय किया था "....बेहतर अभिव्यक्ति...शुभकामनायें आदरणीया कुन्ती जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 2, 2013 at 12:14pm

आदरणीया कुन्ती जी, आपकी भावदशा को हम दिल की गहराइयों में महसूस कर रहे हैं.

आपकी पंक्तियों में जो भावनात्मक बहाव है उसके प्रति सादर नमन.

शुभेच्छाएँ.

Comment by aman kumar on June 2, 2013 at 11:35am

मेरे और बादलों के बीच एक 
सामंजस्य बैठ गया . 
मैं जंगल बनाती गयी ,
वह पानी बरसाता गया.
पशु कभी भूख से मरे नहीं 
पंछी वन छोड़ उड़े नहीं.

मेरे और बादलों के बीच एक 
सामंजस्य बैठ गया . 
मैं जंगल बनाती गयी ,
वह पानी बरसाता गया.
पशु कभी भूख से मरे नहीं 
पंछी वन छोड़ उड़े नहीं.

.अति सुंदर !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 1, 2013 at 3:45pm

मन में उठते भावों के ताने बाने में रची पगी इस रचना अभियक्ति के लिए बधाई आदरणीया कुंती मुखर्जी 

Comment by vijay nikore on June 1, 2013 at 6:32am

इस जीवंत रचना की हर पंक्ति

शब्द चित्र अंकित कर देती है

मानस पटल पर।

साधुवाद, कुंती जी।

सादर और सस्नेह,

विजय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
8 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
20 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service