1222---1222---1222---1222 |
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सभी खामोश बैठे हैं, सदा पर आज ताले हैं |
हमारी बात के सबने गलत मतलब निकाले हैं |
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उजड़ते शह्र का मंजर न देखें सुर्ख रू साहिब… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 29, 2015 at 10:00pm — 22 Comments
2212---2212---2212---2212 |
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देखो मुझे फिर ये कहो- क्या आज भी इंसान हूँ |
क्यों इस तरह जतला रहें मैं कब कोई भगवान हूँ |
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ईमान का ऐलान हूँ तूफ़ान का फरमान… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 25, 2015 at 11:00am — 36 Comments
212---1222---212---1222 |
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धूप भी नहीं मिलती छाँव भी नहीं मिलती |
ताकतों के साए में ज़िन्दगी नहीं मिलती |
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ज़िन्दगी मुकम्मल हो ये कभी नहीं… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 23, 2015 at 9:17am — 38 Comments
1222---1222---1222---1222 |
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ग़लतफ़हमी कि पोखर साफ़ पानी का बना होगा |
कमल खिलता हुआ होगा तो कीचड़ से सना होगा। |
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सुख़नवर ने सुखन की बाढ़ ला दी क्या कहे… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 19, 2015 at 10:30am — 49 Comments
1222---1222---1222---1222
हिदायत से ग़रीबों का जहाँ आना मना होगा
यक़ीनन ही सियासत का वहाँ तम्बू तना होगा।
कमीशन बैठकर अपनी हज़ारों राय दे, लेकिन
बसेसर का जला क्यूँ घर, कभी तो देखना होगा।
हमारे नाम की रोटी बटी किसको पता साहिब
कि अगली रोटियां कब तक मिलेगी पूछना होगा।
किसी ने दूर से पत्थर उछाला सूर्य पर, लेकिन
सितारों ने खबर क्यों की ये मसला जांचना होगा।
लड़ाई कौम की खातिर, करो…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on March 18, 2015 at 4:30am — 31 Comments
1222---1222---1222---1222 |
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ग़ज़ल से पा रहा हूँ मैं, ग़ज़ल ही गा रहा हूँ मैं |
ग़ज़ल के सर नहीं बैठा, ग़ज़ल के पा रहा हूँ मैं |
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किसी की नीमकश आँखों का तारा हूँ जमानों… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 16, 2015 at 11:00pm — 35 Comments
212 - 212 - 212 - 212 |
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जिंदगी में नहीं कोई गम क्या करें |
दिख रही बस खुशी मुहतरम क्या करें |
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टूटकर इश्क भी हमसे कब हो सका … |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 11, 2015 at 3:00pm — 30 Comments
2212 / 2212 / 2212 / 2212----- (इस्लाही ग़ज़ल) |
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दिल खोल के हँस ले कभी, ऐसी कहाँ तस्वीर है |
यारो चमन की आजकल इतनी कहाँ तकदीर… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 8, 2015 at 9:30am — 43 Comments
22--22—22--22--22—2 |
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दिल्ली से जो बासी रोटी आई है |
अपने हिस्से में केवल चौथाई है… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 3, 2015 at 9:30am — 31 Comments
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