For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-- मैं ही फ़क़त नादान हूँ...... (मिथिलेश वामनकर)

2212---2212---2212---2212

 

देखो मुझे फिर ये कहो- क्या आज भी इंसान हूँ

क्यों इस तरह जतला रहें मैं कब कोई भगवान हूँ

 

ईमान का ऐलान हूँ तूफ़ान का फरमान हूँ

बरसों दबा के तू जिसे बैठा वही अरमान हूँ

 

दो पंछियों को पेड़ पर बैठे हुए देखा मगर

हँसते नहीं रोते नहीं ये देखकर हैरान हूँ

 

इक शख्स जो भीतर मेरे बस मौन सा बैठा हुआ

उस शख्स के किरदार से यारों बहुत हलकान हूँ

 

हर आदमी कहता यही पाया गया है आजकल

मौका नहीं तो मैं ख़ुदा मौका मिला शैतान हूँ

 

अब छोडिये उस बात को, बातें बढ़े क्या फायदा

माना चलो फाजिल तुम्ही मैं ही फ़क़त नादान हूँ

 

बस घर मेरा ताउम्र ही इस जिस्म पर तारी रहा

दीवार दर मैं था कभी, अब तो फ़क़त दालान हूँ  

 

------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
----------------------------------------------------

Views: 908

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 26, 2015 at 7:02pm

आदरणीय विजय निकोर सर, आपकी कविता से प्रेरित इस ग़ज़ल पर आपकी सराहना मेरे लिए अमूल्य है 

हार्दिक आभार 

नमन 

Comment by vijay nikore on April 26, 2015 at 6:53pm

वाह, एक बहुत ही खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई।

आजकल ओ बी ओ पर कम आ पा रहा हूँ, अत: यह सुन्दर रचना पढ़ने से रह गई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 29, 2015 at 1:01am
आदरणीया वंदना जी सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 29, 2015 at 1:00am
आदरणीय जितेंद्र जी ग़ज़ल पर मुक्तकंठ प्रशंसा पाकर अभिभूत हूँ। सराहना के लिए हार्दिक आभार।
Comment by vandana on March 28, 2015 at 6:34pm

हर आदमी कहता यही पाया गया है आजकल

मौका नहीं तो मैं ख़ुदा मौका मिला शैतान हूँ

 

अब छोडिये उस बात को, बातें बढ़े क्या फायदा

माना चलो फाजिल तुम्ही मैं ही फ़क़त नादान हूँ

बहुत खूब आदरणीय मिथिलेश जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 27, 2015 at 11:40am

बस घर मेरा ताउम्र ही इस जिस्म पर तारी रहा

दीवार दर मैं था कभी, अब तो फ़क़त दालान हूँ ......कमाल, सर जी. बहुत खूब. अन्दर जलन सी हो रही है काश! मैं लिखता

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 26, 2015 at 4:41pm

आदरणीय गिरिराज सर, आपके सुझाये सभी मिसरे बहुत तार्किक  है और उचित भी. आपके मार्गदर्शन से  ग़ज़ल पर पुनर्विचार करने की जरुरत महसूस हो रही है. आपने मार्गदर्शन अनुसार मिसरों को सुधार कर पुनः संशोधित करता हूँ. मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार. नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 26, 2015 at 12:11pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , गज़ल के भाव बहुत अच्छे हैं , आपको दिली बधाइयाँ । कुछ मिसरों को मै अपनी समझ से कह रहा हूँ , अगर अच्छा लगे तो स्वीकार करें -----

देखो मुझे फिर ये कहो- क्या आज भी इंसान हूँ   ------   देखो मुझे फिर ठीक से , मैं आज भी इंसान हूँ

क्यों इस तरह जतला रहें मैं कब कोई भगवान हूँ--      क्यों इस तरह ज़तला रहे , जैसे कोई भगवान हूँ

दो पंछियों को पेड़ पर बैठे हुए देखा मगर

हँसते नहीं रोते नहीं ये देखकर हैरान हूँ   ------          हँसते नहीं रोते नहीं ,     चुप देखकर हैरान हूँ  

इक शख्स जो भीतर मेरे बस मौन सा बैठा हुआ   ---- इक शख्स है भीतर मेरे जो मौन है बैठा हुआ

मौका नहीं तो मैं ख़ुदा मौका मिला शैतान------        मौका नहीं तो आदमी , मौक़ा मिला शैतान हूँ 

बस घर मेरा ताउम्र ही इस जिस्म पर तारी रहा  ------  बस घर मेरा ताउम्र ही इस जिस्म पर हावी रहा

दीवार दर मैं था कभी, अब तो फ़क़त दालान हूँ  ----    दीवार दर भी था कभी, अब देख लो दालान हूँ  

आदरणीय मिथिलेश भाई , अगर सही न लगे तो ख़ाली दिमाग़ की शैतानी समझ छोड़ देना ॥

 

   

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 26, 2015 at 11:03am
आदरणीय हरिप्रकाश भाई जी सराहना के लिए हार्दिक आभार।
Comment by Hari Prakash Dubey on March 26, 2015 at 10:10am

आदरणीय मिथिलेश  भाई लाजवाब ग़ज़ल है ,

अब छोडिये उस बात को, बातें बढ़े क्या फायदा

माना चलो फाजिल तुम्ही मैं ही फ़क़त नादान हूँ

 

बस घर मेरा ताउम्र ही इस जिस्म पर तारी रहा

दीवार दर मैं था कभी, अब तो फ़क़त दालान हूँ  ....शानदार , बहुत बहुत बधाई ! सादर 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
10 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service