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Rahila's Blog – February 2018 Archive (2)

*** खाद ***(लघुकथा)राहिला

"तेरी ननद, तेरे लिए भी कभी कुछ लाई या बस खाली हाथ हिलाती हुई आ जाती है सब समेटने के लिए ...? "



ससुरालियों की बातें पूछते-पूछते , जब पीहर आयी बिटिया की ननद का जिक्र आया तो अनायास शकुंतला देवी का लहजा थोड़ा तल्ख़ सा हो गया।



"अरे राम भजो अम्माँ ! कैसी बातें करती हो? वह तो छोटी हैं । लाती क्या , उल्टा भारी विदाई देनी पड़ती है। अम्माँजी की बड़ी लाड़ली बिटिया हैं।"

उसने निष्छल सी हंसी हँसते हुए बताया ।



" आय -हाय तुझे इसमें हँसी आ रही है। ठीक है..., जब तक माँ है, तब तक… Continue

Added by Rahila on February 26, 2018 at 10:58pm — 8 Comments

***माँ का वेलेंटाइन***(लघुकथा)राहिला



"हुआ क्या है ? पागल! कुछ तो बता।" सुमि की बार -बार भरती - पुछती आँखे देख कर तृषा ने जोर देकर पूछा।

"मुझे लगता है माँ का किसी के साथ...!" कह कर वह अपनी सबसे नजदीकी सखी के गले लगकर रो पड़ी।"

"क्याsss किसी के साथ....? तेरा दिमाग़ तो ठिकाने पर है ? ये शक़ कैसे पनपा तेरे मन में? उसने अविश्वास जताया।

आज वेलेंटाइन डे है ,जब तक पापा रहे , वह उनके लिए फूल खरीदतीं थीं । लेकिन आज जब वह नहीं हैं तो फिर किसके लिए खरीद रहीं थीं ?"

"मतलब तूने उन्हें फूल खरीदते देखा?"

"सिर्फ…

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Added by Rahila on February 13, 2018 at 10:54am — 10 Comments

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