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*माटी का गुरूर* राहिला (लघुकथा)

"अब क्या करें? वैध जी तो दूसरे गाँव गये हुए है, कल तक लौटेगें | इतने दूर वापस भी नहीं जा सकते ।शाम होने को है, इतने छोटे गाँव में कहाँ रुकेंगे?"कहते हुए महिला के माथे पर चिंता की लकीरें खींच गयी।
"फ़िक्र ना कर, बलवीर सर इसी गाँव का तो हैं जिन्होंने मुझे इस वैध के बारे में बताया था। उन्हीं के घर रूक जाते हैं|" पति ने उसे आश्वासन दिया|
नाम सुनते ही उसे याद हो आया वह दिन ,जब फौजी पति पहली बार उसे अपने साथ ले गये थे और वहाँ वह पति के सीनियर इन्हीं बलवीर के यहाँ भोजन पर आमंत्रित हुई थी। न चाहते हुए भी उसे वहाँ जाना पड़ा था।लेकिन उसने भी बड़ी चतुराई से उपवास का बहाना बनाकर , उनके घर का खाना तो क्या ,पानी तक नहीं छुआ । हमेशा से ऊँच -नीच ,जात-पात को मानने वाली वह, अचानक खुद को वहाँ के चलन अनुसार तैयार नहीं कर पायी थी।
और आज उन्हीं के घर..वह भी रुकने के वास्ते..। वह अब बड़े धर्म संकट में थी।
"अरे भाईसाहब !आप?" दरवाजे पर उन्हें देख बलवीर की पत्नी चौकीं।
"नमस्कार भाभीजी!अरे आप तो हमें देखकर चौंक गयीं। भई ,आप सब की याद आई तो मिलने चले आये ।वह खुशमिजाज अंदाज में बोला। सर कहाँ है?"
"जी..,वह तो ड्यूटी पर ही हैं ।"
"अरे...!जब मेरी बात हुयी थी तब तो आने का हो रहा था !शायद छुट्टी की प्रॉब्लम हो गयी होगी।"
फिर बातों ही बातों में ,आने की असल वजह पता चलने पर बलवीर की पत्नि ने मर्यादावश मेहमान नवाज़ी तो की ,लेकिन उस दिन असर उसके व्यवहार में खूब नजर आया|।नपे तुले संवाद, सादा भोजन और चुभती निगाह।जिसे उन दोनों ने खूब महसूस किया।
रात काफी हो चुकी थी ,लेकिन नींद आँखों से कोसों दूर थी।वह बराबर करवटें बदल रही थी ।
"क्या हुआ नींद नहीं आ रही क्या ?"पति ने पूछा ।
"अरे ..! आप अब तक सोये नहीं?" जबाब के बदले उसने प्रतिप्रश्न किया।
"फ़ौजी हूँ, जरा सी आहट चौकन्ना कर देती है | यहाँ तो तेरी करवट के कारण पूरी खाट चरमरा रही है।"
"हाँ, नींद नहीं आ रही।" उसने छत की तरफ देखते हुए कहा |
"मैं जानता हूँ, तू क्या सोच रही है ? मैंने तो तुझे हमेशा से समझाया, व्यवहार में आर पार की स्थिति रखना कभी भी ठीक नहीं होता।संबंधों में हमेशा संतुलन रख ।लेकिन तेरी निकट दर्शिता ने तुझे कभी भान ही नहीं होने दिया कि आड़ा वक़्त किसी पर भी, कभी भी आ सकता है।"
"हूँ ..!।उसने ठंडी आह भरते हुए कहा। देखो आज भाग्य ने कहाँ का अन्न पानी ग्रहण करा दिया जहाँ का मैं कभी...!"पति के समझाइश को पूरी तरह दरकिनार करके जैसे ही उसने अफ़सोस जाहिर किया तो ...
"शर्म कर अपनी सोच पर ,किस ऊँचे कुल के गुरूर में मरी जा रही है !,भगवान ने सब को सामान बनाया और तू अन्न ,पानी का रोना रो रही है । जबकि अन्न ,पानी की कोई जात नहीं होती।बहुत देखे तेरी जैसी सोच के जिन्हें नियति ने एक झटके में जात पात से ऊपर उठा कर इंसान बना दिया ।उसने बाड़ और भूकंप ग्रस्त लोगों का उदाहरण देते हुए कहा।तुझे अभी भी इंतेजार है?"
मौलिक एवं अप्रकाशित।

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Comment by Rahila on May 13, 2017 at 4:01pm
आप सभी आदरणीय सुधीजनों का दिल से आभार ।आप सभी की सलाह को हमेशा संज्ञान में रखूंगी। सादर
Comment by Seema Singh on April 8, 2017 at 7:45pm
राहिला आप बहुत अच्छा लिखती हैं।पर ये कथा आपके स्तर को छू नहीं पाई है। अनावश्यक विस्तार के चलते कथा में संदेश ही संदेश है कथा नज़र नही आ रही। आशा है आप मेरी बात को सकारात्मक रूप से ही लेंगी।
Comment by Archana Tripathi on April 8, 2017 at 4:04pm
बढ़िया कथा
Comment by Mahendra Kumar on April 6, 2017 at 10:44pm
आदरणीया राहिला जी, //"फ़िक्र ना कर, बलवीर सर इसी गाँव का तो हैं जिन्होंने मुझे इस वैध के बारे में बताया था। उन्हीं के घर रूक जाते हैं|"// "आपके इस संवाद को, "फ़िक्र ना कर, बलवीर सर इसी गाँव के तो हैं जिन्होंने मुझे इस वैध के बारे में बताया था। उन्हीं के घर रुक जाते हैं|" होना चाहिए। इसी प्रकार, //लकीरें खींच गयी।// को "लकीरें खिंच गयीं।" होना चाहिए। ऐसी ही अन्य टंकण त्रुटियाँ हैं। देख लीजिए। आपकी लघुकथा एक अच्छा सन्देश दे रही है। इस बढ़िया प्रस्तुति के लिए मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 6, 2017 at 9:39pm
बहुत बढ़िया प्रस्तुति हेतु तहे दिल से बहुत बहुत बधाई आदरणीय राहिला जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on April 6, 2017 at 4:26pm

बेहतरीन एवम संदेश प्रद लघुकथा आदरणीय राहिला आसिफ़ जी।हार्दिक बधाई।


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Comment by rajesh kumari on April 6, 2017 at 10:39am

इंसानियत जात पात से कहीं ऊंची होती है पंच लाइन से बेहतरीन सन्देश निस्सृत हुआ है लघु कथा से बहुत खूब प्रिय राहिला जी बहुत बहुत बधाई 

Comment by Nita Kasar on April 5, 2017 at 3:55pm
कथा संदेशप्रद है पर अंतिम पंक्तियों में लेखिका का समावेश,और थोड़ा भाषण हो गया ।ईमानदारी से कहूँ आप लिखती बहुत अच्छा है,बधाई आद० प्रिय राहिला जी ।
Comment by Rahila on April 5, 2017 at 11:34am
आदरनीय सर जी ! बहुत आभार सराहना के लिए।
मैं आपकी बात से भी सहमत हूँ। सादर
Comment by Rahila on April 5, 2017 at 11:32am
प्रिय कल्पना दीदी!आप की बात से सहमत हूँ।सादर

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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