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Sheikh Shahzad Usmani's Blog – January 2018 Archive (5)

आहत संवेदनायें (लघुकथा)

एक किसान, एक सैनिक से यूं रूबरू हुआ :

"तुम्हारे पास क्या-क्या है?"

"मेरे पास हैं बंदूक, तोप, गोला-बारूद और रक्षा और युद्ध के आधुनिक साजो-सामान! अब तू बता, तेरे पास क्या-क्या है?"

"हमरे पास तो बाबू गैंती-फावड़े, बीज-खाद, और खेती-किसानी के पुराने और आधुनिक साजो-सामान हैं! वैसे अपनी चीज़ों के नाम और रूप भले अलग-अलग हैं, पर काम और नसीब तो अपन दोनों के एक जैसे लगते हैं!"

"हां, दोनों ही अपनी मां के लिए अपना-अपना ख़ून-पसीना और परिवार दांव पर लगा देते हैं!"

"पर बाबू अपनी इस…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 26, 2018 at 5:00am — 4 Comments

'रिश्तों का बसंत' (लघुकथा)

"ज़्यादा मत उड़ो, ज़मीन पे रहो; घर-गृहस्थी पे ध्यान दो, समझे!"

"ऐसा क्यों कह रहे हैं बाबूजी, मुझसे क्या ग़लती हुई?"

"ग़लती नहीं, ग़लतियां कर रहे हो मियां!"

" समझा नहीं! क्या मेरी साहित्यिक यात्राओं से आपको कोई कष्ट?"

" मुझे ही नहीं, हम सब को तक़लीफ है! सुना है कि कल फिर तुम दिल्ली से क़िताबें सूटकेश में भर कर लाये हो! पगलिया गये हो क्या?"

"बाबूजी, ये वे पुस्तकें हैं जिनमें मेरी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं या जिन्हें पढ़कर मुझे अपना लेखन सुधारना है!"

"अब बहू ही तुम्हें…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 22, 2018 at 4:34am — 5 Comments

अक़्ल पर ताले (लघुकथा)

शहर की व्यस्ततम सड़क पर रुके वाहनों और उनके हॉर्न्स की आवाज़ों पर किसी धनाढ्य परिवार की बारात का डीजे बैन्ड हावी हो चुका था। लोग लाइट्स से घिरे दूल्हे के नज़दीक चल रहे डांस के मज़े ले रहे थे। दुकानों पर खड़े ग्राहक भी किसी तरह झांक-झांक कर सजे-धजे युवा बारातियों का नृत्य देखने और आँखें सेंकने की कोशिश कर रहे थे। वहीं पास की पान की दुकान पर खड़े एक बुज़ुर्ग ने नज़दीक़ खड़े परिचित युवक से पूछा - "ये कौन से गाने पर डांस कर रहे हैं , मुझे तो बोल समझ में ही नहीं आ पा रहे…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 20, 2018 at 10:35pm — 7 Comments

घर के काज (लघुकथा)

जनवरी की कड़ाके की ठंड। घना कोहरा। सुबह क़रीब पांच बजे का वक़्त। सरपट भागती ट्रेन की बोगी में सादी साड़ियां, पुराने से सादे स्वेटर और रबर की पुरानी से चप्पलें पहनी चार-पांच ग्रामीण महिलाओं की फुर्तीली गतिविधियां देख कर नज़दीक़ बैठा सहयात्री उनसे बातचीत करने लगा।

"ये चने की भाजी कहां ले जा रही हैं आप सब?"

"दिल्ली में बेचवे काजे, भैया!" एक महिला ने भाजी की खुली पोटली पर पानी के छींटे मारकर दोनों हाथों से भाजी पलटते हुए…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 6, 2018 at 7:30am — 4 Comments

चूना लगा (लघुकथा)

"आप मुझसे कब तक प्रेम करेंगे?" समुद्र तट पर पति के साथ प्यार भरे लम्हों में बहुत भावुक होते हुए पत्नी ने कहा।
पति ने उसकी आँखों से आँसू की एक बूंद निकाल कर समुद्र के पानी में डाला और बोला - "इस आँसू की बूंद को जब तक तुम खोजकर नहीं निकालतीं, मैं तब तक तुमसे प्रेम करूँगा ..!"
यह देख समुद्र की भी आँखों में पानी आ गया और उसने कहा - 
"कहाँ से सीखते हो रे तुम लोग ... पत्नी को इतना चूना लगाना…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 4, 2018 at 9:24am — 7 Comments

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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
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