अपने इस काव्य पाठ का
इस संवाद से आरंभ करता हूँ
जीवन को अनमोल शिक्षा देता, संवाद युधिष्ठिर और यक्ष के बीच का कहता हूँ।।
गूढ रहस्य इस जीवनचक्र का
दृष्टि में लाना चाहता हूँ
हर इंसान को सीखना चाहिए, ये आज यहाँ बतलाता हूँ||
कुछ त्रुटि यदि हो जाएं तो
प्रथम क्षमा माँगना चाहता हूँ
जीवन गाथा कर्ण की यहाँ में, आपके समक्ष लाना लाना चाहता हूँ||
यौद्धा-ज्ञानी जो बलवान थे सारे
दुर्दशा पांडवों की बतलाता हूँ
संयम जीवन कैसे रखना पड़ता, मैं वक्त की नजाकत कहता हूँ||
अजय विजेता भू-धरा के
पड़ा उन्हे मृत भूमि पर पाता हूँ
छोड़ सके न अहं को अपने, उनके मरण का कारण कहता हूँ||
भाई शिक्षा-ज्ञान से छोटे बचाएं
गुण धर्मराज के विवेक का गाता हूँ
वर्णन जीवन के अनमोल रत्न का, इस प्रसंग के संग बतलाता हूँ।।
कौन हूँ मैं और कहाँ से आया
कुछ प्रश्न ऐसे मैं यक्ष के मुख से पाता हूँ
इस दुनियाँ में जीव क्यूँ है आया, उत्तर जिनका धर्मराज से सुनना चाहता हूँ।।
पाँच इंद्रियों में घिरा हुआ जीव
जिन्हे जीभ, त्वचा आंख, नाक, कान बतलाता हूँ
सर्वसाक्षी मैं शुद्ध आत्मा, ये धर्मराज से उत्तर पाता हूँ।।
जीवन का उद्देश्य क्या
बंधन क्यूँ घोर जन्म-मरण का पाता हूँ
मुक्ति आवागमन से पाना लक्ष्य, मैं मोक्ष को पाना चाहता हूँ।।
अतृप्त वासनाएं मृत्युलोक का कारण
कुछ कामनाओं को अधूरा कहता हूँ
कर्मफल के बदले जीवन मिलता, मैं सदा जितेंद्रिय बनना चाहता हूँ।।
स्वयं को जानना हो प्रथम कारण
बन जीव परमात्मा के मिलन को आता हूँ
अष्टांग योग का पालन करके, अपने स्वरूप को पाना चाहता हूँ।।
निर्धारित करती वासनाएं जन्म को
मैं जीव योनि 84 लाख में यातना सहता हूँ
व्यापक होता जिनका स्तर, उसे सभी के ध्यान में लाता हूँ।।
क्यूँ दुख मिलता इस संसार में
इस प्रश्न का उत्तर चाहता
क्रोध, लोभ स्वार्थ संग भय मुख्य कारण, आज यहाँ बतलाता।।
रचते दुख को क्यों है ईश्वर
ये भेद खोल बतलाता हूँ
संसार की रचना ईश्वर करते, जीव विचार-कर्म से दुख को पाता हूँ।।
कौन-क्या किसे कहते ईश्वर
मैं सब जानना चाहता हूँ
न स्त्री वो न पुरुष है, जग जिसे हर कर्म का कारण कहता हूँ।।।
सत चित्त आनंद जिसका स्वरूप है
आकार-निराकार जिसको मैं विभिन्न रूप में पाता हूँ
रचना, पालन संहार जो करता, उसे अक्षय, अजन्मा, अमृत, अकारण कहता हूँ।।
हर कर्म का मूल कारण जो
उसे अमित, असीमित, अविस्तृत मैं कहता हूँ
हर क्रिया का परिणाम कहलाते, सभी कर्मों का फल बतलाता हूँ||
क्रिया-कर्म के परिणाम भी होते
अच्छे-बुरे जिन्हें कहता हूँ
प्रयत्न का फल भाग्य होता, इससे यक्ष की संतुष्टि कहता हूँ।।
सुख-शांति का रहस्य गहरा
सत्य-सदाचार, प्रेम-क्षमा का कारण कहता हूँ
झूठ, घृणा क्रोध का त्याग ही शान्ति, रहस्य गूढ़ यहाँ बतलाता हूँ।।
चित्त पर नियंत्रण कैसे रखते
इस पर विजय का उपाय मैं कहता हूँ
इच्छाएं कामनाएं उद्धिग्न करती, जिनका अंत न कभी मैं पाता हूँ।।
सच्चा प्रेम है कहते किसको
ये भेद खोल बतलाता
सर्वव्यापक खुद को देखना, मैं उस प्रेम की महिमा गाता हूँ।।
स्वयं को सभी में जो देख न सकता
उससे प्रेम की उम्मीद क्या पाता हूँ
अपेक्षा, अधिकार है मांग जहाँ पर, उसे आसक्ति या नशा मैं कहता हूँ।।
विवेकशील ही ज्ञानी कहलाता
चोर इन्द्रियों के आकर्षण को कहता हूँ
इंद्रियों की दासता नरक कर द्वार है, उसे अज्ञानता से भरा मैं पाता हूँ।।
आत्मा को अपनी जानता नही जो
उस जागते को साया कहता हूँ
यौवन, धन, जीवन अस्थाई होता, सुख उसे चार दिवस का पाता हूँ।।
मद-अंहकार होते दुर्भाग्य का कारण
सौभाग्य मैत्री-प्रेम, सत्संग को कहता हूँ
सारे दुखों से पार वो पाता, जिसे सब छोड़ने को तैयार मैं पाता हूँ।।
गुप्त अपराध सदा यातना देता
ध्यान सांसारिक क्षण-भंगुरता पर लगाता हूँ
सत्य, श्रृद्धावान जग जीत जायेगा, जिसे अपराजेय योद्धा पाता हूँ।।
वैराग्य दिलाता भय से मुक्ति
जिसे ज्ञान का द्वार मैं कहता हूँ
अज्ञान से परे फिर जो भी होता, उसे मुक्त सदा मैं कहता हूँ।।
आत्मज्ञान का अभाव ही अज्ञान कहलाता
उसे बंधनों से बंधा मैं पाता हूँ
जो कभी भी क्रोध न करता, उसके दुखों का अंत मैं कहता हूँ||
अस्तित्व जिसका अनिश्चित होता
उसे माया से संबोधित करता हूँ
नाशवान जगत ही माया कहलाती, उससे परब्रह्म को अलग मैं कहता हूँ।।
ब्रह्म की आज्ञा से सूर्य उदित होता
प्रकाश का संचालक कहलाता हूँ
वेद जगत की आत्मा होते, जिसे तारारूप में पाता हूँ।।
धैर्य जीव का साथी होता
नियंत्रण इंद्रियों पर रखना सिखलाता हूँ
भावुकता के अधीन सदा उनको पाता, जिन्हे प्रतिक्रिया देने में उत्सुक पाता हूँ।।
धर्म पर अपने स्थिर रहना
मैं स्थायित्व की परिभाषा कहता हूँ
नियंत्रण रखना धैर्य सिखाता, इसे सत धर्म कर्म की बात सुनाता हूँ।।
त्याग मानसिक मैल का सदा ही करना
जिसे शुद्ध त्याग मैं कहता हूँ
प्राणीमात्र की रक्षा करने को, मैं वास्तविक दान बतलाता हूँ।।
भूमि से भारी माँ है होती
जिसके बन जीव गर्भ में आता हूँ
हवा से तेज गति है मन की, जो भिन्न विचार को मन में लाता हूँ||
आकाश से ऊँचा पिता है होता
कर्म उसका बड़ा बतलाता हूँ
घास से तुच्छ सदा चिंता होती, विद्या को विदेश का साथी कहता हूँ||
पत्नी से बड़ा न कोई साथी होता
जिसका घर में राज मैं पाता हूँ
दान ही होता मरणासन्न का साथी, वर्तन कोई भूमि से बड़ा न पाता हूँ||
सुख की होती परिभाषा अलग है
जिसे शील, सच्चरित्रता पर टिका मैं पाता हूँ
संतुष्टि भूमिका बड़ी निभाती, जिससे अहं, लोभ, क्रोध से दूर मैं पाता हूँ||
सर्वप्रिय बनता जब कभी भी
अहं से दूर उसे पाता हूँ
क्रोध जाने पर दुख न होता, अक्सर बड़ी मुसीबत की जड़ कहता हूँ||
अमीर ही समझो उस शख्स को
लालच से रहता जो दूर बड़ा
मृत्यु से बड़ा न आश्चर्य होता, आना निश्चित जिसका रहा||
रोज मरते देखते औरों को
ख़्वाब अमरता के देखना चाहता हूँ
उसकी आई कल मेरी आएगी, इस कटु सत्य को असत्य चाहता हूँ||
भूखा रहे पर शाक ही खाये
कभी विदेश न जिसको जाना पड़ा
ऋणी नही जो किसी भी जग में, सदा उसे सुखी-आनंदित कहता हूँ||
प्रस्थान कर रहे यमलोक को
स्वयं को जिंदा चाहता हूँ
रहना चाहता सदा की खातिर, इसे आश्चर्य बड़ा मैं हूँ||
प्रमाणित कर सके सही मार्ग को
कोई शास्त्र ऐसा पाता हूँ
महापुरुष भी हुआ न ऐसा, पूर्णत जिसके मार्ग सत्य को सत्य पाता हूँ||
महापुरुष जो मार्ग अपनाता
उसे अनुकरणीय मार्ग मैं कहता हूँ
समाज उसी के पीछे चलता, जिसे प्रतिष्ठित व्यक्ति से जुड़ा मैं पाता हूँ||
निरंतर प्रवाहशील है काल भी
जिसे भूत, वर्तमान-भविष्य कहता हूँ
परिवर्तन होता हर पल हर क्षण, रोचक शास्त्र मैं वर्तमान की वार्ता कहता हूँ||
मौलिक व अप्रकाशित रचना
फूलसिंह, दिल्ली
Tags:
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
Switch to the Mobile Optimized View
© 2025 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |