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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-71 (विषय: दौड़)

आदरणीय साथियो,
सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-71 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-71
विषय: "दौड़"
अवधि : 27-02-2021 से 28-02-2021
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फ़ॉन्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाए रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाएँ इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद ग़ायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आसपास ही मँडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया क़तई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा ग़लत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फ़ोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
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Replies to This Discussion

आदाब। विषयांतर्गत बेहतरीन व उम्दा प्रभावशाली रचना संवादात्मक शैली में। बहुत ख़ूब। हार्दिक बधाई आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी। वो दो/वे दो? 

आ. प्रतिभा बहन , सादर अभिवादन । अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई । 

 भावपूर्ण संवाद शैली में सुन्दर रचना,बहुत-बहुत बधाई आदरणीया प्रतिभा जी।

चैन-स्नेचर्ज़ (लघुकथा) :


सब अपने सपनों और अपनों के ही पीछे दौड़ रहे थे। कलयुग के घोर अँधकारमय अँधेर नगरी चौपट राजा शासनकालीन चित्रण करती बेहद डरावनी फ़िल्म के क्लाइमेक्स वाले चरण माफ़िक परिदृश्यों में कोरोना भी अपने वंश के साथ प्रतियोगिता में था। उसको मात देने वाले विद्वान, यौद्धा और तकनीकें भी। जीत और हार में भी कशमकश थी। जद्दोजहद सब के साथ थी। राजनीति और उद्योग अवसर में आपदा पैदा करने और आपदा में अवसर खोजने और पकड़ने में जुटे हुए थे। यक़ीनन काफ़ी सफल भी हो रहे थे हमेशा की तरह मुल्क, मिल्कियत, विरासत, ताक़त, स्वयं की हिफ़ाज़त, बग़ावत, अदावत, शरारत, ख़िलाफ़त, विद्रोह, नौकरशाही, तानाशाही, तुष्टिकरण अर्थात सबके साथ, सबके विकास के साथ।


ईमानदारी, देशभक्ति, प्रकृति-भक्ति और मानवता आदि को तो बस यही लग रहा था कि दौड़ में वे थक कर हार रहे हैं और शेष सभी प्रतियोगी व विरोधी चैन-स्नेचर्ज़ ही साबित हो रहे थे। योग, ध्यान, धर्म-आध्यात्म आँखें फाड़े चैन-स्नेचर्ज़ की क़ामयाबियों पर किंकर्तव्यविमूढ़ होकर मूक दर्शक रह गये थे या बली के बकरे औद्योगिकीकरण की आँधी में।


(मौलिक व अप्रकाशित)

आ. भाई शेख शहजाज जी, सादर अभिवादन । अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई । 

आदाब। हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी।

उम्दा रचना। बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय शेख सरजी। 

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया बबीता गुप्ता जी।

प्रदत्त विषयांतर्गत पहले मैंने एक अन्य लघुकथा भी लिखी थी जो फेसबुक की एक चित्राधारित प्रतियोगिता में पोस्ट की गई थी। (मेरे अपने और सपने)। आशा है कि उसे भी पढ़कर  उस पर भी प्रतिक्रियायें मिल सकेंगी। सादर।

वह तब से भाग रहा है;कभी पेट की खातिर,तो कभी इज्जत की खातिर।जाने कब तक भागेगा,पता नहीं।भरे पूरे घर के लोग यही चर्चा कर रहे हैं। वह भागता भागता अकस्मात उनके सामने आ जाता है।लोग रास्ता देने लगते हैं,पर वह ठहर जाता है।
' क्यों भई?आगे बढ़ जा।।' एक व्यक्ति बोला।
'आगे कोई राह कहां है?' उसने कहा।
'क्यों?रास्ता तो सीधा दिखता है।जा बढ़ जा।'दूसरे ने चौड़े होते रास्ते की तरफ  इशारा किया।
'नहीं,यह चौड़ा दिखता रास्ता आगे बहुत संकरा है भाई। जाकर लौटा हूं।भूल भुलैया है सब।'भागकर आया हुआ व्यक्ति बोला।
'तो फिर?'एक तीसरे भरे पूरे ने चुस्की ली।
'अब मांगते खाते थक गया हूं।अब हाथ पैर चलाना चाहता हूं।काम मांगूंगा,खाना नहीं।'उसने कहा।
'हाहहा! हाहहा!!'भरे पूरे लोग ठठाकर हंसे।उनमें से एक  ने फब्ती कसी,
'तब से वोट तो से ही रहे हो न? देते रहो।''

"मौलिक तथा अप्रकाशित"

आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन । अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

सादर नमस्कार। वाह । /'तब से वोट तो दे (से) ही रहे हो न? देते रहो।''// बहुत बढ़िया कटाक्ष। कड़वा सच। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। शीर्षक देना आप भूल गये हैं। शीर्षक सुझाव - /ख़ातिर/

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